गुरमीत राम रहीम सिंह और उनके डेरे को लेकर अब
मेनस्ट्रीम मीडिया में तरह तरह के किस्से आ रहे हैं...गुफा, ब्लू फिल्म, यौन शोषण,
रिवॉल्वर, मारे जा चुके आतंकी गुरजंट सिंह से करीबी, किस तरह डेरा सच्चा सौदा की
गद्दी पाई आदि आदि...लेकिन यहां सवाल बनता है कि ये सब पंचकूला में सीबीआई की
विशेष अदालत की ओर से राम रहीम को यौन शोषण मामले में दोषी ठहराए जाने के बाद
क्यों शुरू हुआ...ये वारदात 1999 में हुई और 2002 में पीड़ित साध्वी ने तत्कालीन
प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को गुमनाम चिट्ठी लिखकर अपनी व्यथा को दुनिया के
सामने जाहिर किया...मेनस्ट्रीम मीडिया आखिर अब ही क्यों राम रहीम को लेकर
जागा...15 साल तक वो क्यों कुंभकर्णी नींद सोया रहा...
15 साल पहले सिरसा से स्थानीय सांध्य दैनिक ‘पूरा सच’ निकालने वाले पत्रकार रामचंद्र छत्रपति ने साध्वी की चिट्ठी को ज्योंकी त्यों छापने की हिम्मत ना दिखाई होती तो राम रहीम का सलाखों के पीछे होना कभी
हक़ीक़त नहीं बन पाता...उस वक्त छत्रपति ने राम रहीम के गढ़ सिरसा में ही
पत्रकारिता का धर्म निभाते हुए साहस दिखाया... चिट्ठी के ‘पूरा सच’ में छपने के कुछ ही दिन बाद छत्रपति पर 24 अक्टूबर 2002 को कातिलाना हमला हुआ...रिपोर्ट के मुताबिक, छत्रपति को घर से बुलाकर पांच गोलियां
मारी गई थीं...21 नवंबर
2002 को छत्रपति की
दिल्ली के अपोलो अस्पताल में मौत हो गई थी...ये केस भी कोर्ट में चल रहा है...इस पर 16 सितंबर को सुनवाई होनी है...
छत्रपति ने जैसी हिम्मत दिखाई थी, अगर
नेशनल मेनस्ट्रीम मीडिया ने उस वक्त वो किया होता तो शायद हो
सकता था कि राम रहीम के पापों का घड़ा बहुत पहले ही फूट गया होता...ये भी हो सकता
था कि शायद छत्रपति हमारे बीच जीवित होते...सवाल सिर्फ राम रहीम का नहीं
है...आसाराम के मामले में भी हम पहले ये देख चुके हैं...
ये बाबा टाइप के लोग क्यों और कैसे फलते-फूलते
रहते हैं? कौन इन्हें इतना आदमकद बनाने में मदद
करता है कि ये संविधान और क़ानून को ही चुनौती देने की स्थिति में आ जाते हैं? भीड़तंत्र
को ये अपनी ऐसी ताक़त बना लेते हैं कि सारी क़ानून-व्यवस्था ही इनके सामने पंगु बन
कर रह जाती है...इनके ख़िलाफ़ कार्रवाई तभी होती है जब कोर्ट संज्ञान लेता
है...राम रहीम के मामले में हमने अभी देखा कि कुछ सुरक्षाकर्मी (पुलिसवाले) जो शासन
की ओर से ही उपलब्ध कराए गए थे, उन्होंने संवैधानिक कर्तव्य को ही दरकिनार कर
दिया...उनकी लॉयल्टी अब राम रहीम के लिए हो चुकी थी...इन पुलिसवालों को ज़रूर ये
पता होगा कि वो इस हरकत के लिए डिसमिस भी किए जा सकते हैं...लेकिन उन्होंने फिर भी
ये ख़तरा मोल लिया...क्यों? बताया जा रहा है कि ये पुलिसवाले पिछले
6-7 साल से राम-रहीम की सिक्योरिटी में थे...ज़ाहिर है कि इतने वर्षों में ये इतने
संतृप्त हो चुके होंगे कि इन्हें राम रहीम के लिए वफ़ादारी दिखाना ही बेहतर लगा...
इन पुलिसवालों को भी छोड़ो, राम रहीम को Z सिक्योरिटी
सुरक्षा मुहैया कराने वाले तो दिल्ली में बैठे कर्णधार ही हैं...स्वच्छता अभियान
में मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर खुद राम रहीम के साथ झाड़ू पकड़े दिखते हैं....2014 में सिरसा में प्रधानमंत्री नरेंद्र
मोदी चुनावी भाषण देने गए थे तो उन्होंने भी डेरे और इसके प्रमुख की शान में कसीदे
गढ़े थे...बीजेपी ही नहीं कांग्रेस, आम आदमी पार्टी समेत तमाम राजनीतिक दल ही
वोटों की चाहत में डेरे में हाजिरी लगाते रहे हैं...डेरे के कथित प्रेमियों की
इतनी तादाद है कि पंजाब और हरियाणा के कुछ क्षेत्रों में चुनाव नतीजा किसी के पक्ष
में भी पलट देने की ताकत रखते हैं...
