लेडी गागा, रफ्तार का रोमांच और समोसा...खुशदीप


कल एक दोस्त का फोन आया...पूछ रहा था कि मैं फॉर्मूला वन रेस देखने गया या नहीं...मेरे मना करने पर वो ताज्जुब करने लगा कि नोएडा में रहते हुए भी इतना बड़ा इवेंट मैंने कैसे मिस कर दिया...अब उसे क्या जवाब देता...अखबार रोज़ देखता हूं तो पिछले दिनों कई पन्ने इंडियन ग्रां प्री की खबरों से ही रंगे मिले...इवेंट खत्म होने के बाद भी इससे जुड़ी नाइट पार्टियों की तस्वीरे अभी तक छप रही है...रफ्तार और रेस का रोमांच देखने के लिए टिकट ढाई हज़ार से पैंतीस हज़ार रुपये तक के थे...तो सोमवार को हुई लेडी गागा के कंसर्ट के लिए टिकट चालीस हज़ार रुपये की थी...



सुनने में आ रहा है कि फॉर्मूला वन रेस के लिए इन्फ्रास्ट्रक्चर खड़ा करने में जेपी ग्रुप ने सत्रह अरब रुपये खर्च किए हैं...आयोजकों ने इसे देश में खेल को प्रोत्साहन देने के नाम पर टिकटों और इसे जुड़े इवेंट्स पर कर में छूट देने की मांग की थी जिसे दिल्ली की सरकार ने मंज़ूर नहीं किया...




जिस देश में बत्तीस रुपये की कमाई पर गरीबी रेखा की बहस छिड़ी हो वहां ये आर्थिक ताकत का अश्लील प्रदर्शन कितना जायज़ है, मेरी समझ से बाहर है...किसानों की ज़मीन अधिग्रहण कर वहां कार रेसिंग का इन्फ्रास्ट्रक्चर खड़ा करना कौनसा अर्जेंट जनोपयोगी काम है, ये भी मेरी समझ से बाहर है...ये ट्रैक अब तक अमेरिका और रूस जैसे देश भी नहीं बना पाए और हमने बना दिया...रेसिंग जैसे महंगे शौक को पूरा करने के लिए देश में कितने लोग समर्थ होंगे, ये भी आसानी से समझा जा सकता है...इस खेल के लिए महंगी कारों की मियाद सिर्फ एक डेढ़ साल की होती है...इसके अलावा इस चोंचले में रबड़ और ईंधन की जितनी बर्बादी होती है, क्या हमारे देश के लिए ये जायज़ है, जहां इन दोनों चीज़ों का ही आयात किया जाता है...

कल अखबार में ये भी पढ़ रहा था कि जो लोग मोटा पैसा खर्च कर रफ्तार और रोमांच के इस खेल को नंगी आंखों से देखने के लिए गए थे, उन्हें वहां खाने-पीने के छोटे सामान के लिए भी कितनी बड़ी रकम ढीली करनी पड़ी...आप खुद ही मुलाहिजा फरमाइए...

दो समोसे....100 रुपये

चाय........50 रुपये

एक गुलाब जामुन...50 रुपये

राजमा चावल...250 रुपये

वेजी बर्गर...200 रुपये

चिकन बर्गर...250 रुपये

पेटीज...100 रुपये


पानी की बोतल...100 रुपये

अब मरते क्या न करते...ऐसी जगहो पर आपको साथ कुछ भी ले जाने की इजाज़त नहीं होती...इसलिए भूख प्यास लगने पर आपको मुंहमांगी कीमत पर कुछ खरीदना ही पड़ेगा...जिन्होंने ये सब चीज़ें लेकर खाईं, उन्होंने इनके बेस्वाद होने की भी शिकायत की...इस पर जो सामान बेच रहे थे, उनका कहना था कि हमनें ये चीज़ें बाहर के लोगों के स्वाद के अनुरूप कम मिर्च मसाले की बनाई है, इसलिए लोग ऐसा कह रहे हैं...


