सात सितंबर की रात 11 बजकर 28 मिनट पर भूकंप ने दिल्ली को हिलाया...4.2 तीव्रता वाले इस भूकंप का केंद्र हरियाणा के सोनीपत के पास था...भूकंप के लिहाज़ से खतरनाक माने जाने वाले दिल्ली और आसपास के इलाके में अगर सात या आसपास की तीव्रता वाला भूकंप आया तो क्या होगा...ये सवाल ही खुद में कंपा देने वाला है...दिल्ली में जिस तरह की इमारतें बनी हैं, उसमें साठ फीसदी से ज़्यादा इमारते भूकंप का बड़ा झटका नहीं झेल सकतीं...ऐसे में दिल्ली की एक करोड़ साठ लाख से ज़्यादा आबादी कितनी महफूज़़ है, खुद ही सोचा जा सकता है...
यहां दो मिसाल देना चाहूंगा...
जापान ने इस साल 11 मार्च को भूकंप और सुनामी की जो मार झेली थी, उसके भयावह दृश्य आज भी ज़ेहन में कौंधते हैं तो पूरे शरीर में सिहरन दौड़ जाती है...जापान का ये भूकंप 8.9 तीव्रता का था...लेकिन जापान जापान है...1945 में परमाणु हमले की मार के बाद विश्व आर्थिक शक्ति के तौर पर उभरे जापान ने एक बार फिर दिखाया कि उसके लोग किस मिट्टी के बने हैं...बिना विश्व की खास मदद लिए जापान ने इस आपदा से पार पाने के लिए दिन-रात एक कर दिया...जिन सड़कों को भूकंप और सुनामी निगल चुके थे, उसे जापान ने एक महीने में ही दोबारा तैयार कर दिखा दिया कि उसके हौसलों को कुदरत का कहर भी नहीं तोड़ सकता...
अब आपको दिल्ली की तस्वीर दिखाता हूं...
इसी साल 18 जुलाई को दिल्ली के दिलशाद गार्डन में एक निर्माणाधीन बहुमंज़िली इमारत इस लिए गिर गई क्योंकि उसका लालची मालिक नाम मात्र के सीमेंट से बिना ठोस बुनियाद रेत का ही महल खड़ा किए जा रहा था...इसी तरह दिल्ली के ललिता पार्क इलाके में पिछले साल 15 नवंबर को एक इमारत पांचवी मंज़िल का बोझ नहीं सह पाई और ताश के पत्तों की तरह नीचे आ गिरी...नतीजा 67 लोगों की मौत हो गई...मरने वाले मजदूर तबके के थे, इसलिए खास हायतौबा नहीं मची...अधिकारियों-इंजीनियरों को घूस देकर किसी भी तरह का निर्माण करना कोई ज़्यादा मुश्किल बात नहीं है...
यमुना बेड पर ही अक्षरधाम जैसे मंदिर, कॉमनवेल्थ गेम्स विलेज, बहुमंजिली इमारतों को खड़ी करने की धड़ल्ले से अनुमति दे दी जाती है...बिना ये सोचे कि यमुना के आसपास की ज़मीन को छेड़ना भूकंप के लिहाज़ से कितना खतरनाक है...दिल्ली सिस्मिक ज़ोन चार में आता है...दुनिया में भूकंप के लिहाज़ा से सबसे खतरनाक इलाकों को सिस्मिक ज़ोन पांच में रखा जाता है...यानि दिल्ली सिर्फ एक पायदान ही नीचे है...दिल्ली जिस इलाके में आती है, उसकी ज़मीन हर महीने छह से आठ बार हिलती है...हालांकि इनकी तीव्रता कम ही होती है...इसी साल दिल्ली में भूकंप के कई छोटे-बड़े झटके आ चुके हैं...
दिल्ली को ख़तरा एक तरफ़ से नहीं तीन तरफ़ से है...जानकारों के मुताबिक दिल्ली भूकंप के तीस से चालीस एपीसेंटरों की जद में आता है...तीन-तीन फॉल्ट लाइन पर बसी दिल्ली में अगर किसी भी फॉल्ट लाइन पर हलचल होती है तो उसका कंपन महसूस किया जाता है...दिल्ली पर सबसे बड़ा ख़तरा मुरादाबाद फॉल्ट लाइन से है...ये काफ़ी अर्से से शांत है...लेकिन जानकारों का कहना है कि इस लाइन में छोटा सा भी बदलाव पूरे इलाके में भारी तबाही ला सकता है...
