कांपता गणतंत्र, ताली पीटता सत्तातंत्र...खुशदीप​​




हमारा गणतंत्र महान है..26 जनवरी क्यों अहम है, ये कोई जानता हो या न हो लेकिन इस दिन दिल्ली में होने वाले मुख्य समारोह में परेड के बारे में सब जानते है...बुलंद भारत की बुलंद तस्वीर दिखाने वाली इस परेड को बचपन में टीवी पर बड़े शौक से देखा करता था..इतने सालों में इंडिया तो बुलंद हो गया लेकिन भारत शायद और भी पिछड़ गया..26 जनवरी को सैन्य शक्ति के प्रदर्शन के साथ तमाम राज्य और बड़े सरकारी विभाग भी झांकियों के ज़रिए विकास की झलक दिखाते हैं...दिल्ली के अलावा राज्यों की राजधानियों और बड़े शहरों में भी गणतंत्र दिवस की रस्म पूरी कर खुद को देशभक्त दिखा दिया जाता है...

​मध्य प्रदेश के देवास में इस साल गणतंत्र दिवस पर जो हुआ वो वाकई दर्शाता है कि सत्ता के नशे में चूर हमारे नेता और लाट साहबों की तरह अफसरी झाड़ते हमारे आईएएस-आईपीएस कितने संवेदन-शून्य  हो गए हैं...गणतंत्र दिवस समारोह पर निकाली गई नगर निगम की झांकी में पानी के स्रोत को दिखाने के लिए आठ साल के मासूम को नल के नीचे नहाते हुए दिखाया गया...तन पर सिर्फ एक नेकर पहने ये लड़का कड़ाके की ठंड में नहाते हुए कांपता रहा लेकिन उसकी इस हालत पर न कलेक्टर साहब का ध्यान गया और न ही दूसरे किसी अफ़सर का...ये सब अपनी मेमसाबों और बच्चों के साथ गर्म कपड़ों में लदे हुए तालियां बजा कर गणतंत्र का जश्न मनाते रहे...ऐसी रिपोर्ट है कि जिस वक्त ये सब हो रहा था उस वक्त देवास में तेज़ हवा के साथ तापमान 12.9  डिग्री सेल्सियस पर था...आधे घंटे तक बच्चे के नहाते रहने के बाद एक फोटोजर्नलिस्ट के आपत्ति करने पर बच्चे को हटाया गया...​
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​निर्णायकों ने बच्चे के लिए असंवेदनशील और लगातार पानी की फिजूलखर्ची करती रही इस झांकी को तीसरा स्थान दिया ...देवास की मेयर रेखा  वर्मा ने सफाई दी है कि वो मुख्य समारोह में मौजूद नहीं थी लेकिन उन्हें बच्चे के नहाने की जानकारी मिली है...मेयर के मुताबिक ऐसा कुछ झांकी मे दिखाने के लिए पहले से नहीं सोचा गया था...ये संबंधित कर्मचारी ने अपनी मर्जीं से किया है...मेयर ने कार्रवाई का भी आश्वासन दिया है...​​

इस घटना में कार्रवाई जब होगी सो होगी लेकिन मुझे इसमें 62 साल के हमारे गणतंत्र की असलियत से बड़ा साम्य दिखा...ये बच्चा और कोई नहीं देश की जनता है..बच्चे को तमाशे की तरह देखते हुए अफसर ताली पीट कर गणतंत्र के लिए अपनी आस्था प्रकट कर रहे थे...वैसे ही देश की जनता भी तमाशा बनी हुई है...उसकी पीड़ा भी राजनीतिक कर्णधारों और नौकरशाही के प्रतीक लाट साहबों के लिए ताली पीटने लायक तमाशे से ज़्यादा कुछ नहीं है...मुंह पर जनता जनार्दन की बात की जाती है...हक़ीक़त में नीतियां सारी कारपोरेट को फायदा पहुंचाने वाली बनाई जाती है...आखिर उन्हीं के चंदे से महंगी चुनावी राजनीति फलती-फूलती है...​
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​लेकिन गणतंत्र दिवस तो गणतंत्र दिवस है, हर साल मनाना ही पड़ेगा...गाना याद आ रहा है दुनिया में अगर आए हैं तो जीना ही पड़ेगा, जीवन है अगर ज़हर तो पीना ही पड़ेगा...
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16 टिप्पणियाँ
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  1. सरकारी तंत्र की संवेदनशून्यता की जबर्दस्त मिसाल है यह।

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  2. सब सोये हुए हैं, उनका जमीर भी सो गया है, पता ही नहीं है कि कब उठेंगे और इन सबको उठा देंगे ।

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  3. अगर ये सम्वेदनशील ही होते तो भारत में कम से कम ९० प्रतिशत दिक्कतें दूर हो गयी होतीं.

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  4. अपनी मूढ़ता सिद्ध करने के नये नये तरीके..

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  6. सरकारी तंत्र इतना संवेदनशील कैसे बन गया, समझ से परे है। ये भी तो हमारे बीच से ही आते हैं। शायद सत्ता के मद के कारण कुछ अलग हो जाते हैं!

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  7. ब्लॉग बुलेटिन पर की है मैंने अपनी पहली ब्लॉग चर्चा, इसमें आपकी पोस्ट भी सम्मिलित की गई है. आपसे मेरे इस पहले प्रयास की समीक्षा का अनुरोध है.

    स्वास्थ्य पर आधारित मेरा पहला ब्लॉग बुलेटिन - शाहनवाज़

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  8. एक सवाल उठा है कि हमारे बीच से निकलकर भी नौकरशाह "संवेदनाशून्य" कैसे हो जाते हैं? इसका जवाब यह है कि जिन लोगों के अन्दर "जज्बात" की थोड़ी भी मात्रा होती है, वे कमरा बन्द करके 18-18 घण्टे पढ़ाई नहीं कर सकते और इसलिए वे कभी नौकरशाह भी नहीं बन सकते. जिनके अन्दर रत्तीभर भी जज्बात नहीं होता वही परिवार-समाज-देशकाल से कटकर 18-20 घण्टे पढ़ाई करता है और वही नौकर"शाह" बनता है! कोई शक? (http://jaydeepshekhar.blogspot.com/2012/01/blog-post_12.html)

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  9. इन भूतनी वालों को भी चौराहे पर यूं ही नंगा नहलाया जाना चाहिए

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  10. हुंह... लोकतन्त्र की संवेदनहीं नौटंकी

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  11. अधिकारी तंत्र अधिनायक तंत्र ही है ....ठेठ असंवेदनशील !

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  12. हमने भी टी . वी पर यह खबर देखी है.
    बहूत शर्मनाक घटना है.

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  13. कल 26/01/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
    धन्यवाद !

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