विदेश मंत्री सुषमा स्वराज पर सोमवार को पूरी दुनिया की नजरें टिकी थीं कि वे संयुक्त राष्ट्र महासभा के 71वें अधिवेशन में क्या बोलती हैं. खास तौर पर आतंकवाद को लेकर. इसी मंच से कुछ दिन पहले पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने अपने भाषण में जिस तरह कश्मीर का मुद्दा उठाया था, उसे लेकर भी हर किसी को इंतजार था कि सुषमा किस तरह पलटवार करती हैं. सुषमा ने इस पर दो टूक कहा- "जिनके अपने घर शीशे के होते हैं वो दूसरों पर पत्थर नहीं उछाला करते."
सुषमा ने अपने भाषण में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उसी लाइन को आगे बढ़ाया कि पाकिस्तान को दुनिया के मंच पर अलग-थलग करने के लिए भारत कोई कसर नहीं छोड़ेगा. सुषमा ने साथ ही विश्व समुदाय को भी चेताया कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में सभी को एकजुट होने की आवश्यकता है. सुषमा ने गिनाया कि भारत ने 1996 में अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद के खिलाफ व्यापक संधि के लिए प्रस्ताव दिया था, जिस पर आज तक किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंचा जा सका. सुषमा ने साथ ही संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्यों में विस्तार की जरूरत का हवाला देकर भारत के दावे को मजबूती के साथ रखा.
भारतीय समयानुसार सुषमा स्वराज ने शाम ठीक 7 बजकर 10 मिनट पर बोलना शुरू किया. सुषमा ने अपने भाषण की शुरुआत संयुक्त राष्ट्र के टिकाऊ विकास के लक्ष्य के एजेंडे के साथ की. फिर बताया कि स्वच्छता, जेंडर इक्वेलिटी, जलवायु परिवर्तन की दिशा में भारत क्या क्या कर रहा है. सुषमा ने ये भी बताया कि मेक इन इंडिया, डिजिटल इंडिया, जनधन योजना से भारत की तस्वीर कैसे बदल रही है.
सुषमा ने इन सब बातों के बाद आतंकवाद का मुद्दा उठाया. सुषमा ने कहा कि न्यूयॉर्क ने अभी 9/11 हमले की 15वीं बरसी मनाई है. न्यूयॉर्क ने हाल ही में कुछ दिन पहले एक और आतंकी हमले को देखा. सुषमा ने कहा कि हम इस शहर (न्यूयॉर्क) के दर्द को समझते हैं. उरी, पठानकोट में भी ऐसी ही ताकतों ने हमले किए. सीरिया और इराक मे भी दुनिया रोज की बर्बरता देख रही है.
सुषमा ने कहा, "दुनिया को सबसे पहले ये समझना चाहिए कि आतंकवाद मानवाधिकारों का सबसे बड़ा उल्लंघन है. आतंकवादी किसी देश का नहीं बल्कि पूरी मानवता का अपराधी होता है. हमें ये देखना होगा कि आतंकवादियों को पनाह देने वाले कौन हैं? कौन उन्हे पैसे से, हथियारों से सहारा देता है? कौन उन्हें संरक्षण देता है. जो भी ऐसे बीज बोता है, वो इनके कड़वे फलों का स्वाद चखने के लिए भी तैयार रहे."
सुषमा ने कहा कि आतंकवाद ऐसा राक्षस बन चुका है जिसके पास अनगिनत चेहरे हैं. अनगिनत हाथ हैं, अनगिनत हथियार हैं. सुषमा ने विश्व समुदाय से अपील की कि आतंकवाद को जड़ से उखाड़ने के लिए सबको एकजुट हो जाना चाहिए. अपने सारे मतभेद, पुराने समीकरण भुलाकर आतंकवाद के राक्षस का खात्मा करना चाहिए. इसके लिए दृढ़ इच्छाशक्ति दिखाने की आवश्यकता है.
सुषमा ने पाकिस्तान का नाम लिए बिना कहा कि अगर कोई देश आतंकवाद के खिलाफ मुहिम में शामिल नहीं होता तो उसे पूरी तरह अलग-थलग कर देना चाहिए. ऐसे देशों को चिह्नित किया जाना चाहिए जो घोषित आतंकवादियों को सरेआम अपनी जमीन पर जलसे करने देते हैं. ऐसे देशों की विश्व समुदाय में कोई जगह नहीं होनी चाहिए.
