अलविदा तो नहीं कह रहा लेकिन...खुशदीप

नहीं, नहीं मैं कहीं टंकी-वंकी पर चढ़ने नहीं जा रहा...क्योंकि आप उतरने को कहोगे तो शोले के सांभा की तरह मेरे घुटने दर्द करेंगे...आखिर उम्र का भी तकाजा है...इसलिए अपने लिए बीच का रास्ता निकालने की सोच रहा हूं...सोच क्या रहा हूं, सोच लिया...बस आज से अमल शुरू कर दिया है...



हां तो जनाब, और भी गम है ज़माने में ब्लॉगिंग के सिवा...डॉक्टर टी एस दराल ने दो दिन पहले ब्लॉगिंग एडिक्ट्स के लिए आंखें खोल देने वाली पोस्ट लिखी...मैंने उस पोस्ट में कमेंट में लिखा था कि पान, बीड़ी, सिगरेट, न तंबाकू का नशा, हमको तो ब्लॉगिंग तेरी मुहब्बत का नशा...लेकिन नशा तब तक ही ठीक रहता है, जब तक वो आपके काबू में रहे, अगर नशा आप पर काबू पाने लगे तो गुरदास मान के स्टाइल में समझो...मामला गड़बड़ है...

अगर आपके पास ब्लॉगिंग के लिए एक्स्ट्रा टाइम है तो शौक से इस शौक को पूरा करिए...लेकिन दूसरे ज़रूरी कामों या सेहत की कीमत पर ब्लॉगिंग के लिए दीवानगी दिखाना एक दिन आपको ही दीवाना बना देगी...हां, जो ब्लॉगिंग में नए खिलाड़ी है, उनके लिए शुरू में पहचान बनाने को ब्लॉगिंग में अतिरिक्त मेहनत समझी जा सकती है...लेकिन एक बार पहचान बन जाने के बाद अपने ऊपर स्पीड गवर्नर लगा लेना ही समझदारी है...

आठ महीने हो गए आपको रोज़ एक पोस्ट से पकाते-पकाते...जब मैं खुद लिख लिख कर पका हुआ आम हो गया हूं तो आप क्यों नहीं पकेंगे भला...वो कहते हैं न...Excess of anything is bad...इससे पहले कि जो थोड़ी बची खुची जवानी चेहरे से झलकती है, वो भी अलविदा कह दे...अच्छा है संभल जाएं...

हुआ ये है कि जनाब ब्लॉगिंग के चक्कर में और तो कुछ नहीं बस निंदिया रानी का ज़़रूर मैं दुश्मन हो गया...रात को देर तक जागने ने कमाल ये दिखाया कि शुगर, यूरिक एसिड, कोलेस्ट्रोल (गुड तालिबान नहीं बैड तालिबान) सब कुछ बढ़ गया...डॉक्टर ने टेस्ट कराए तो जो रिपोर्ट आई, हर टेस्ट पर स्टार (खतरे के) बने हुए थे...मेडिकल रिपोर्ट ला कर अपनी बिटिया को बड़ी शान के साथ दिखाई...कहा- स्कूल के रिपोर्ट कार्ड में बिटिया जी हर सबजेक्ट में स्टार आप ही नहीं ला सकते, हम भी ला सकते हैं...

पत्नीश्री कब से कह रही थी, सेहत का ख्याल कर लो, ख्याल कर लो...लेकिन बुरी आदत थी न, पत्नीश्री की बात एक कान से सुनने और दूसरे कान से निकाल देने की...अब भी ऐसा ही कर रहा था...लेकिन एक दिन पांव ऐसा भारी हुआ (अरे,अरे कोई मेडिकली अनहोनी मत समझिए) कि ज़मीन पर रखना ही बंद हो गया...हमें तो किसी ने पाकीज़ा के राजकुमार की तरह ये भी नहीं कहा था कि पैर ज़मीन पर मत रखिएगा, मैले हो जाएंगे...वो तो दर्द ही इतना था कि नामुराद पैर ने खुद ही ज़मीन पर उतरने से मना कर दिया...सोचा मोच-वोच आ गई होगी...लेकिन कुछ महासयानों ने डराया कि हेयर लाइन फ्रैक्चर भी हो सकता है...

