अमर ब्लॉगर डॉ अमर
कुमार की शुक्रवार को दूसरी पुण्यतिथि है...
कुछ कहने का मन
नहीं...कुछ कहने के लिए शब्द भी नहीं...
बस एक ये गीत...
ओ जानेवाले हो
सके तो लौट के आना,
ये घाट तू ये
बाट कहीं भूल न जाना...
बचपन के तेरे
मीत तेरे संग के सहारे,
ढूँढेंगे तुझे
गली-गली सब ये ग़म के
मारे,
पूछेगी हर निगाह
कल तेरा ठिकाना,
ओ जानेवाले...
दे दे के ये
आवाज़ कोई हर घड़ी बुलाए,
फिर जाए जो उस
पार कभी लौट के न आए,
है भेद ये कैसा
कोई कुछ तो बताना,
ओ जानेवाले...
डॉक्टर साहब ने 23
अगस्त 2011 को दुनिया को अलविदा कहा...
शरीर में तक़लीफ़
होने के बावजूद डॉक्टर साहब का ब्लॉगिंग के लिए आखिरी सांस तक अगाध स्नेह
रहा...मेरे ब्लॉग पर 20 जुलाई 2011 को उन्होंने आखिरी बार ये टिप्पणी की थी...
....और वक्त बेवक्त जहाँ तहाँ सूशू
पॉटी करने की आज़ादी थी, कोई डाँटता तक न था !
किस संदर्भ में
डॉक्टर साहब ने ये टिप्पणी की थी, उसके लिए ये रहा पोस्ट का लिंक-
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जुलाई 2011 में ही डॉक्टर साहब ने
मेरी पांच और पोस्ट पर भी टिप्पणियों का आशीष दिया था-
भावी गृहमँत्री अमर कुमार कहिन..
देशवासियों को सतर्क और एकजुट
रखने के लिये ऎसी घटनाओं का होते रहना आवश्यक है ।
कॉमन मैन... दोहाई है हुज़ूर की, आपके सूझबूझ से अमेरिका को सीखना चाहिये जो बेचारा 9/11
के बाद पिछले दस सालों में ऎसी
कोई घटना दुबारा नहीं करवा पाया ।
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.और तो और... पाबला जी,
यारों के यार हैं.. मुझे उनके आत्मीय और बेकल्लुफ़ स्वभाव के कारण इश्क हो चला है ।
वह अपने को पोज करते कभी नहीं दिखे.... मेरा उनसे पहला परिचय किसी फोटो को हटाने या लगाने के विवाद के चलते हुआ था... और आज... आज हाल यह है कि उनकी आवाज़ सुनते ही एक एनर्जी भर जाती है... वह अपनी चन्द बातों से ही मेरा दिल बल्ले बल्ले कर देते हैं... ऒए जिन्दे रह साड्डे सरदार !
यारों के यार हैं.. मुझे उनके आत्मीय और बेकल्लुफ़ स्वभाव के कारण इश्क हो चला है ।
वह अपने को पोज करते कभी नहीं दिखे.... मेरा उनसे पहला परिचय किसी फोटो को हटाने या लगाने के विवाद के चलते हुआ था... और आज... आज हाल यह है कि उनकी आवाज़ सुनते ही एक एनर्जी भर जाती है... वह अपनी चन्द बातों से ही मेरा दिल बल्ले बल्ले कर देते हैं... ऒए जिन्दे रह साड्डे सरदार !
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अव्यवहारिक मसलों पर अन्ना का
बच्चों जैसा हठ सचमुच चिन्ता में डालने वाला है ।
कहीं कहीं लगता है कि, वह प्रशासन को ही ललकार रहे हैं कि आओ मुझे कुचलो !
दो कदम तुम भी चलो, दो कदम हम भी चलें..... यह है समझौते की सीमा.. न कि,
दो सौ कदम तुम्हीं दौड़ो, हम अडिग बैठे रहें !
मन में एक मलाल यह है कि, भारतीय मीडिया शर्मा जी को सम्मुख लाने में आखिर कैसे चूक गयी ?
आखिर बी.बी.सी. ने अपनी खबरों को लेकर इतना भरोसा कैसे अर्जित कर लिया ? कहीं ऎसा तो नहीं है कि, शँभुदत्त जी को प्रॉक्सी बना कर सँभावनायें ठोकी जा रहीं हों ? आखिरकार राजनीति और रणनीति सँभावनाओं का अनन्त सागर है । :-(
भाई, सतीश जी की शुभकामनायें जल्द स्वीकारो...
यहाँ नीचे मेरे ऊपर टपकी जा रही है... और प्रवीण जी साक्षी बने देख रहे हैं :-)
कहीं कहीं लगता है कि, वह प्रशासन को ही ललकार रहे हैं कि आओ मुझे कुचलो !
दो कदम तुम भी चलो, दो कदम हम भी चलें..... यह है समझौते की सीमा.. न कि,
दो सौ कदम तुम्हीं दौड़ो, हम अडिग बैठे रहें !
मन में एक मलाल यह है कि, भारतीय मीडिया शर्मा जी को सम्मुख लाने में आखिर कैसे चूक गयी ?
आखिर बी.बी.सी. ने अपनी खबरों को लेकर इतना भरोसा कैसे अर्जित कर लिया ? कहीं ऎसा तो नहीं है कि, शँभुदत्त जी को प्रॉक्सी बना कर सँभावनायें ठोकी जा रहीं हों ? आखिरकार राजनीति और रणनीति सँभावनाओं का अनन्त सागर है । :-(
भाई, सतीश जी की शुभकामनायें जल्द स्वीकारो...
