एयर इंडिया का पूरा सफ़रनामा, JRD Tata ने 1932 में पौधा लगा कर कैसे उसे सींचा? इंदिरा गांधी की 1978 में JRD को एयर इंडिया की चेयरमैनशिप से हटाए जाने पर लिखी ऐतिहासिक चिट्ठी, क्या एयर इंडिया के महाराजा को घर वापस आ कर मिल सकेगा आर्थिक बदहाली से छुटकारा?
नई दिल्ली (10 अक्टूबर)।
भारत में पैसेंजर्स फ्लाइट की
उड़ान शुरू होने में अहम भूमिका निभाने वाला टाटा घराना एक बार फिर नेशनल कैरियर
एयर इंडिया की कमान संभालने के लिए तैयार है. ऐसे में कांग्रेस के सीनियर लीडर
जयराम रमेश की ओर से सोशल मीडिया पर शेयर किया गया एक लैटर सुर्खियों में है. ये
लैटर देश की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की ओर से एयर इंडिया के फाउंडर जहांगीर
रतनजी दादाबॉय यानि जेआरडी टाटा को लिखा गया था जब उन्हें इस एयरलाइन के चेयरमैन
पद से हटने के लिए मोरारजी देसाई की अगुआई वाली तत्कालीन जनता पार्टी सरकार की ओर
से कहा गया था. इससे पहले जेआरडी टाटा 25 साल से चेयरमैन पद पर बने आ रहे थे.
ट्विटर पर इस लैटर को अपलोड करने के साथ रमेश ने लिखा, फरवरी 1978 में जेआरडी टाटा को एयर इंडिया के चेयरमैन पद से मोरारजी देसाई सरकार ने हटा दिया. इस पोजिशन पर वो मार्च 1953 से बने हुए थे. यहां पेश है उस वक्त सत्ता से बाहर इंदिरा गांधी और जेआरडी टाटा के बीच क्या संवाद हुआ था, ये चिट्ठी इंदिरा गांधी की हाथ से लिखी हुई थी.
In February 1978, JRD Tata was summarily removed by the Morarji Desai Govt as Chairman of Air India—a position he had occupied since March 1953. Here is an exchange that followed between JRD and Indira Gandhi, who was then out of power. Her letter was handwritten. pic.twitter.com/8bFSH1n6Ua
— Jairam Ramesh (@Jairam_Ramesh) October 9, 2021
1 फरवरी 1978 को तत्कालीन मोरारजी
देसाई सरकार ने चेयरमैन जेआरडी टाटा को एयर इंडिया और इंडियन एयरलाइंस के बोर्ड्स
से बाहर का रास्ता दिखा दिया था. 1980 में कांग्रेस की केंद्र की सत्ता में वापसी
हुई तो इंदिरा गांधी ने जेआरडी टाटा को दोनों बोर्ड में फिर बहाल कर दिया. हालांकि
टाटा फिर चेयरमैन नहीं बने.
इंदिरा गांधी और जेआरडी टाटा के
बीच क्या संवाद हुआ, ये जानने से पहले टाटा घराने और एयर इंडिया के जुड़ाव के
इतिहास के बारे में थोड़ा जान लिया जाए.
जेआरडी टाटा ने 1932 में एयर इंडिया की स्थापना की और इसका नाम
टाटा एयरलाइंस रखा. 1946 में ये नाम बदलकर एयर इंडिया कर दिया गया. देश के आज़ाद
होने के बाद अक्टूबर 1947 में टाटा ग्रुप ने एयर इंडिया इंटरनेशनल शुरू करने के
लिए केंद्र सरकार को प्रस्ताव दिया. केंद्र को एयर इंडिया वेंचर में 49 फीसदी
हिस्सेदारी रखनी थी, जिसमें 2 फीसदी अतिरिक्त हिस्सेदारी ले सकने का भी प्रावधान
था. टाटा ग्रुप को इसमें 25 फीसदी हिस्सेदारी मिलनी थी बाकी हिस्सेदारी सार्वजनिक
रहनी थी. इस प्रस्ताव को कुछ ही हफ्ते में जवाहर लाल नेहरू सरकार ने स्वीकार कर
लिया.
पांच साल बाद नेहरू सरकार ने एयर
इंडिया का राष्ट्रीयकरण करने का फैसला किया. 1953 में सरकार ने एयर इंडिया की बाकी
हिस्सेदारी खरीदने के लिए 2.8 करोड़ रुपए का भुगतान किया. राष्ट्रीयकरण के बावजूद
जेआरडी टाटा 1978 तक एयर इंडिया के 25 साल चेयरमैन बने रहे.
अब बात करते हैं उस लैटर की जो
इंदिरा गांधी ने 1978 में जेआरडी टाटा को लिखा. इस लैटर में इंदिरा गांधी ने टाटा
को चेयरमैन पद से हटाने के तत्कालीन सरकार के फैसले पर दुख जताया और साथ ही एयर
इंडिया को खड़ा करने में टाटा की कोशिशों की तारीफ की. इंदिरा गांधी ने लिखा- आप
सिर्फ चेयरमैन ही नहीं थे बल्कि गहरी निजी तौर पर फिक्र रखने वाले फाउंडर और पालने पोसने वाले थे. आपकी यही विलक्षण
देखभाल थी कि आप छोटी से छोटी बारिकियों जैसे कि सजावट, एयर होस्टेस की साड़ियों
तक का ध्यान रखते थे. इसी सब ने एयर इंडिया को इंटरनेशनल स्तर पर असल में लिस्ट
में टॉप तक पहुंचाया, हमें आप पर और एयरलाइन पर गर्व है. कोई भी आपसे ये संतोष
नहीं छीन सकता और न ही इस संबंध में आपके प्रति सरकार के कर्ज़ को नीचा कर सकता
है.
इंदिरा
गांधी ने लैटर में जेआरडी टाटा के साथ अतीत की अपनी कुछ गलतफहमियों का भी हवाला
दिया. इंदिरा गांधी के मुताबिक उन्हें गहरे दबाव में काम करना पड़ता था और सिविल
एविएशन मिनिस्ट्री में भी कुछ राइवलरी थीं.
करीब दो हफ्ते बाद जेआरडी टाटा ने इंदिरा गांधी के लैटर का जवाब दिया. इसमें उन्होंने लिखा कि लैटर में एयरलाइंस को बनाने की अपनी कोशिशों को लेकर दिया गया उदार हवाला दिल को छूने वाला है. टाटा ने ये भी लिखा कि वो खुशकिस्मत हैं कि उन्हें वफादार और जोशीले सहयोगियों और स्टाफ का साथ मिला. साथ ही सरकार से मिले समर्थन का भी जिक्र करना चाहूंगा, अगर वो नहीं होता तो मैं अपने प्रयासों में थोड़ा ही हासिल कर सकता.
बहरहाल,
एयर इंडिया का महाराजा एक बार फिर अपने पुराने घर लौट रहा है. देखना होगा कि लंबे
अर्से से वित्तीय परेशानियां झेल रहे फ्लाइट के इस महाराजा की दिक्कतें दूर हो
पाती हैं या नहीं.