पत्रकारिता के छात्रों के
लिए करियर बनाने के लिए प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल हर तरह के माध्यम आज मौजूद
हैं...इंटरनेट और मोबाइल ने पत्रकारिता का स्वरूप ही बदल दिया है...अब घटना घटते
ही उसकी जानकारी दुनिया के कोने-कोने में पहुंच जाती है...ट्विटर, फेसबुक,
इंस्टाग्राम, व्हाट्सअप, ब्लॉग का भी न्यूज़ की दुनिया में जमकर इस्तेमाल किया
जाता है...ऐसा भी देखने में आता है कि जल्दी से जल्दी ब्रेक करने के चक्कर में कई
बार आधे-अधूरे तथ्यों के साथ ही ख़बर प्रसारित कर दी जाती है...अब सब कुछ इतना
फास्ट है कि दबाव में ये भी इंतजार नहीं किया जाता कि ख़बर की ठोक बजाकर पुष्टि हो
गई है या नहीं...पत्रकारिता इतनी चुनौतीपूर्ण हो गई है कि इसके छात्रों को अच्छी
तरह ट्रेंड करने के लिए पत्रकारिता के बुनियादी पहलू सिखाने के साथ-साथ आधुनिक
तकनीक से भी अवगत कराना बहुत जरूरी हो गया है...
आपने ये सब पढ़ लिया...अब
आपको बताते हैं कि भोपाल की माखनलाल चतुर्वेदी नेशनल यूनिर्सिटी ऑफ जर्नलिस्म एंड कम्युनिकेशन
ने क्या फैसला लिया है...भोपाल के बांसखेड़ी में इस यूनिवर्सिटी के नए परिसर का
निर्माण हो रहा है... अगले साल अप्रैल से पत्रकारिता की पढ़ाई का नया सत्र नए
परिसर में ही शुरू होगा...विश्वविद्यालय प्रबंधन ने फैसला किया है कि नए परिसर में
गोशाला भी बनाई जाएगी...अब आप सवाल करेंगे कि पत्रकारिता की पढ़ाई वाले
विश्वविद्यालय में भला गोशाला का क्या काम?
ठहरिए जनाब ठहरिए...किसी
नतीजे पर मत पहुंचिए...विश्वविद्यालय के कर्ताधर्ताओं के पास इसके लिए भी खूब तर्क
मौजूद हैं...विश्वविद्यालय के कुलपति बी के कुठियाला हों या रजिस्ट्रार दीपक शर्मा,
दोनों का ही कहना है कि 50 एकड़ वाले परिसर में 2 एकड़ जगह ऐसी है जिसका कोई उपयोग
नहीं था...इसके लिए कई सुझाव सामने आए...इनमें से एक सुझाव गोशाला बनाने का भी
था...
पत्रकारिता के छात्रों और
गोशाला के बीच क्या कनेक्ट है, इसका जवाब भी विश्वविद्यालय के पदाधिकारियों के पास
मौजूद है..उनका कहना है कि इससे विश्वविद्यालय के हॉस्टल में रहने वाले छात्रों को
खालिस दूध, घी, मक्खन उपलब्ध कराया जाएगा...साथ ही ऑर्गेनिक खेती की जाएगी जिसमें
गाय के गोबर का खाद के तौर पर इस्तेमाल होगा...इसके अलावा छात्रों के पास भी
गौसेवा के साथ गोशाला का प्रबंधन सीखने का विकल्प मौजूद रहेगा...
विश्वविद्यालय के
रजिस्ट्रार के मुताबिक निश्चित तौर पर ये नया प्रयोग है..नालंदा में पहले ऐसा होता
था...रजिस्ट्रार के मुताबिक विश्वविद्यालय को ये फैसला लेने का अधिकार है कि वो
अपनी अतिरिक्त जमीन का किस प्रायोजन के लिए इस्तेमाल करें...
जहां तक छात्रों
का सवाल है, कुछ इस फैसले का विरोध कर रहे हैं. वहीं कुछ का कहना है कि उन्हें इस
फैसले से कोई दिक्कत नहीं है बशर्ते कि पत्रकारिता की शिक्षा की समुचित सुविधाएं
उन्हें मिलती रहनी चाहिएं...
अब नया दौर
है...नए इंडिया में ऐसे प्रयोग तो बनते हैं बॉस...
#हिन्दी_ब्लॉगिंग
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन बलराम जाखड़ और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (25-08-2017) को "पुनः नया अध्याय" (चर्चा अंक 2707) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
ये नेता रहे तो, वतन बेंच देंगे !
जवाब देंहटाएंये पुरखों के सारे जतन बेंच देंगे
कलम के सिपाही अगर सो गए
हमारे मसीहा , अमन बेंच देंगे !
कुबेरों के कर्ज़े लिए शीश पर ये
अगर बस चले तो सदन बेंच देंगे
नए राज भक्तों की इन तालियों
के,नशे में ये भारतरतन बेंच देंगे
मान्यवर बने हैं करोड़ों लुटाकर
उगाही में, सारा वतन बेंच देंगे !