यहाँ नीचे मेरे ऊपर टपकी जा रही है... और प्रवीण जी साक्षी बने देख रहे हैं :-)
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हुँह, जनजागृति वाया लकी कूपन ?
इससे सस्ता विकल्प तो यह रहता कि नसबन्दी शिविर से बाहर आते हुये लोगों का एक विडियो प्रचारित करवा दिया जाता, जो कोरस के रूप में गा रहे होते....
आज से पहलेऽऽऽ आज से ज़्यादाऽ, खुशी आज तक नहीं मिली
इतनी सुहानीऽऽऽ ऎसी मीठीऽ, ओ घड़ी आज तक नहीं मिली
इससे सस्ता विकल्प तो यह रहता कि नसबन्दी शिविर से बाहर आते हुये लोगों का एक विडियो प्रचारित करवा दिया जाता, जो कोरस के रूप में गा रहे होते....
आज से पहलेऽऽऽ आज से ज़्यादाऽ, खुशी आज तक नहीं मिली
इतनी सुहानीऽऽऽ ऎसी मीठीऽ, ओ घड़ी आज तक नहीं मिली
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.वृद्धा i.e. बुढ़िया थोड़ी खिसकेली लगती है,
उसे किस करवट बैठना है... यह ऊँटनी पर नकेल कसने से पहले ही पढ़ाने लग पड़ी !
उसे किस करवट बैठना है... यह ऊँटनी पर नकेल कसने से पहले ही पढ़ाने लग पड़ी !
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा कल - शुक्रवार, 23/08/2013 को
जवाब देंहटाएंजनभाषा हिंदी बने.- हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः4 पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया पधारें, सादर .... Darshan jangra
स्व०डा०अमर कुमार एक बड़े ही बेबाक व्यक्ति थे और हिन्दी के प्रति असाधारण रूप से समर्पित. बहुत बड़ी क्षति हुई है.
जवाब देंहटाएंनमन !
जवाब देंहटाएंवे बहुत जल्दी चले गए , उनकी बहुत ज़रुरत थी , ओपरेशन के बाद उनका एक मैसेज जो मुझे मिला था ...
जवाब देंहटाएंHad jaw cancer, got an 7 hour marathon commando surgery last Monday . Do not worry I am ok and will continue to haunt the blogwud for several years. unable to speak clearly for next 3 months. chalega ....sab chalega bhai !
sab manjoor ! "
सादर श्रद्धांजलि ..
विनम्र श्रद्धांजलि, स्मृतियाँ कचोटती हैं।
जवाब देंहटाएंhardik naman ............ abhar apka.......
जवाब देंहटाएंpranam.
डॉ अमर कुमार अपनी यादों और अपने शब्दों के रूप में हमेशा हमारे बीच रहेंगे।
जवाब देंहटाएंडा. अमरकुमार जी जैसा व्यक्तित्व फ़िर नही पैदा होगा. ब्लागिंग में सर्वप्रथम उन्हीं से मेरा परिचय हुआ था और मेरे गुरू भी वही थे. उनकी कमी आजीवन सालती रहेगी, पर नियति के हाथों सब मजबूर हैं, उनको शत शत नमन.
जवाब देंहटाएंरामराम.
श्रद्धांजलि...
जवाब देंहटाएंयाद आती ही है. सबके पास वजह जुदा है.
जवाब देंहटाएंअनूप शुक्ल जी ने मेरे फेसबुक वॉल पर एक लिंक दिया है...ये लिंक अनूप जी की उस पोस्ट का है जिसमें उन्होंने डॉक्टर साहब के दुनिया से जाने के बाद श्रद्धासुमन अर्पित किए थे...डॉक्टर साहब के व्यक्तित्व और कृतित्व से जो ब्लॉगर परिचित नहीं है उनके लिए इस लिंक पर जाकर अनूप जी की पोस्ट को पढ़ना बहुत ज़रूरी है...
जवाब देंहटाएंhttp://hindini.com/fursatiya/archives/2195
जय हिंद...
बहुत सुन्दर प्रस्तुति.. हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल {चर्चामंच} के शुभारंभ पर आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट को हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल में शामिल किया गया है और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा {रविवार} (25-08-2013) को हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल {चर्चामंच} पर की जाएगी, ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें। कृपया पधारें, आपके विचार मेरे लिए "अमोल" होंगें | आपके नकारत्मक व सकारत्मक विचारों का स्वागत किया जायेगा | सादर .... Lalit Chahar
जवाब देंहटाएंसादर श्रद्धांजलि!
जवाब देंहटाएंइत्तेफाक से डॉ अमर कुमार से हमारा परिचय उनके अंतिम दिनों में ही हुआ. उनकी टिप्पणियां कुछ ही पोस्ट्स पर आ पाई थी कि उनकी तबियत ज्यादा बिगड़ गई. डॉ अमर के विचार और शैली ग़ज़ब की थी. उनका अचानक चले जाना , न सिर्फ उनके परिवार के लिए बल्कि सम्पूर्ण ब्लौजगत के लिए अपूरणीय क्षति रहेगी .
जवाब देंहटाएंविनम्र श्रधांजलि।
हमेशा याद आते रहेंगे ... यादों में अमर है वे ...
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग पर भी डॉ साहब का आना हुआ था...जाहिर उनकी मौत हिदी ब्लॉग की दुनिया के लिए क्षति थी...
जवाब देंहटाएंसादर नमन।
जवाब देंहटाएं