बीजेपी की जो हालत है, उसे देखकर एक बार फिर अपना एक पुराना हरियाणवी किस्सा सुनाने का मन कर रहा है...हरियाणा में एक लड़की छत से गिर गई...भीड़ इकट्ठी हो गई...कोई कहने लगा डॉक्टर के पास ले जाओ...कोई हल्दी दूध पिलाने की सलाह देने लगा...सभी के पास अपने-अपने नुस्खे...लड़की बेचारी दर्द से कराह रही थी...तभी सरपंच जी आ गए...आते ही लड़की को दर्द से छटपटाते देखा...सरपंच जी ने तपाक से कहा...भई वीरभानी को दर्द तो घणा हो ही रिया से...इके नाक-कान और छिदवा दयो...बड़े दर्द में छोटे दर्द का पता कोई न लागे सू...
कुछ ऐसी ही हालत आज बीजेपी की है...लोकसभा चुनाव में बंटाधार, राजस्थान से सफाया, महाराष्ट्र में मात, यूपी उपचुनाव में एक-दो जगह छोड़ सभी जगह ज़मानत ज़ब्त...यानि ढहती दीवार को थामने के लिए संघ ने नितिन गडकरी जैसी भारी-भरकम हस्ती की ज़िम्मेदारी लगाई है...कल इरफान भाई ने बड़ा जो़रदार कार्टून पोस्ट पर लगाया था...कार्टून में बीजेपी की ढहती दीवार नितिन गडकरी को थमा राजनाथ सिंह भजते नज़र आ रहे थे...
52 साल के नितिन गडकरी वजन में ही भारी हैं...रही बात ज़मीन से जु़ड़ी होने कि तो जनाब ने आज तक जनता के बीच जाकर एक भी चुनाव नहीं जीता है...बैक डोर से महाराष्ट्र विधान परिषद में जरूर 1989 से एंट्री मारते आ रहे हैं...नब्बे के दशक के मध्य में ज़रूर छींका टूटा था...महाराष्ट्र में शिवसेना-बीजेपी सरकार में पीडब्लूडी मंत्री बनाए गए...नागपुर में संघ मुख्यालय के पास इतना विकास कराया कि अब संघ ने बीजेपी का विकास करने का ही बीड़ा थमा दिया...
सरसंघचालक मोहन भागवत ने मराठी मानुस नितिन गडकरी को सिर्फ उनकी नागपुर की पृष्ठभूमि की वजह से ही बीजेपी की कमान नहीं सौंपी है...इस बार भागवत गडकरी के ज़रिए कई प्रयोग एक साथ करना चाहते हैं...भागवत की चिंता बीजेपी से ज़्यादा संघ को मज़बूत होता देखने की है...संघ के संस्थापकों ने संघ की परिकल्पना सामाजिक संगठन के तौर पर की थी...भागवत इसी दिशा में आगे बढ़ना चाहते हैं...बीजेपी को भी वो गठजोड़ की मज़बूरी वाली एनडीए की प्रेतछाया से निकाल कर एक बार फिर...जो कहते हैं, वो करके दिखाते हैं...वाले दौर में ले जाना चाहते हैं...यानि अब हिंदुत्व को लेकर कहीं कोई समझौता नहीं होगा...गडकरी को बीजेपी के कायापलट के लिए नागपुर ने जो तीन सूत्री एजेंडा सौंपा है...उसमें आम आदमी के हित की बात करना सबसे ऊपर है...फिर विकास उन्मुख राजनीति और अनुशासन...अब गडकरी इन्ही तीन बिंदुओं पर डंडा हांकते नज़र आ सकते हैं...अटल-आडवाणी युग के सिपहसालार भागवत के दूत के तौर पर गडकरी की कुनैन की गोलियों को कितना हजम कर पाते हैं, देखना दिलचस्प होगा...