दिल्ली के लिए दूसरा खतरा मथुरा फॉल्ट लाइन है...यहां पहले भी कई कंपन पैदा हो चुके हैं...दिल्ली के लिए तीसरा खतरा सोहना फॉल्टलाइन से है...भूगर्भ शास्त्रियों का मानना है कि जहां टेक्टॉनिक प्लेट्स होती है वहां भूकंप का खतरा ज़्यादा रहता है...टेक्टॉनिक प्लेट्स के एक दूसरे पर खाली जगह में फ्लोट करने की जगह जब ये प्लेट एक दूसरे के ठीक सामने आ जाती हैं तो दोनों तरफ से बल लगने पर तनाव उत्पन्न होता है...यही तनाव भूकंप की शक्ल में धरती को हिला देता है...
अब सवाल ये उठता है कि दिल्ली भूकंप के बड़े झटके की मार सहने के लिए कितना तैयार है...क्या हमारे पास जापान जैसा कारगर आपदा प्रबंधन है...क्या हमारी सरकार के पास ऐसी कोई आपात योजना है...यहां सरकार किस तरह काम करती है वो हमने दिल्ली हाईकोर्ट के बाहर हुए धमाके में देख ही लिया है...25 मई को आतंकवादियों ने दिल्ली हाईकोर्ट के बाहर धमाके की रिहर्सल की और फिर करीब साढ़े तीन महीने बाद तबाही को हकीकत में अंजाम दिया...हमने या हमारी सरकार ने इन साढ़े तीन महीने में क्या किया...सीसीटीवी कैमरे तक नहीं लगवाए जा सके...सवाल यही है कि जिस खतरे का पता होने के बावजूद हम तेरह निर्दोष लोगों की कीमती जानों को नहीं बचा सके...ऐसे में अगर कुदरत ने बिना कोई दस्तक दिए अपनी नज़र तिरछी की तो कैसा मंज़र होगा, ये आप खुद ही अंदाज़ लगा सकते हैं...
यहां दो मिसाल देना चाहूंगा...
जापान ने इस साल 11 मार्च को भूकंप और सुनामी की जो मार झेली थी, उसके भयावह दृश्य आज भी ज़ेहन में कौंधते हैं तो पूरे शरीर में सिहरन दौड़ जाती है...जापान का ये भूकंप 8.9 तीव्रता का था...लेकिन जापान जापान है...1945 में परमाणु हमले की मार के बाद विश्व आर्थिक शक्ति के तौर पर उभरे जापान ने एक बार फिर दिखाया कि उसके लोग किस मिट्टी के बने हैं...बिना विश्व की खास मदद लिए जापान ने इस आपदा से पार पाने के लिए दिन-रात एक कर दिया...जिन सड़कों को भूकंप और सुनामी निगल चुके थे, उसे जापान ने एक महीने में ही दोबारा तैयार कर दिखा दिया कि उसके हौसलों को कुदरत का कहर भी नहीं तोड़ सकता...
अब आपको दिल्ली की तस्वीर दिखाता हूं...
इसी साल 18 जुलाई को दिल्ली के दिलशाद गार्डन में एक निर्माणाधीन बहुमंज़िली इमारत इस लिए गिर गई क्योंकि उसका लालची मालिक नाम मात्र के सीमेंट से बिना ठोस बुनियाद रेत का ही महल खड़ा किए जा रहा था...इसी तरह दिल्ली के ललिता पार्क इलाके में पिछले साल 15 नवंबर को एक इमारत पांचवी मंज़िल का बोझ नहीं सह पाई और ताश के पत्तों की तरह नीचे आ गिरी...नतीजा 67 लोगों की मौत हो गई...मरने वाले मजदूर तबके के थे, इसलिए खास हायतौबा नहीं मची...अधिकारियों-इंजीनियरों को घूस देकर किसी भी तरह का निर्माण करना कोई ज़्यादा मुश्किल बात नहीं है...