किसी तरह रिक्शे पर लद-फद कर अस्पताल पहुंचा...बकरा कटने के लिए आता देख अस्पताल के स्मार्ट स्टाफ ब्वायज़ ने सीधे एमरजेंसी ओपीडी में पहुंचा दिया...वहां डॉक्टर पर रौब झाडने के लिए जताना चाहा कि बारहवीं तक ज़ूलोजी पढ़ रखी है, डॉक्टर साहब कोई मसल या लिगामेंट तो टियर नहीं कर गया या फिर हेयरलाइन फ्रेक्चर हो गया लगता है...डॉक्टर ने ऐसा भाव दिखाया कि मैं उन्हें कोई मक्खन का चुटकुला सुना रहा था....डॉक्टर ने पैर का एक्सरे कराने के लिए दूसरे कमरे में रेफर कर दिया...एक्सरे करने वालों के शरीर में तभी हरकत आई जब उन्होंने चार सौ रुपये एडवांस जमा होने की पर्ची देख नहीं ली...एक्सरे कराने के बाद हाथों हाथ पैर का काला नक्शा हाथ में थमा दिया...वापस आया लंगड़ाते लंगड़ाते ओपीडी वाले डॉक्टर के पास...डॉक्टर ने काले परनामे को लाइट की तरफ कर देखा और ऐलान कर दिया...कोई फ्रैक्चर-व्रैक्चर नहीं हुआ...मन में तो आया, कह दूं कि फिर गरीब के चार सौ रुपये क्यों एक्सरे-मशीन को गपा दिए...खैर अब उस डॉक्टर की दिव्य दृष्टि जागी और उसने मुझे रियूमेटोलॉजी एक्सपर्ट को रेफर कर दिया...वहां भी मोटी फीस का नज़राना चढ़ाया...

डॉक्टर साहब ने चेक किया और कहा...दारू-वारू ज़्यादा ही पीते लगते हो...अब मैं सोचने लगा कि ब्लॉगिंग ने क्या इस हाल में पहुंचा दिया है कि शक्ल से ही बेवड़ा लगने लगा हूं...मुश्किल से ज़ुबान से शब्द निकले...डॉक्टर साहब लाल परी को तो आज तक चखा भी नहीं...डॉक्टर भी पूरे मूड में था...शायद बाहर वेट कर रहे मरीजों का आंकड़ा हाफ सेंचुरी पार होते देख बाग़-बाग़ था...डाक्टर ने चुटकी ली...मैं चखने की नहीं, सीधे गटकने की बात कर रहा हूं...बड़ी मुश्किल से डॉक्टर को विश्वास आया कि अल्कोहल से मैं कोसो दूर रहता हूं...डॉक्टर ने लिपिड प्रोफाइल, शुगर, फास्टिंग शुगर, यूरिक एसिड और भी न जाने कितने टेस्ट का पर्चा हाथ में थमा दिया...हिम्मत कर मैंने पूछ ही लिया...डॉक्टर साहब पैर में बीमारी क्या लगती है...डॉक्टर ने अहसान सा जताते कहा...गाउट...टेस्ट के नतीजे आ गए...डॉक्टर भी नतीजे देख अंदर ही अंदर प्रसन्नचित, लंबी रेस का बकरा जो फंसा था...(डॉक्टर दराल, डॉ अमर कुमार, डॉ अनुराग...सॉरी)...डॉक्टर ने हर हफ्ते दिखाने की ताकीद के साथ पर्चा भर कर दवाइयां रिकमेंड कर दी...(अब तक चार हज़ार का फटका लग चुका था)...अब इलाज चालू आहे...

खैर आप सोच रहे होंगे कि मैं अपना ये स्वास्थ्य-पुराण सुनाकर आपको क्यों बोर कर रहा हूं...ये इसलिए सुना रहा हूं कि शायद मेरी गाथा से ही उन्हें कोई संदेश मिल जाए, जिन्होंने ब्लॉगिंग के नशे में खुद को दीवाना बना रखा है...ये सब तो चल ही रहा था कि हमें अचानक इल्म हुआ कि अपने साहबजादे (सृजन) ग्यारहवीं में आ गए हैं...अब उसके लिए भी अगले दो साल पढ़ाई में सब कुछ झोंकने के है...अचानक पिता का कर्तव्य भी हिला हिला कर हमें झिंझोड़ने लगा...अब साहबजादे की पढ़ाई के लिए भी कुछ वक्त निकालना है...

