अन्ना हज़ारे और लोकतंत्र साथ-साथ नहीं चल सकते...अन्ना बात लोकतंत्र की करते हैं लेकिन स्वभाव से तानाशाह है...ये कहना है पूर्व केंद्रीय मंत्री मोहन धारिया का...मोहन धारिया अन्ना हज़ारे के भ्रष्टाचार निर्मूलन न्यास (बीएनएन) में पूर्व सहयोगी रहे हैं...
अभी अन्ना की आंधी चल रही है...हर कोई उसके साथ बहने को बेताब है...लेकिन आंधी के गुज़रने के बाद जब हम ठंडे दिमाग से सोचेंगे तो समझ आएगा कि क्या गलत है और क्या सही...टीम अन्ना ने देश से भ्रष्टाचार को मिटाने का जो मुद्दा चुना है, मैं शत-प्रतिशत उसके साथ हूं...लेकिन इसके लिए लोकतंत्र को बंधक बनाने के जो तरीके अपनाए जा रहे है, उनसे मैं सहमत नहीं हूं...अन्ना को गांधी बताया जा रहा है...लेकिन गांधी ऐसा कभी नहीं करते जैसा अन्ना ने राजघाट पर किया...इतने लोगों और कैमरों की उपस्थिति में ये कैसा ध्यान था...मुझे समझ नहीं आया...
गांधी को अनशन के लिए लाइम-लाइट अपने ऊपर रखने के लिए कभी कोशिश नहीं करनी पड़ी...गांधी खुद प्रकाश-पुंज थे...वो एक कमरे से भी अनशन शुरू कर देते थे तो ब्रिटिश हुकूमत के पसीने आने शुरू हो जाते थे...मेरा सवाल है कि अन्ना को अनशन के लिए इतने ताम-झाम की ज़रूरत क्यों है...और ये ताम-झाम जिस हाई-टेक अभियान के ज़रिए जुटाया जा रहा है वो आंदोलन के गांधीवादी होने पर खुद सवाल उठा देता है...अगर इस अभियान के लिए पैसे का स्रोत अमेरिका की फोर्ड फाउंडेशन और बदनाम लेहमन ब्रदर्स से निकलता है तो माफ़ कीजिएगा फिर ये पूरा आंदोलन ही बेमानी है...
ये सही है कि निकम्मी सरकार को लेकर देश के लोगों में बहुत गुस्सा है...भ्रष्टाचार के चलते मेरे, आपके, हम सबकी जेब में बड़ा छेद होता जा रहा है...लेकिन इस गुस्से को कैश कर देश को अस्थिर करने की कोई बड़ी साज़िश रची जा रही है तो हमें उसके लिए भी सचेत रहना होगा...सिविल सोसायटी क्यों इस रुख पर अड़ी है कि हमने जो कह दिया सो कह दिया, आपको वो मानना ही पड़ेगा...चलिए मान लेते हैं आपकी बात...बना देते हैं आपके जनलोकपाल बिल को ही क़ानून...लेकिन ऐसा कोई भी क़ानून बना और किसी ने भी उसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे दी तो वो पहली बार में ही उड़ जाएगा...फिर आप ऐसा बीच का रास्ता क्यों नहीं निकालते कि सबकी सहमति से ऐसा फुलप्रूफ सिस्टम बने जिस पर बाद में उंगली उठाने की कोई गुंजाइश ही न बचे...
मैंने पहले भी एक पोस्ट में लिखा था कि सिर्फ पांच लोगों को कैसे देश का भविष्य तय करने की अनुमति दी जा सकती है...क्या सिविल सोसायटी को अपना कैनवास बड़ा करते हुए देश के और अच्छे लोगों को अपने साथ जोड़ने की कोशिश नहीं करनी चाहिए...ढ़ूंढने पर निकलें तो पूर्व राष्ट्रपति कलाम, मैट्रोमैन ई श्रीधरन जैसे कई बेदाग नाम निकल आएंगे जिनकी राय बड़ी अहमियत रखेगी...ये वो नाम हैं जिनकी पूरे देश में स्वीकार्यता है...
ऐसा माहौल नहीं तैयार होना चाहिए कि हम कुएं से निकलें और खाई में गिर जाएं...कांग्रेस से छुटकारा पाएं और फिर सत्ता में उससे भी बुरा विकल्प सामने आ जाए...इस सवाल पर कोई विचार नहीं कर रहा...कांग्रेस के बाद कैसे मज़बूत विकल्प देश को दिया जाए...अगर मौजूदा राजनीतिक दलों में से ही ये विकल्प निकलना है तो फिर 1977, 1990 की पुनरावृत्ति के लिए ही तैयार रहिए...जल्दी ही वो विकल्प धराशाई होगा और फिर आपको कांग्रेस ही राज़ करती दिखाई देगी...