वैसे सुषमा स्वराज को भी आडवाणी के उत्तराधिकारी के तौर पर लोकसभा में नेता विपक्ष देखना भी कम दिलचस्प नहीं होगा...मनमोहन सिंह के मुकाबले आडवाणी के दांव पर बीजेपी को पिछले लोकसभा चुनाव में बुरी तरह पटखनी खानी पड़ी...अब सोनिया के मुकाबले सुषमा का तीर कितना सही बैठता है ये आने वाला वक्त ही बताएगा...सुषमा अच्छी वक्ता हैं, इस पर किसी को शक-ओ-सुबह नहीं...दलील देने में उनकी काबलियत का तभी पता चल गया था जब उन्होंने सत्तर के दशक में जॉर्ज फर्नाँडिज़ के लिए बड़ौदा डायनामाइट केस में दिग्गज वकील राम जेठमलानी की सहायक के तौर पर पैरवी की थी...सुषमा का वो विलाप देश आज तक नहीं भूला है जब उन्होंने 2004 में धमकी दी थी कि सोनिया देश की प्रधानमंत्री बनीं तो वो अपना सिर मुंड़वा लेंगी...2004 के लोकसभा चुनाव में ही सुषमा ने बेल्लारी में सोनिया के खिलाफ चुनाव लड़ा था...सुषमा चुनाव हार ज़रूर गई थीं लेकिन बेल्लारी में कन्नड बोल-बोल कर मतदाताओं का दिल ज़रूर जीत लिया था...
अब देखना ये है कि बीजेपी में चाहे मुखौटे बदल कर गडकरी और सुषमा स्वराज के आ गए हो, क्या ये भागवत युग बीजेपी में नए प्राण फूंक सकेगा या नेताओं का आपसी कलह कमल का पूरी तरह दम निकाल कर ही दम लेगा...
गडकरी आ गएओ, रंग चोखा आवे न आवे, बीजेपी को भी कोनी पता...खुशदीप
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सोमवार, दिसंबर 21, 2009
"नेताओं का आपसी कलह कमल का पूरी तरह दम निकाल कर ही दम लेगा..." आगे आगे दे्खिए होता है क्या? :)
जवाब देंहटाएं"बीजेपी की जो हालत है, उसे देखकर एक बार फिर अपना एक पुराना हरियाणवी किस्सा सुनाने का मन कर रहा है...हरियाणा में एक लड़की छत से गिर गई...भीड़ इकट्ठी हो गई...कोई कहने लगा डॉक्टर के पास ले जाओ...कोई हल्दी दूध पिलाने की सलाह देने लगा...सभी के पास अपने-अपने नुस्खे...लड़की बेचारी दर्द से कराह रही थी...तभी सरपंच जी आ गए...आते ही लड़की को दर्द से छटपटाते देखा...सरपंच जी ने तपाक से कहा...भई वीरभानी को दर्द तो घणा हो ही रिया से...इके नाक-कान और छिदवा दयो...बड़े दर्द में छोटे दर्द का पता कोई न लागे सू..."
जवाब देंहटाएंहा-हा-हा-हा, बहुत खूब खुशदीप भाई, क्या फिट किया, मान गए !
अजी खुशदी भाई आप भी कितने आशा वादी हैं मुझ से लिखवा कर ले लें अब बी. जे पी कभी भी एक बडी पार्टी के रूप मे उभर नहीं सकती हाँ किसी और की वैसाखियों पर खडी तो हो सकती है मगर अपने बल बूते पर चल नहीं सकती। सुशमा जी ने एक बार सिर मुन्डवा कर देख लिया है अब देखते हैं क्या लरती हैं नया। गडकरी जी को कितने लोग जानते हैं? मैने ही पहली बार नाम सुना उनका। बी जे पी बाजपयी जी तक ही थी बस । धन्यवाद । आज स्लागओवर कहाँ गया?
जवाब देंहटाएंखुशदीप जी,
जवाब देंहटाएंआपके लेख ने तो बची खुची कसर भी लात मार कर पूरी कर दी....अब उनका क्या होगा ???
ठोकर न लगाना वो खुद हैं गिरती हुई दीवारों कि तरह...
रहते थे कभी हमारे दिल में वो जान से भी प्यारों कि तरह...
