मुद्दा बड़ा होता है, व्यक्ति नहीं...सही बात है...भ्रष्टाचार का मुद्दा बड़ा है...देश के हर नागरिक से सीधे तौर पर जुड़ा है...देश में कौन ऐसा शख्स होगा जो ये नहीं कहेगा कि भ्रष्टाचार से निजात मिलनी चाहिए...चाहे कोई कितना भी भ्रष्ट क्यों न हो लेकिन ऊपर से यही दिखाने का प्रयत्न करेगा कि उससे ज़्यादा पाक-साफ़ कोई नहीं...कहने को वो भी यही कहेगा, भ्रष्टाचार जड़ से खत्म होना चाहिए...
भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ लड़ाई सभी को मिलजुल कर लड़नी है...सबसे पहले दिल से खुद को बदलना होगा...ऐसा करने के बाद ही नैतिक तौर पर हमें दूसरों को बदलने के लिए कहने का अधिकार होगा...संसद का शीतकालीन सत्र 22 नवंबर से शुरू होने वाला है...जनलोकपाल या लोकपाल फिर सब की ज़ुबान पर आने वाला है...अगर ये बिल अब पास नहीं होता तो अन्ना हज़ारे सत्र के आखिरी तीन दिन अनशन पर बैठने की बात कह चुके हैं...अन्ना की ईमानदारी और मंशा पर कोई सवाल नहीं उठा सकता...लेकिन टीम अन्ना का हर सदस्य किसी न किसी विवाद में घिर चुका है या घेर दिया गया है...
रही सही कसर अब अरविंद केजरीवाल और किरण बेदी के बीच खींचतान से सामने आ गई है...ये दोनों ही भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना की मुहिम के दो सबसे बड़े सिपहसालार हैं...केजरीवाल ने कहा कि किरण बेदी को हवाई यात्राओं में रियायत मिलने के बावजूद आयोजकों से मोटे
बिल नहीं वसूलने चाहिए थे...केजरीवाल ने ये भी कहा कि अगर वो खुद होते तो ऐसा नहीं करते...इस पर किरण ने पलटवार किया कि केजरीवाल ने बिना मुद्दे को ठीक समझे ये बयान दिया है...
पहले टीम अन्ना के सदस्यों पर जो आरोप लगे हैं, मैं उन का यहां दोबारा ज़िक्र नहीं करना चाहता...यहां सवाल उठाया जा सकता है कि हम मुद्दे को पकड़ें, व्यक्तियों को नहीं...यानि व्यक्ति विशेष के ख़िलाफ़ आरोपों को तूल न देकर हमें फोकस सिर्फ जनलोकपाल की लड़ाई पर रखना चाहिए...ये कानून बन गया तो सब के सब इसके घेरे में खुद-ब-खुद आ जाएंगे...लेकिन मेरा सवाल है कि अगर किसी मुद्दे पर जंग लड़ने जाना है और आपके सेनापति खुद दागदार हैं तो कैसे उम्मीद की जा सकती है कि वो मुद्दे के साथ इनसाफ करेंगे...
मेरे या किसी और साधारण नागरिक के लिए भ्रष्टाचार पर कुछ बोलने और टीम अन्ना के सदस्यों के बोलने में काफ़ी फर्क है...वो स्वयंभू सुधारक बने हैं, समाजसेवी बने हैं, देश को भ्रष्टाचार से मुक्ति दिलाने के दावे कर रहे हैं तो उनका खुद का रिकार्ड भी शीशे की तरह साफ़ होना चाहिए...मैं या देश का कोई और आम नागरिक ऐसा कोई दावा नहीं कर रहा, करें भी तो सुनेगा कौन...इसलिए हमारे आचरण से कहीं ज़्यादा उनका आचरण मायने रखता है जिन पर देश की 120 करोड़ जनता ने विश्वास किया...(जैसा कि वो खुद दावा करते हैं)...उसके बाद ही ऊंची ऊंची नैतिक बातें करने का उन्हें हक़ मिलता है...
आखिर में ये किस्सा भी सुन लीजिए...
