कहां गई वो बचपन की अमीरी हमारी,
जब पानी में अपने भी जहाज़ चला करते थे
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सिरहाने मीर के आहिस्ता बोलो,
अभी तक रोते-रोते सो गया है...
-मीर तक़ी मीर
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स्लॉग ओवर...
डॉक्टर मक्खन से...क्या प्रॉब्लम है...
मक्खन...तबीयत ठीक नहीं है मेरी...
डॉक्टर...शराब पीते हो...
मक्खन...सुबह का वक्त है, डॉक्टर...
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इसलिए मेरा छोटा पैग ही बनाना
पानी में ही नहीं सभी जगह राज था। अनुपस्थिति बढ़ती जा रही है।
जवाब देंहटाएंवाह! बहुत बढिया!
जवाब देंहटाएं:) :) :)
जवाब देंहटाएंHA HA HA HA HA BAHUT KHOOB...
जवाब देंहटाएंवाह, अब तो रात हो गयी डॉक्टर..
जवाब देंहटाएंशीर्षक से कुछ और ही लगा था ...
जवाब देंहटाएंखैर वे भी क्या दिन थे ...
वो कागज़ की कश्ती....
जवाब देंहटाएंदिन तो अभी भी कहीं नही गए जी,
जवाब देंहटाएंपहले पानी में जहाज अब ख्वाबों में
अपने हवाई जहाज चला करते हैं.
सिरहाने बहुत जोर से बोलियेगा हजूर
सोते सोते भी शोर सुनने की आदत जो है.
सुख भरे दिन बीते रे भैया..... :)
जवाब देंहटाएंक्या बात है
जवाब देंहटाएंबहुत खूब।
जवाब देंहटाएंहा हा हा
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