ऐसी परिस्थितियों में क्या रास्ता बचता था हमारे लिए...ब्लॉगिंग को अलविदा बोलें और टंकी पर चढ़ जाएं...वो मुमकिन नहीं...वजह पहले ही बता चुका हूं, घुटनों का दर्द...फिर क्या करूं...रौशनी की किरण और कहीं से नहीं, हज़ारों किलोमीटर दूर गुरुदेव समीर लाल जी समीर के द्वारे से ही दिखी...यानि उन्हीं का फंडा अपनाया जाए...हफ्ते में सिर्फ दो पोस्ट...बाकी दिन खाली वक्त मिलने पर सिर्फ दूसरे ब्लॉग्स को पढ़ा जाए...वैसे भी चक्करघिन्नी बना होने की वजह से पिछले कुछ दिनों से दूसरे ब्लॉग्स पर कमेंट ही नहीं कर पा रहा था...तो जनाब, अब से पोस्ट के ज़रिए आप से रविवार और बुधवार को ही मुलाकात हो सकेगी...हां कमेंट के ज़रिए ज़रूर आपसे रोज़ मिलने की कोशिश करूंगा...आशा है आप इस मेकशिफ्ट अरेंजमेंट को भी अपना स्नेहाशीष देते रहेंगे...आप से अगली मुलाकात अब बुधवार को होगी...

स्लॉग ओवर

इम्तिहान के दौरान सात काम जो लड़कियां करती हैं-


1 लिखना
2 लिखना
3 लिखना
4 लिखना
5 लिखना
6 लिखना
7 लिखना


इम्तिहान के दौरान सात काम जो लड़के करते हैं-


1 चेक करना कि कमरे में लड़कियां कितनी हैं
2 अगर कोई युवा लेडी सुपरवाइज़र है तो उसकी उम्र का अंदाज़ लगाना
3 प्रश्नपत्र के पीछे पिकासो स्टाइल में चित्रकारी करना
4 याद करना कि नकल के लिए पिछली रात तैयार की गईं पर्चियां शरीर में कौन कौन सी जगह विराजमान हैं
5 जियोमेट्री बॉक्स की एक-एक चीज़ के ब्रैंड नेम से लेकर उनकी उत्पत्ति पर विचार करना (टाइम तो पास करना है न)
6 अपने को कोसना कि क्यों पिछली रात पढ़ाई के लिए बेकार में काली की
7 इम्तिहान से छूटते ही मूवी और बियर की रूपरेखा दिमाग में तैयार करना

एक टिप्पणी भेजें

44 टिप्पणियाँ
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.
  1. "और भी गम है ज़माने में ब्लॉगिंग के सिवा..."

    बिल्कुल सही कहा आपने। पहले स्वास्थ्य फिर आवश्य कार्य और उसके बाद ब्लोगिंग।

    हमारी कामना है कि आप शीघ्रातिशीघ्र स्वास्थ्यलाभ प्राप्त करें।

    जवाब देंहटाएं
  2. टंकी पर चढने से परहेज क्यों अब तो हर टंकी पर लिफ्ट लगवाने की योजना पर अमल भी हो चुका है... स्वास्थ्य ह्रास के कीमत पर ब्लागिंग नही नही ... निर्णय जायज है.
    मस्त स्लागओवर

    जवाब देंहटाएं
  3. हम तो यह सब कुछ सह चुके हैं इसलिये ब्लॉग लेखन के लिये दिमाग पर जोर ही नहीं डाल पा रहे हैं।

    जवाब देंहटाएं
  4. ई-मेल से मिली ललित शर्मा की टिप्पणी-

    खुशदीप भाई,
    स्थिति तो बराबर है, शुगर तो बढ़ी रहती है। अब मै भी यही करुंगा की सप्ताह में दो तीन पोस्ट ही लगाई जाए।
    इससे सोना तो समय पर हो पाएगा। नही तो आगे खतरा बढ सकता है। आपने बहुत अच्छा निर्णय लिया, सही समय पर। स्वास्थ्य पर ब्लागिंग का विपरीत प्रभाव तो पड़ता हैं यह तो सिद्ध हो चुका है।

    इस निर्णय का स्वागत हैं।

    जवाब देंहटाएं
  5. बाकी सबकी आँखें खोलने वाली पोस्ट.....जल्दी स्वास्थ लाभ हो....