चुनावी गुणाभाग और डेरे के पैसे की ताक़त इतनी
बड़ी रही कि मेनस्ट्रीम मीडिया ने भी कोर्ट के फैसले से पहले कभी उनके कारनामों को
किसी स्टिंग के जरिए सामने लाने की कोशिश नहीं की...सुना तो ये भी है कि डेरे का
एक मीडिया रिलेशन सेल भी था जो पत्रकारों को डेरे में बुलाकर उपकृत करता रहता...ऐसे
में 15 साल पहले छोटा सा अखबार चलाने वाले और पत्रकारिता धर्म निभाते जान देने
वाले रामचंद्र छत्रपति के लिए सम्मान और भी बढ़ जाता है... Courage in Journalism Awards देने वालों को इस प्रस्ताव पर गौर करना चाहिए कि इस
अवार्ड को रामचंद्र छत्रपति के नाम पर कर दिया जाए..
रामचंद्र छत्रपति ने ना सिर्फ साध्वी यौन शोषण
मामले में बल्कि साध्वी के भाई व सेवादार रणजीत की हत्या और डेरे की अन्य
गतिविधयों को लेकर भी खुलासा किया था...पंचकूला में सीबीआई कोर्ट की ओर से राम
रहीम पर फैसला सुनाए जाने के बाद छत्रपति के बेटे अंशुल और अन्य परिजनों ने राहत
की सांस ली है...साथ ही उन्हें अपने लिए भी इनसाफ़ की भी उम्मीद बंधी है जिसका वो शिद्दत
से इंतज़ार कर रहे हैं...अंशुल का कहना है कि 15 साल बाद अब रात
को चैन से सो सकेंगे...पिता की हत्या के वक्त अंशुल महज़ 21 साल के थे...अंशुल ‘पूरा सच’ अखबार के माध्यम से ही पिता की छोड़ी मुहिम को आगे बढ़ा रहे हैं...साध्वी
यौन शोषण मामले में तो कोर्ट ने राम रहीम को दोषी करार दे दिया है लेकिन रामचंद्र
छत्रपति की हत्या का ‘पूरा
सच’ नहीं अभी
अर्धसत्य ही सामने आ सका है...
हैरत की बात है कि साक्षी महाराज जैसे
सांसद-नेता भी देश में है जो खुले आम राम रहीम की वकालत कर रहे हैं...कह रहे हैं
कि एक शिकायतकर्ता की बात तो सुन ली लेकिन डेरे के पांच करोड़ समर्थकों की नहीं
सुनी जो राम रहीम को भगवान मानते हैं...फ़र्क इतना है कि साक्षी महाराज खुल कर जो
कह रहे हैं वही बात कई नेताओं के मन में है...अंदरखाने उन्हें भी चिंता है कि राम
रहीम के ख़िलाफ़ कुछ बोला तो उनके समर्थकों की नाराजगी का सामना करना पड़ सकता
है...ये भी दलीलें दी जा रही हैं कि बड़ी संख्या में लोगों का राम रहीम ने नशा
छुड़ाया इसलिए शराब लॉबी डेरे के ख़िलाफ़ काम कर रही है...स्वच्छता अभियान में
डेरे की सक्रियता का हवाला दिया जा रहा है...जाहिर है कि राम रहीम और उनके डेरे को
लेकर राजनेताओं के मन में सॉफ्ट कॉर्नर नहीं होता तो वैसी नौबत नहीं आती जैसी 25
अगस्त को कोर्ट के फैसले के बाद आई...तमाम सुरक्षा उपायों और कोर्ट के सख्त
निर्देशों के बावजूद पंचकूला, सिरसा समेत कई जगहों पर हिंसा और अराजकता का नंगा
नाच देखा गया..दिल्ली के कुछ हिस्से भी इससे अछूते नहीं रहे...ट्रेनें कैंसल, बसें
कैंसल, फ्लाइट के किराए आसमान पर...जो यात्री जहां थे वहीं फंस गए...ट्रेनें, रोड
ट्रांसपोर्ट के साधन नहीं होने से वैष्णो देवी (कटरा) में 50,000 से ज्यादा
श्रद्धालुओं के फंसे होने की ख़बर आई...
अब उम्मीद यही करनी चाहिए कि 28 अगस्त को
राम रहीम को सजा सुनाए जाने के बाद वैसी स्थिति नहीं बनने दी जाएगी...अब तो कम से
कम हरियाणा, पंजाब और केंद्र सरकार को इस दिशा में पहले से ही सख्त कदम उठा लेने
चाहिएं....
#हिन्दी_ब्लॉगिंग
मीडिया स्वयंभू चौथा खंबा जब से बना है तब से वह भी बाक़ी तीन खम्बों की तरह हो गया है। आज सब छत्रपति को याद कर रहे है शायद उनकी हत्या की कोई रिपोर्ट मीडिया में आइ होगी।
जवाब देंहटाएंमीडिया की पिटाई पारितोषिक है उनके कारनामों की
काश! यह होता. काश! वो होता. वोटों की राजनीती के चलते मगर होता वो है जो अकूत दौलत के स्वामी के लोग चाहते हैं.
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (28-08-2017) को "कैसा सिलसिला है" (चर्चा अंक 2710) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन ऋषिकेश मुखर्जी और मुकेश - ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
जवाब देंहटाएंसमसामयिक पोस्ट
जवाब देंहटाएंबाबा संस्कृति से मुक्ति के लिए फिर से एक स्वतंत्रता संग्राम लड़ना होगा।।
जवाब देंहटाएंजागरूक विचारशील सामयिक प्रस्तुति
nice news thanks for sharing .it's very helpful for me
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