जूलियस सीजर की दूसरी पत्नी का नाम पॉम्पिया था...67 बीसी में दोनों की शादी हुई थी...63 बीसी में सीजर रोमन स्टेट के पोन्टिफेक्स मैक्सीमस यानि मुख्य पादरी चुने गए...62 बीसी में सीजर की पत्नी पोम्पिया ने बोना डिया (अच्छी देवियों का समारोह) का आयोजन किया...इस आयोजन की खास बात होती थी कि कोई भी पुरुष इसमें शिरकत नहीं कर सकता था...लेकिन क्लॉडियस नाम का एक खूबसूरत युवक महिला का वेश धर कर इस आयोजन में पहुंच गया...उसका मकसद सीजर की पत्नी पॉम्पिया को अपनी ओर आकर्षित करना था...क्लॉडियस पकड़ा गया...उस पर पवित्र रस्म के अनादर का मुकदमा चला...लेकिन जूलियस सीजर ने क्लॉडियस के खिलाफ कोई सबूत पेश नहीं किया...क्लॉडियस बरी हो गया...लेकिन बाद में सीज़र ने पत्नी पॉम्पिया को तलाक दे दिया...ये कहते हुए कि वो मेरी पत्नी है, वो रत्ती भर भी संदेह की गुंजाइश से बाहर होनी चाहिए...
"Caesar's wife must be above suspicion."
भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ लड़ाई सभी को मिलजुल कर लड़नी है...सबसे पहले दिल से खुद को बदलना होगा...ऐसा करने के बाद ही नैतिक तौर पर हमें दूसरों को बदलने के लिए कहने का अधिकार होगा...संसद का शीतकालीन सत्र 22 नवंबर से शुरू होने वाला है...जनलोकपाल या लोकपाल फिर सब की ज़ुबान पर आने वाला है...अगर ये बिल अब पास नहीं होता तो अन्ना हज़ारे सत्र के आखिरी तीन दिन अनशन पर बैठने की बात कह चुके हैं...अन्ना की ईमानदारी और मंशा पर कोई सवाल नहीं उठा सकता...लेकिन टीम अन्ना का हर सदस्य किसी न किसी विवाद में घिर चुका है या घेर दिया गया है...
रही सही कसर अब अरविंद केजरीवाल और किरण बेदी के बीच खींचतान से सामने आ गई है...ये दोनों ही भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना की मुहिम के दो सबसे बड़े सिपहसालार हैं...केजरीवाल ने कहा कि किरण बेदी को हवाई यात्राओं में रियायत मिलने के बावजूद आयोजकों से मोटे
बिल नहीं वसूलने चाहिए थे...केजरीवाल ने ये भी कहा कि अगर वो खुद होते तो ऐसा नहीं करते...इस पर किरण ने पलटवार किया कि केजरीवाल ने बिना मुद्दे को ठीक समझे ये बयान दिया है...
पहले टीम अन्ना के सदस्यों पर जो आरोप लगे हैं, मैं उन का यहां दोबारा ज़िक्र नहीं करना चाहता...यहां सवाल उठाया जा सकता है कि हम मुद्दे को पकड़ें, व्यक्तियों को नहीं...यानि व्यक्ति विशेष के ख़िलाफ़ आरोपों को तूल न देकर हमें फोकस सिर्फ जनलोकपाल की लड़ाई पर रखना चाहिए...ये कानून बन गया तो सब के सब इसके घेरे में खुद-ब-खुद आ जाएंगे...लेकिन मेरा सवाल है कि अगर किसी मुद्दे पर जंग लड़ने जाना है और आपके सेनापति खुद दागदार हैं तो कैसे उम्मीद की जा सकती है कि वो मुद्दे के साथ इनसाफ करेंगे...
मेरे या किसी और साधारण नागरिक के लिए भ्रष्टाचार पर कुछ बोलने और टीम अन्ना के सदस्यों के बोलने में काफ़ी फर्क है...वो स्वयंभू सुधारक बने हैं, समाजसेवी बने हैं, देश को भ्रष्टाचार से मुक्ति दिलाने के दावे कर रहे हैं तो उनका खुद का रिकार्ड भी शीशे की तरह साफ़ होना चाहिए...मैं या देश का कोई और आम नागरिक ऐसा कोई दावा नहीं कर रहा, करें भी तो सुनेगा कौन...इसलिए हमारे आचरण से कहीं ज़्यादा उनका आचरण मायने रखता है जिन पर देश की 120 करोड़ जनता ने विश्वास किया...(जैसा कि वो खुद दावा करते हैं)...उसके बाद ही ऊंची ऊंची नैतिक बातें करने का उन्हें हक़ मिलता है...