    शुभकामनायें

    जवाब देंहटाएं
  6. खुशदीप जी, हम तो यह निर्णय कुछ समय पहले ही ले चुके हैं (बस घोषणा नहीं की थी), स्थितियाँ लगभग आपके समान ही हैं, मेरा पुत्र भी 11वीं में पहुँचा है अतः अगले दो महत्वपूर्ण वर्ष तथा उसके बाद के "विधि-विधान" हेतु खर्चों की कल्पना ने ही नींद उड़ा रखी है…।

    अतः आपका निर्णय भी एकदम सही है। वैसे "हफ़्ते में दो बार" भी काफ़ी अच्छा ही है… :) शुभकामनाएं

    जवाब देंहटाएं
  7. अब टाइम बचाने की सोच ही ली है तो कुछ समय नियमित योग भी कर लिया करो भाई, साथ ही आयुर्वेद की भी कुछ कमाई करवा दो :-) हो सकता है कि घुटनों को अक़्ल नहीं तो शायद कुछ तरस ही आ जाए.

    जवाब देंहटाएं
  8. खुशदीप भाई !
    हमारी शरण में आ जाओ , २ घंटे की पहली सिटिंग कम्पयूटर पर, चाय नाश्ता मुफ्त में , कोई फीस नहीं घर बुलाओगे तो अपने खर्चे पर जायेंगे चिंता न करें ! हम बड़े दिन से एक मरीज ढून्ढ रहे हैं कुछ प्रयोग करने को ! २५-३० साल से होमिओपैथी समझने की कोशिश कर रहे हैं !बिना मरीज न हम होमिओपैथी को समझ पा रहे हैं ना होमिओपैथी हमें समझ पा रही है !
    बताओ कब मिलोगे ??

    जवाब देंहटाएं
  9. वैसे भी रोज-रोज मूल लेखन नहीं हो पाता। या तो अनुवाद होता है या फिर वैसे ही। बस जब मन करे कि आज विषय दिल को चुभ रहा है तब ही लिखना चाहिए। आप शीघ्र स्‍वास्‍‍थ्‍य लाभ करें, प्रभु से यही प्रार्थना है।

    जवाब देंहटाएं
  10. @ सतीश सक्‍सेना

    क्‍या आपकी होमिओपैथी मेरी इंडिका कार का स्‍वास्‍थ्‍य भी दुरुस्‍त कर देगी। तो माननीय रतन टाटा से की गई अपील http://nukkadh.blogspot.com/2010/04/blog-post_4749.html वापिस लेकर, भाई खुशदीप सहगल के स्‍वास्‍थ्‍य के लिए माननीय स्‍वास्‍थ्‍य मंत्री को एक अपील जारी कर दी जाए।

    पर वे तो खुद ही अपना इलाज, देसी टंकी पर न चढ़ना और न उतरना वाला, मतलब बीच में ही रहना - कर रहे हैं ?
    पर मेरी कार इतनी समझदार नहीं है जितने समझदार खुशदीप भाई हैं।

    जवाब देंहटाएं
  11. खुशदीप सर,
    आप वाकई बहुत परिपक्व इंसान हैं।

    जवाब देंहटाएं
  12. sahi Nirnay!

    apan bhi pahle lage rahte the post par post dalne me, fir dhire dhire khud hi samajh me aaya ki self control jaruri hai isliye dhire dhire kam kiya bich me to hamne mahino nahi dali apne blog par post. lekin fir laute aur ab vahi bich bich me.

    shubhkamnayein...

    जवाब देंहटाएं
  13. अच्छा निर्णय लिया है…………………जल्द ठीक हों ………………॥ज़िन्दगी मे सब चीजें जरूरी हैं…………हर काम को उसकी उपयोगिता के आधार पर करने पर कोई समस्या नही आती।

    जवाब देंहटाएं
  14. खुशदीप भाई , मैं तो शुरू की कुछ पंक्तियाँ पढ़कर ही जान गया था कि आप मिस्टर एक्स बन चुके हैं । और भी न जाने कितने ऐसे हीरो निकलेंगे इस बिरादरी में । लेकिन देर आयद , दूरस्त आयद। उम्मीद है कि आपके इस लेख से औरों को भी प्रेरणा मिलेगी। हफ्ते में दो ---दो के बाद कभी नहीं (हफ्ते में )। बढ़िया विचार है। शनिवार और रविवार को घर परिवार और मित्र मंडली --कैसी रहेगी।