यमुना बेड पर ही अक्षरधाम जैसे मंदिर, कॉमनवेल्थ गेम्स विलेज, बहुमंजिली इमारतों को खड़ी करने की धड़ल्ले से अनुमति दे दी जाती है...बिना ये सोचे कि यमुना के आसपास की ज़मीन को छेड़ना भूकंप के लिहाज़ से कितना खतरनाक है...दिल्ली सिस्मिक ज़ोन चार में आता है...दुनिया में भूकंप के लिहाज़ा से सबसे खतरनाक इलाकों को सिस्मिक ज़ोन पांच में रखा जाता है...यानि दिल्ली सिर्फ एक पायदान ही नीचे है...दिल्ली जिस इलाके में आती है, उसकी ज़मीन हर महीने छह से आठ बार हिलती है...हालांकि इनकी तीव्रता कम ही होती है...इसी साल दिल्ली में भूकंप के कई छोटे-बड़े झटके आ चुके हैं...
दिल्ली को ख़तरा एक तरफ़ से नहीं तीन तरफ़ से है...जानकारों के मुताबिक दिल्ली भूकंप के तीस से चालीस एपीसेंटरों की जद में आता है...तीन-तीन फॉल्ट लाइन पर बसी दिल्ली में अगर किसी भी फॉल्ट लाइन पर हलचल होती है तो उसका कंपन महसूस किया जाता है...दिल्ली पर सबसे बड़ा ख़तरा मुरादाबाद फॉल्ट लाइन से है...ये काफ़ी अर्से से शांत है...लेकिन जानकारों का कहना है कि इस लाइन में छोटा सा भी बदलाव पूरे इलाके में भारी तबाही ला सकता है...
दिल्ली के लिए दूसरा खतरा मथुरा फॉल्ट लाइन है...यहां पहले भी कई कंपन पैदा हो चुके हैं...दिल्ली के लिए तीसरा खतरा सोहना फॉल्टलाइन से है...भूगर्भ शास्त्रियों का मानना है कि जहां टेक्टॉनिक प्लेट्स होती है वहां भूकंप का खतरा ज़्यादा रहता है...टेक्टॉनिक प्लेट्स के एक दूसरे पर खाली जगह में फ्लोट करने की जगह जब ये प्लेट एक दूसरे के ठीक सामने आ जाती हैं तो दोनों तरफ से बल लगने पर तनाव उत्पन्न होता है...यही तनाव भूकंप की शक्ल में धरती को हिला देता है...
अब सवाल ये उठता है कि दिल्ली भूकंप के बड़े झटके की मार सहने के लिए कितना तैयार है...क्या हमारे पास जापान जैसा कारगर आपदा प्रबंधन है...क्या हमारी सरकार के पास ऐसी कोई आपात योजना है...यहां सरकार किस तरह काम करती है वो हमने दिल्ली हाईकोर्ट के बाहर हुए धमाके में देख ही लिया है...25 मई को आतंकवादियों ने दिल्ली हाईकोर्ट के बाहर धमाके की रिहर्सल की और फिर करीब साढ़े तीन महीने बाद तबाही को हकीकत में अंजाम दिया...हमने या हमारी सरकार ने इन साढ़े तीन महीने में क्या किया...सीसीटीवी कैमरे तक नहीं लगवाए जा सके...सवाल यही है कि जिस खतरे का पता होने के बावजूद हम तेरह निर्दोष लोगों की कीमती जानों को नहीं बचा सके...ऐसे में अगर कुदरत ने बिना कोई दस्तक दिए अपनी नज़र तिरछी की तो कैसा मंज़र होगा, ये आप खुद ही अंदाज़ लगा सकते हैं...
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जवाब देंहटाएंभूकंप कब और कहाँ से आ जाए किसी को नहीं पता इसलिए जनता को ओनी सुरक्षा का इंतज़ाम खुद करना होगा....राज नेता
जवाब देंहटाएंएक तरफ आतंकवादी , दूसरी तरफ ये टेक्टोनिक प्लेट्स ! ऊपर से पूरी व्यवस्था भ्रष्ट ।
जवाब देंहटाएंभगवान ही मालिक है दिल्ली वालों का ।
लेकिन सिर्फ भगवान भरोसे बैठे रहना भी सही नहीं । मौजूदा भवनों को रिट्रोफिटिंग और अन्य तकनीक द्वारा भूकंप विरोधी बनाया जा सकता है । इस दिशा me जितना जल्दी हो , काम शुरू कर देना चाहिए ।
आगे तो सब ऊपर वाले के हाथ me ही है ।
क्या आप समझते हैं कि सरकारों को जनता की चिंता होती है?