आखिर में ये किस्सा भी सुन लीजिए...
जूलियस सीजर की दूसरी पत्नी का नाम पॉम्पिया था...67 बीसी में दोनों की शादी हुई थी...63 बीसी में सीजर रोमन स्टेट के पोन्टिफेक्स मैक्सीमस यानि मुख्य पादरी चुने गए...62 बीसी में सीजर की पत्नी पोम्पिया ने बोना डिया (अच्छी देवियों का समारोह) का आयोजन किया...इस आयोजन की खास बात होती थी कि कोई भी पुरुष इसमें शिरकत नहीं कर सकता था...लेकिन क्लॉडियस नाम का एक खूबसूरत युवक महिला का वेश धर कर इस आयोजन में पहुंच गया...उसका मकसद सीजर की पत्नी पॉम्पिया को अपनी ओर आकर्षित करना था...क्लॉडियस पकड़ा गया...उस पर पवित्र रस्म के अनादर का मुकदमा चला...लेकिन जूलियस सीजर ने क्लॉडियस के खिलाफ कोई सबूत पेश नहीं किया...क्लॉडियस बरी हो गया...लेकिन बाद में सीज़र ने पत्नी पॉम्पिया को तलाक दे दिया...ये कहते हुए कि वो मेरी पत्नी है, वो रत्ती भर भी संदेह की गुंजाइश से बाहर होनी चाहिए...
"Caesar's wife must be above suspicion."
संकेत बहुत तड़गा है,
जवाब देंहटाएंबस इसी का झगड़ा है।
यह कलियुग है । अब न श्रीराम जी हैं , न सीज़र दिखाई देते हैं ।
जवाब देंहटाएंफिर भी , ज्यादा भ्रष्ट से कम भ्रष्ट ही सही । लड़ाई तो जारी रहनी चाहिए ।
इस बात को तो सभी मानते हैं कि व्यक्तिगत जीवन में हम सबको पाक-साफ होना चाहिए। लेकिन व्यवस्था बदलेगी तो व्यक्ति को भी अवसर नहीं मिलेंगे। इसलिए अभी केवल व्यवस्था बदलने पर जोर देना चाहिए।
जवाब देंहटाएंखुशदीप भाई,
जवाब देंहटाएंकाजल की कोठरी में बेदाग को तलाश करना मूर्खता है। हिलते डुलते भी दाग लग सकता है। लेकिन दाग लगा व्यक्ति यदि यह कहे कि इस कोठरी का सारा काजल साफ होना चाहिए, और कुछ लोग यह कहें कि यह तो खुद दागी है कैसे काजल हटाएगा? तो हमें मान लेना चाहिए कि वे खुद काजल को साफ नहीं करना चाहते, उन की नीयत भी नहीं है। इस से कोठरी से काजल को बिलकुल हटा देने के समर्थक काजल लगने से बचने में समय व्यर्थ करने लगें तो काजल बनाए रखने के समर्थकों को लाभ ही होगा।
ये सभी प्रयास ऐसे ही हैं। इतिहास में अशोक और अकबर महान कहे जाते हैं लेकिन वे भी महान बनने के पहले दागी थे।
हमारी व्यवस्था तो ऐसी है कि हम सफाई का काम करने वाले से घृणा करते हैं उसे अछूत बना डालते हैं। लेकिन जो दिन-रात गंदगी निगलते और हंगते हैं उन का क्या?
बेहद सटीक उदाहरण के साथ गंभीर बात।
जवाब देंहटाएंअन्ना पर सबको भरोसा है पर अन्ना के आगे पीछे रहने वालों की नैतिकता और व्यवहार पर सवाल उठ रहे हैं....
किरण बेदी हो या फिर केजरीवाल। या फिर कुमार विश्वास।
इन पर देश ने भरोसा किया है... कम से कम इन लोगों को अपना चरित्र साफ रखना चाहिए वरना फिर से कोई किसी पर भरोसा नहीं करेगा।
दुगभ्रमित हो चलें हैं सब...बाकी व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाएँ टीम मेम्बरों की शुरु से ज्ञात थी ...बस, बड़ी मुहिम की आड़ में कोई देख नहीं पाया...
जवाब देंहटाएंबिचारे अन्ना...
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