    साहसी लेख।

    जवाब देंहटाएं
  15. अरे हाँ , हमारी इस हफ्ते की दो पोस्ट पढना मत भूलना।

    जवाब देंहटाएं
  16. अजी हमारे यहां टंकी पर चढने के लिये स्पेशल रियाते दी जा रही है, एक ब्लांगर के साथ दुसरा फ़्रि, एक महिना ऊपर रहे एक सप्ताह फ़्रि... वेसे मै अब धीरे धीरे इस नशे से दुर हो रह् हूं.डॉ टी एस दराल जी तो बहुत पहले से कह रहे हि कि बचो इस नशे से

    जवाब देंहटाएं
  17. अति सदैव बुरी होती है.....
    आप की सलाह पर अमल करते हैं। पहले सप्ताह मे एक पोस्ट लिखते थे...अब पन्द्रह दिनों में एक लिखा करेगें :-)

    जवाब देंहटाएं
  18. आखिर ले ही लिया ना पंगा?

    ब्लॉगिंग ने इस हाल में पहुंचा दिया कि शक्ल से ही बेवड़ा लगने लगे! ये इश्क नहीं आसां, इक आग का दरिया है!!!

    जो खत्म हो किसी जगह ये ऐसा सिलसिला नहीं

    मिलते हैं ब्रेक के बाद :-)

    जवाब देंहटाएं
  19. लो और सुनो इन अंगरेजी डाक्टरों की सलाह और भुगतो बिना बात का टेंशन और ब्लागरी से किनारा. जब आपको इतनी तकलीफ़ थी तो सीधे डा. ताऊनाथ अस्पताल चले आना था, वहां रामप्यारी से कैट-स्केन करवाकर इलाज शुरु करवा लेते. ठिक भी हो जाते और सप्ताह की कम से कम १४ पोस्ट लिखने लग जाते. कैट-स्केन का खरचा भी नाम मात्र का ७५००/+ कर अतिरिक्त था.

    हम तो अब भी सलाह देंगे की सीधे चले आवो..इन उटपटांग डाक्टरों के चक्कर मे मत पडो...समीरलाल जी भी रामप्यारी से कैट-स्केन करवाकर ही इलाज करवाते हैं. आगे आपकी मर्जी.

    रामराम.

    जवाब देंहटाएं
  20. अलविदा कहना तो कायरता होगी!
    हाँ, छुट्टी अवश्य ली जा सकती है!

    जवाब देंहटाएं
  21. स्वास्थ्य सुधार और बच्चे की अच्छी पढ़ाई के लिये मंगलकामनायें।

    जवाब देंहटाएं
  22. बी एस पाबला जी तो लगता है एकदम मूड में हैं :)

    बहुत से लोग इस तरह की नियमावली का पालन कर रहे हैं, हफ्तें में एक या दो पोस्ट.........बाकी टाईम पठन पाठन........लेकिन घोषणा नहीं करते। सुरेश चिपलूणकर जी की तरह अपन भी वही कर रहे हैं :)

    जवाब देंहटाएं
  23. स्वास्थय तो सर्वोपरि है भाई. हफ्ते में दो बार लिखना और बाकी जितना समय मिल पाये उतना पढ़ने से, आराम बहुत मिल जाता है. कभी कभी लगातार दो दिन या एक ही दिन में दो आलेख भी हो जाते हैं, मगर पोस्ट हफ्ते में बस दो बार-तो कभी लम्बे समय तक लिखने का मूड न भी हो, तो मटेरियल पड़ा रहता है, नो टेंशन!!


    बढ़िया निर्णय लिया, शुभकामनाएँ. हेल्थ का जरा ध्यान रखें. अभी उम्र ही क्या है आखिर? :)

    जवाब देंहटाएं
  24. हें हें हें , देख रहा हूं कि डा. दराल साहब की सलाह खूब असर कर रही है , चलिए अच्छा है अब पाठकों की संख्या बढेगी .मेरा मतलब अब सबको अपनी पोस्टों पर टिप्पणियां खूब जम कर मिलेंगी । और हू हा हा हा पोस्टों की सारी कसर पूरी करने के लिए हम हैं न । आज से ही ओवर टाईम शुरू कर देते हैं ।

    मजाक से इतर ये सच में ही उचित है कई कारणों से

    जवाब देंहटाएं
  25. भैया सेहद बहुत ज़रूरी है..थोडा थम थम कर लिखे तो भी बढ़िया है..फिर जब ठीक महसूस करने लगे तो चाहे तो फिर डेली तो डेली पे आ जाए..पर कभी कुछ दिन आराम कर लीजिए तो अच्छा....स्वास्थ्य लाभ की शुभकामनाएँ...बाकी स्लॉग ओवर तो एकदम सही है...