जवाब देंहटाएंउन्हें सिर्फ अपनी और अगले चुनाव में वोट पाने की चिंता होती है।
लेख बहुत अच्छा है। विचारणीय है।
जवाब देंहटाएंयहां कुछ भी हो सकता है और सब कुछ चलता है.
जवाब देंहटाएंहम बहुत पीछे हैं ...आपकी चिंता पर गौर किया जाए तो एक बहुत बड़ा परिवर्तन होगा ! मगर .....??
जवाब देंहटाएंसवाल तंत्र का है। साथ ही जनता की लालची सोच का भी। एक सत्य ये भी है कि जितना यमुना की जलभराव वाली जगह कम होगी उतनी ही हलचल ज्यादा होगी ..खतरा इस बात का है कि भूकंप का केंद्र गहरे भीतर न होकर सतह से महज कुछ किलोमीटर होगा तो हल्का भूंकप भी तबाही ला सकता है।
जवाब देंहटाएंजापान में सरकार लोग और बिल्डर नियमों का पालन करते हैं यही कारण है रिक्टर स्केल पर 6 का भूकंप भी वहां जान माल का ज्यादा नुकसान नहीं करता । लेकिन हमारे यहां तो एमसीडी के जूनियर इंजिनियर को भी घूस देकर बिल्डर सारे नियम तोड़ सकते हैं । इसीलिए कईं जेई ग्रेटर कैलाश जैसे इलाके में बड़ी आलीशान कोठियों में रहते हैं । छापे में पकड़े भी जाते हैं । औऱ अब तो बड़े बिल्डर भकूंपरोधी मल्टीस्टोरी के बड़े बड़े विज्ञापन देते हैं अब पता नहीं ये कितनी भूकंप रोधी हैं ।
जवाब देंहटाएंभगवान से प्रार्थना है ना ही पता चले तो अच्छा है । आपकी चिंता बहुत जायज है लेकिन बस हम तो यही कह सकते हैं -- भगवान भरोसे
speechless hu mai puri tarah, hum japan jaise desh ki technology se apne desh ki tulna nahi kar sakte hai or na hi japan wale bharat se sorruption mei tulna kar sakte hai,india corruption mei number 1 hai
जवाब देंहटाएंसुन्दर चिंतनीय आलेख....! मेरे अन्दर तो डर बैठ गया है उस दिन से... मैं जहाँ रहता हूँ उधर का तो और बुरा हाल है. किराये के लिए मकानमालिक कुछ भी करने को तैयार हैं. उसका वश चले तो वो बाथरूम में रेंट लगा दे... मतलब बस रेंट आने से... आधे से ज्यादा दिल्ली की दुर्गति है. जनसँख्या का घनत्व बहुत ज्यादा है. आपदा प्रबंधन तो खैर है ही नहीं... खली ज़मीन का भी आभाव है... हर घर दुसरे घर में इधर खुलता है.... इतनी ही बात चिंता करने के लिए वाजिब होगी....
जवाब देंहटाएंआपसे मुझे ऐसे ही लेख की उम्मीद रहती है. बहुत गहरी डीटेलिंग के साथ सार्थक चिंतन... शुक्रिया.
यदि ऐसी इमारतें बनायी जाती रहीं तो विनाश होना ही है।
जवाब देंहटाएंचिंतन को मजबूर करती पोस्ट।
जवाब देंहटाएंबाकी भगवान ही मालिक.....
आज का आकर्षण बना है आपका ब्लोग है ज़ख्म पर और गर्भनाल पर अपनी पोस्ट देखियेगा और अपने विचारों से
जवाब देंहटाएंअवगत कराइयेगा । http://redrose-vandana.blogspot.com
काफी विचारणीय आलेख
जवाब देंहटाएंजी लो राम भरोसे
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