अब बताइए कि क्या मुझे ये रेस देखने जाना चाहिए था...

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11 टिप्पणियाँ
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  1. बिलकुल देखने नहीं जाना चाहिए था, क्योंकि इसको देखने का आपका मन भी नहीं था... वैसे मुझे तो टिकट भी मिल रहा था, लेकिन टेक्स के १२००० रूपये सुनकर टिकट ना लेने में ही भलाई समझी. वैसे भी अपुन को तो क ख घ भी नहीं पता है फार्मूला वन का.... बस कार्तिकेयन साहब को ही थोडा-बहुत जानते हैं... :-)

    वैसे मैं इस रेस के खिलाफ तो बिलकुल भी नहीं हूँ... माना की देश में अभी बहुत गरीबी है, लेकिन देश तरक्की की राह पर काफी आगे बढ़ रहा है... इस तरह के इवेंट से एक फायदा तो कम से कम यह भी है की कई देशों के लोग अपने देश को जानते हैं, विदेशों में देश की साख बढ़ी है, जो की वैश्विक दृष्टि से देश के व्यापार के लिए बहुत ही अच्छी बात है. और फिर यह भी तो ज़रूरी नहीं की गरीबी के कारण अमीरी वाले खेलों को ही बंद कर दिया जाए??? ऐसे खेलों को देखने वही जाएगा जिसमे समर्थ होगा... इस बहाने ही सही, बहुत से गरीब लोगों को भी इससे काम मिला होगा...

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  2. kam sae kam cwg ki tarah hotel to khaali nahin rahey kisi ki to kamaii hui

    but
    its all total waste of time and money and we needed more things then this track

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  3. अच्छा किया आपने बता दिया, अब तो बिल्कुल नहीं जायेंगे।

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  4. अच्छी बात यह रही कि इसमें कोई घोटाला सामने नहीं आया जिसने भी खर्चा किया अपनी मर्जी से किया, जनता के टैक्स का पैसा भ्रष्टाचार में लुटा नहीं और उल्टा सरकार को टैक्स मिला।

    CWG जैसे आयोजन से तो भला ऐसा आयोजन ।

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  5. खुशदीप भाई, छोड़िये भी फार्मूला वन को

    महंगाई से सब पस्त हैं

    प्रभु का नाम ले ले कर
    हम तो यूँ ही मस्त हैं.

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  6. khel ke saath saath jaam bhee thaa...log ghanto line main lage the ......bade bade v.v.i.p.....


    jai baba banaras...

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  7. खुशदीप भाई , इस रेस से यह तो पता चल ही गया कि हमारे देश में अमीरों की भी कोई कमी नहीं । ६० हज़ार कारें जहाँ लाइन लगा कर खड़ी हो जाएँ , समझो विश्व का सबसे धनाढ्य देश ही हो सकता है ।

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  8. अच्‍छा किया आपने इसका बहिष्‍कार(!) कर।
    वैसे मीडिया में होने के नाते आपको यदि मुफ्त का पास भी मिल गया होता तो भी अच्‍छी खासी रकम ढीली हो ही जाती आपकी.... आखिर कुछ खाना तो पडता वहां और सौ रूपए का पानी....!!!

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  9. अब जो इतनी महँगी टिकट खरीद कर भागती कारें देखने जा सकता है उसके लिए १०० रु का समोसा क्या बुरा है :)

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  10. यदि आप भी पचास साठ हजार रूपए खर्च करने की हैसियत रखते तो इस रेस को देखने अवश्‍य जाते। वहाँ लोग रेस देखने कम और अपनी रईसी दिखाने ज्‍यादा गए थे। भोज्‍य सामग्री के रेट डॉलर के हिसाब से लगे थे। इस देश में टाट के कपड़ों पर मखमल का पैबंध लगाते हैं।

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