    जवाब देंहटाएं
  26. अब का करें राम ई मक्खन बूढ़ा गया
    सब तो लिखे रोज़ रोज़
    वो दो पोस्ट पर आ गया (२)
    अब का करें राम ई मक्खन बूढ़ा गया

    अब जब सोच लिया है...तो ठीक ही है...
    वैसे ...
    बहुत कठिन है डगर ब्लॉगवट
    झटपट भरोगे जी मटकी पोस्ट की
    हाँ नहीं तो...!! :)
    दिल से दुआ है आप जल्दी ठीक हो जाएँ...

    जवाब देंहटाएं
  27. हम जैसे ठलुये भी दिमाग नही लगा पाते रोज़ एक पोस्ट लिखने को जबकि आप तो जानते ही है अपन तो चिन्ताविमुख ,ईश्वर की दया पर पलने वाले लाट साहब सरीखे है जो अजगर करे ना चाकरी पंछी करे ना काम के उत्क्रष्ट उधारण है .
    हा रात मे जागने के कारण हमारे डा.साहब भी ब्लड प्रेशर की गोली बदल चुके है .
    बहुत दिनो से मन मे था आपसे अति ब्लोग्गिग के बारे मे बात करु लेकिन संकोचवश नही कर पाया .
    पहला सुख निरोगी काया, दूसरा सुख पास में माया, तीसरा सुख सुन्दर नारी, और चौथा सुख संतान हो आज्ञाकारी. सर्व सुखसम्पन है ही आप . पुर्वजन्मो के डाक्टरो के कर्जे होते है जो इस जन्म मे उतारने होते है आप जल्दि उरिण हो यही ईश्वर से कामना है

    जवाब देंहटाएं
  28. दस साल पहले .....???
    मेरठ में ....???
    कौन थी वो ....????

    ओ जी अपनी सेहत दा ख्याल करो ..कुछ दिन हफ्ते विच इक ही पोस्ट कर दिओ ...ठीक हों ते दो कर देना ....उरिक एसिड नाल वि पैरां विच दर्द हुंडी है ....!!
    दुआ है आप जल्द तंदरुस्त हों .....!!

    जवाब देंहटाएं
  29. जानकर दुःख हुआ कि आप इतनी तकलीफ में हैं.. अच्छा है कुछ समय विश्राम करें, मैं भी आपका अनुसरण करता हूँ.

    जवाब देंहटाएं
  30. आपने जो निर्णय लिया है वो सही होगा. आपकी पोस्ट का इंतज़ार रहेगा

    जवाब देंहटाएं
  31. सही कहा जी हम भी सुधर गए :)

    घर वालों ने ऐसी डाट पिलाई
    ७-८ घंटा से २ घंटा पर आ गए :)

    अब लग रहा है मेरे पास २४ घंटे की जगह ३६ घंटे हो गए हों :)
    बड़ी बुरी लत है जी

    भगवान बचाए औरों को हम तो बच गए :)

    बोलो तारा रा रा :)

    जवाब देंहटाएं
  32. ओह! सॉरी भैया... आजकल लेट हो जा रहा हूँ... मुझे आपकी बहुत फ़िक्र लग गई है.... आप अपना ख्याल रखियेगा.... इस वक़्त तो आप सो रहे होंगे.... मैं आपको सुबह फोन करता हूँ....

    Take care of urself....

    जय हिंद...

    जवाब देंहटाएं
  33. पहला सुख निरोगी काया ..इसलिए पहले उधर ही ध्यान देना चाहिए ...
    और भी गम हैं ज़माने में ब्लोगिंग के सिवा ...
    शीघ्र स्वस्थ्य लाभ करे ...!!