फिर याद दिला देते हैं..... ज्वाइन करना है पोलिटिक्स...अभी मौका है...हम जैसे लोगों कि ज़रुरत है उन्हें.....तारीख तय कर लीजिये...हा हा हा ?:):)
एक साफ़-स्वच्छ छवि वाले, विकास के एजेण्डे को आगे रखने वाले गडकरी लाये गये हैं तब भी मीडिया वालों को तकलीफ़ हो रही है, नरेन्द्र मोदी को लाते तब भी तकलीफ़ होती, सुषमा स्वराज को लाते तब भी आपत्ति होती, आडवाणी बने रहते तब तो हो ही रही थी, मीडिया वालों की तकलीफ़ हम तो समझ रहे हैं, लोगों को समझाना बाकी है कि क्यों भोंदू राहुल गाँधी के नाम के जयकारे लग रहे हैं। यदि भगवान खुद धरती पर आकर भाजपा के अध्यक्ष बन जायें तब भी उन्हें आलोचना ही झेलना पड़ेगी यह तय है। वैसे आपने एक बात सही कही कि भाजपा को मजबूत करने की बजाय संघ को मजबूत करना अधिक आवश्यक है, जो कांग्रेसी गन्दगी भाजपा में घुस आई है उसे पहले किनारे करना होगा, तभी कुछ उद्धार सम्भव है। भारत की जनता को कभी भी कड़वी गोली पसन्द नहीं आती… लेकिन देना जरूरी है और शुरुआत "अपने घर" से की जाये तो क्या बुरा है।
जवाब देंहटाएंगड्करी अगर फ़ेल हो गये जिसकी पक्की उम्मीद है के बाद संघ के लोग क्या करेगें . क्या मोहन भागवत खुद ही अध्यक्ष बनेगें भाजपा के ?
जवाब देंहटाएंभैया राजनीति में अपुन तो गोल हैं, और गोल ही ठीक हैं।
जवाब देंहटाएंइसलिए कुछ नहीं बोलेंगे।
हाँ, टीचर्स से मुलाकात करवाने के लिए संपर्क करें :
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आजकल बड़े दिनों की छुट्टियाँ चल रही हैं ना।
गोदियाल जी सही कह रहे हैं. जब बडे दर्द हो रहे हों तो छोटे दर्द के काम निपटा लिये जाने चाहिये.
जवाब देंहटाएंध्यान दिया जाये.:)
रामराम.
ये ढहते दीवारों वाला मकान बचा पाना तो बहुत मुश्किल है...बिलकुल नयी नींव रखकर निर्माण करना होगा....पर ये करेगा कौन...ये आपसी कलह में लिपटे लोग??.दुःख तो होता है..एक मजबूत विपक्ष तक नहीं...
जवाब देंहटाएंभई अपून को तो पता नही, लेकिन अपून सोनिया को पसंद नही करते ओर भाजपा की कमजोरी इस काग्रेस को ओर मजबूत कर रही है, क्या भाजपा के पास कोई नेता नही ढंग का? कही भाजपा के संग यह देश भी ना डुब जाये, कोकि काग्रेस ने जो देश का हाल किया किसी से छुपा नही
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढि़या आलेख।
जवाब देंहटाएंक्या पता, दो सीट से फिर एक बार सत्ता का रास्ता युवा कंधो के मध्य से गुज़रे :)
जवाब देंहटाएंkuchh badamaashee ho rahee hai Blogvaanee men psand ka chatakaa naheen lag rahaa
जवाब देंहटाएंअभी तो तेल देखा है मित्र...
जवाब देंहटाएंतेल की धार देखिए...
बी.जे.पी अगर सुधर गई तो...
देश का खूबसूरते हाल देखिए
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जवाब देंहटाएं.
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खुशदीप जी,
किसी भी लोकतंत्र को सही से चलने के लिये सशक्त विपक्ष की भी जरूरत होती है।
"गडकरी को बीजेपी के कायापलट के लिए नागपुर ने जो तीन सूत्री एजेंडा सौंपा है...उसमें आम आदमी के हित की बात करना सबसे ऊपर है...फिर विकास उन्मुख राजनीति और अनुशासन..."
अगर यह बात सही है तो फिर अच्छे की ही उम्मीद रखनी चाहिये... तीनों बातें आज की जरूरत हैं... पर क्या धन्ना सेठों और पूंजीवादियों के चंगुल से इतनी आसानी से बाहर निकल पायेगी पार्टी... इतना हौसला और इच्छाशक्ति बची है कर्णधारों में अब तक ...यह एक यक्षप्रश्न होगा...
खुशदीप जी,
जवाब देंहटाएंउम्मीद पर दुनिया कायम है। अच्छे की ही उम्मीद रखिये।
अल्बर्ट आइंस्टीन ने भी कहा था "कल से सीखो, आज के लिए जीओ, कल के लिए उम्मीद रखो"
जय हिंद!
भारतीय जनता पार्टी की आपसी कलह इसे ले डूबी है ....हर हालत में नुक्सान देश और जनता का ही है जो एक मजबूत विपक्ष नहीं होने के कारण सत्ता पक्ष के निरंकुशता को सहन कर रही है ...!!
जवाब देंहटाएंnice
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