पांच दिन पहले नवाज शरीफ के दिए भाषण का सुषमा ने करारा जवाब दिया. सुषमा ने कहा कि नवाज शरीफ ने दो बातें कहीं. पहली कश्मीर में कथित तौर पर मानवाधिकारों का उल्लंघन. सुषमा ने कहा इस पर मैं कहना चाहूंगी कि जिनके घर खुद शीशे के होते हैं वो दूसरों पर पत्थर नहीं उठाया करते. सुषमा ने साथ ही बलूचिस्तान में यातनाओं की पराकाष्ठा का हवाला दिया. |
सुषमा ने नवाज शरीफ की दूसरी बात गिनाई कि भारत दोनों देशों के बीच बातचीत के लिए शर्ते लगा रहा है. इस पर सुषमा ने कहा कि नवाज शरीफ को मोदी सरकार के शपथ ग्रहण समारोह के लिए न्योता दिया गया था तो वो कोई शर्त नहीं था. सुषमा ने कहा कि मैं खुद दिसंबर 2015 में व्यापक द्विपक्षीय बातचीत के लिए इस्लामाबाद गई थी तो वो कोई शर्त के तहत नहीं था. या पीएम मोदी काबुल से दिल्ली लौटते हुए लाहौर रुके थे तो वो किसी शर्त के तहत नहीं था. सुषमा ने कहा कि हमने कभी ईद की शुभकामनाएं दी तो कभी क्रिकेट की, कभी स्वास्थ्य के बारे में पूछा तो ये सब शर्तों के तहत नहीं था. सुषमा ने कहा कि लेकिन हमें बदले में पाकिस्तान ने क्या दिया- पठानकोट, उरी, बहादुर अली. सुषमा ने कहा कि बहादुर अली तो पाकिस्तान की नापाक हरकतों का जिंदा सबूत है हमारे पास.
सुषमा ने कहा कि अगर पाकिस्तान समझता है कि वो हमारा कोई हिस्सा हमसे छीन लेगा तो हम उसे बताना चाहते हैं कि वो कभी इस मंसूबे में कामयाब नहीं होगा. जम्मू और कश्मीर भारत का अभिन्न हिस्सा है और हमेशा रहेगा. पाकिस्तान इसे लेकर किसी मुगालते में ना रहे.
सुषमा ने भाषण के आखिर में विश्व समुदाय को भी चेताया कि भारत ने 1996 में सीसीआईटी (अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद पर व्यापक संधि) का प्रस्ताव दिया था. लेकिन 20 साल बीतने के बाद भी इस पर किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंचा जा सका. सुषमा ने कहा कि आज ऐसे अंतरराष्ट्रीय मानक बनाए जाने की जरूरत है जिससे आतंकवादियों को सजा दी जा सके और उनका प्रत्यर्पण किया जा सके.
सुषमा ने 19 मिनट के भाषण में ये भी कहा कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद 1945 में अस्तित्व में आई थी. लेकिन तब से अब तक दुनिया में बहुत कुछ बदल चुका है. इसके लिए परिषद के स्थायी और अस्थायी, दोनों ही सदस्यों में विस्तार की जरुरत है.
सुषमा ने अपने भाषण में पाकिस्तान को बेनकाब करने के लिए प्रभावी ढंग से अपनी बात रखी. लेकिन नवाज शरीफ की तरह उन्होने अपने भाषण के अधिकतर हिस्से को एक ही मुद्दे पर केंद्रित नहीं रखा. उन्होंने आतंकवाद पर पाकिस्तान को खरी खरी सुनाने के साथ दुनिया के सामने तेजी से बदल रहे भारत की सुनहरी तस्वीर रखने की भी कोशिश की है. बहरहाल, सुषमा अच्छी वक्ता हैं, उन्होंने एक बार फिर इसे साबित किया. तभी तो आम आदमी पार्टी के नेता कुमार विश्वास ने यूएन में सुषमा का भाषण सुनने के बाद उनके लिए सिंहनी शब्द का इस्तेमाल किया.