    जवाब देंहटाएं

  34. Better Late than Never,
    मैं चाह रिया था कि तुमको एक नसीहत दूँ कि भई थोड़ा ब्रेक दे,
    ज़ल्दी खल्लास हो जायेगा, डर था कि कहीं तू आटँकी न बन जाये ।
    ले हो गया न ? मेरे को सॉरी क्यों बोलता, अपुन रोज 10 मरीज़ से ज़्यादा पकड़ते ही नहीं..
    और वह सभी लम्बी रेस के थके हुये घोड़े होते हैं । बस मेरी फ़ीस भिजवा दे, और अपनी लगाम कुछ दिनों के लिये बीबी के हाथों पकड़ा दे, या मैं अपनी वाली भेज दूँ ?
    लिखना बन्द न करना, तुझसे उम्मीदें जगी हैं । लिखता रह.. सक्रियता, धाक, पसँद, धड़ाधड़ तो बस बहाना है, आख़िर को सब यहीं रह जाना है । वैसे भी 21 दिसम्बर 2012 को दुनिया खत्म होना चाहती है, फिर तो वहीं अपना ठिकाना है ।

    बस एक चिन्ता लग पड़ी है, तू लिखता था तो मैं आलसी और लिखाई-चोर हो गया था । अब मज़बूरन कुछ न कुछ मुझे ही लिखना पड़ेगा, वह लिख दूँगा पर मेरे को कुछ श्लॉग-ओवर उधार दे देना । Take Care... otherwise a caretaker my arrive at scene, नहीं जी, भगवान तुझे लम्बी ज़िदगी देगा, ज़िन्दादिलों से घबड़ाता है । कहीं वे उसी की टोपी न उछाल दें । मस्त रह !


    जवाब देंहटाएं
  35. तू की जगह आप कर के और फीस वाली बात हटा कर डॉ. अमर जी का बयान आपके लिए मेरी तरफ से भी...
    आपसे उम्मीदें जगी हैं यह कहने की बात नहीं आदत हो गयी थी... याद है ना BBC :)

    जवाब देंहटाएं
  36. बाप रे खुशदीप भाई,
    आप अपनी सेहत का ख़्याल रखिये...ये तो चिन्ता करने वाली बात है, जिसे आप यूँ हँसी-हँसी में कह गये. ब्लॉगिंग रोज़ कीजिये या हफ़्ते में कुछ दिन लेकिन प्लीज़ स्वास्थ्य का ध्यान अवश्य रखिये.

    जवाब देंहटाएं
  37. यूरिक एसिड बढ़ गया, पेट तो मैं दिल्ली में बढ़ा हुआ देख ही चुका था, चेहरे से तो नहीं लेकिन ऊपर वाले ने जो नशीली आँखें बख्शी हैं, उससे डाक्टर क्या, राह चलता भी कोई पूछ ही लेगा कि भाई इस इलाके में कहाँ मिलती है, बता दो, आप तो जानते ही होगे.
    सेहत का ध्यान रखने के लिए ब्लागिंग में कटौती के जो नुस्खे आजमाए जा रहे हैं वो वैसे ही हैं जैसे कोई चेन स्मोकर यह तय करे कि कल से सिर्फ दो सिगरेट पूरे दिन में. 'छुटती नहीं है मुंह से ये काफ़िर लगी हुई".
    मुझे संजीदगी से यह कहना पड़ रहा है मेरी पूरी हमदर्दी आपके साथ है. सतीश भाई ने तो अपनी मुफ्त सेवाओं का प्रलोभन भी दे रखा है. आजमा लें, उनकी २५ वर्षों की दबी हुई तमन्ना भी पूरी हो जाए और शायद आप खुशकिस्मत हों कि फायदा हो ही जाए.
    समस्या यह है कि ब्लागिंग के लिए बनाया गया टाइम टेबल कब तक कारगर होता है और इसमें बदपरहेज़ी कब तक रोकी जा सकती है. डाक्टर दराल साहब की पोस्ट से सबक लेने से बेहतर मुझे तो यह लगता है कि आप उनके इलाज और मशवरों पर अमल करते.
    एक बार फिर, मैं आपकी सेहत के लिए चिंता व्यक्त करते हुए संजीदगी से एक बात कहना चाहूँगा. शायद सोमवार या मंगलवार, मैं दिल्ली में हूँ, अलका जी (मेरा समस्त) भी होंगी. शायद कोई जड़ी-बूटी आपके दुःख को हल्का कर दे.

    जवाब देंहटाएं
  38. इस पोस्ट पर बहुत देर से पहुँचा हूँ। शायद दो दिन बाहर रहने से यह हुआ। मुझे नहीं लगता कि स्वास्थ्य की खराबी का कारण ब्लागीरी है।
    लेकिन स्वास्थ्य का ध्यान तो रखना ही चाहिए और पारिवारिक कर्तव्यों का भी। बेटे पर भी ध्यान देना ही होगा।
    आशा है शीघ्र स्वस्थ होंगे।

    जवाब देंहटाएं