वही कांग्रेस जिसकी प्रबंधन टीम ने आज इसकी छवि आतताई ब्रिटिश हुकूमत जैसी कर दी है...राहुल गांधी ने विदेश से लौटते ही ऐसा आभास दिया कि अन्ना क्राइसिस को सुलझाने के लिए वो कमान अपने हाथ में लेना चाहते हैं...मनीष तिवारी, दिग्विजय सिंह, कपिल सिब्बल और अन्य कांग्रेस नेताओं की तरफ से अन्ना के खिलाफ जो बयानबाजी हो रही थी, उस पर अचानक ब्रेक लगे...अब ऐसा भी जताया जा रहा है कि राहुल गांधी प्रधानमंत्री से बातचीत कर टीम अन्ना से समझौते के लिए कोई रास्ता निकालना चाहते हैं...जो भी होगा वो एक दो दिन में आपके सामने आ जाएगा...लेकिन राहुल जी, अगर यही सब करना था तो इंतजार किस बात का किया जा रहा था...क्या देखना चाह रहे थे कि अन्ना के समर्थन में कितने लोग घरों से निकलते हैं...राहुल आप राजनीति का एक मास्टरस्ट्रोक चलने में चूक गए हैं...15 अगस्त को आप भी उस वक्त राजघाट पर अन्ना के साथ बैठने के लिए चले जाते और आशीर्वाद लेकर वही समझौते की दिशा में बढ़ने का ऐलान कर देते तो आज जो तस्वीर दिख रही है, वो उससे बिल्कुल उलट होती...
खैर इस वक्त तो बापू का भजन ही गाया जा सकता है...रघुपति राघव राजा राम, सबको सम्मति दे भगवान...
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बढ़िया विवेचना !
जवाब देंहटाएंभीड़ की धारा से हटकर लिखे गए,बेहतरीन लेख के लिए बधाई खुशदीप भाई !
अन्ना तो पूरा अन्ना है और देसी है , कांग्रेसी है
जवाब देंहटाएंअगर कोई गन्ना भी खड़ा हो किसी बुराई के खि़लाफ़ तो हम हैं उसके साथ।
कांग्रेसी नेता कह रहे हैं कि अन्ना ख़ुद भ्रष्ट हैं।
हम कहते हैं कि यह मत देखो कौन कह रहा है ?
बल्कि यह देखो कि बात सही कह रहा है या ग़लत ?
क्या उसकी मांग ग़लत है ?
अगर सही है तो उसे मानने में देर क्यों ?
अन्ना चाहते हैं कि चपरासी से लेकर सबसे आला ओहदा तक सब लोकपाल के दायरे में आ जाएं और यही कन्सेप्ट इस्लाम का है।
कुछ पदों को बाहर रखना इस्लाम की नीति से हटकर है।
अन्ना की मांग इंसान की प्रकृति से मैच करती है क्योंकि यह मन से निकल रही है, केवल अन्ना के मन से ही नहीं बल्कि जन गण के मन से।
इस्लाम इसी तरह हर तरफ़ से घेरता हुआ आ रहा है लेकिन लोग जानते नहीं हैं।
आत्मा में जो धर्म सनातन काल से स्थित है उसी का नाम अरबी में इस्लाम अर्थात ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण है और भ्रष्टाचार का समूल विनाश इसी से होगा।
आप सोमवार को
ब्लॉगर्स मीट वीकली में तशरीफ़ लाए थे, तब भी हमने यही कहा था।
कुछ-कुछ यही बातें मैंने भी अपने लेख में कही थी...
जवाब देंहटाएंलोकपाल बिल के लिए जवाबदेह कौन होगा?
जन लोक पाल बिल और लोकपाल बिल का अंतर क़ोई कहीं विस्तार से दे ताकि बात खुले
जवाब देंहटाएंभ्रष्टाचार का मुद्दा बिलकुल सही
अन्ना का तरीका सही या गलत अभी निर्णय देने में मानसिक उह पोह
कारण हो सकता हैं यही तरीका सही हो क्या पता
लेकिन मुझे ये सही नहीं लगता की जिस देश की संसद में ५०० से ऊपर लोग हो उस देश के कानून और सामाजिक व्यवस्था का काम १० लोगो से भी कम की सिविल सोसाइटी करे . वो दस लोग जो कहे मान लिया जाये
गाँधी जी जब करते थे अनशन तो वो सविनय अवज्ञा आन्दोलन था , एक विदेशी सरकार के कानून को तोडना और इसके लिये वो सजा से नहीं डरते थे . उनका मानना था की ब्रिटिश हुकूमत जाए और हम अपने कानून बनाये वो कानून तोड़ कर हुकूमत के खिलाफ थे वो कानून के खिलाफ नहीं थे . कानून तोडने की सजा सालो जेल में रह कर उन्होने काटी थी
अन्ना और उनके सिविल सहयोगी कानून का पालन नहीं करना चाहते
वो कानून से भी बड़े हैं क्युकी वो जो कहे वो ही सही हैं
वो जेल में हैं क्युकी धारा १४४ का पालन नहीं हुआ
अगर धारा १४४ लगाना गलत हैं तो ये नियम भी संसद से ही पास करवाना होगा
और अगर वो सही हैं तो उस नियम का पालन तो करना ही होगा
अन्ना को जेल भेजने का निर्णय बेहद घटिया था
पहले भी बहुत बार गिरफ्तारियां हुई हैं रैलियों में पर सब को कहीं दूर ले जा कर छोड़ दिया जाता हैं
आज फैशन की तरह अन्ना का नाम लिया जा रहा जो नेता नहीं ले रहा यानी वो भ्रष्टाचारी हैं
मैं अन्ना हज्जारे का समर्थक नहीं विरोधी हूँ
जवाब देंहटाएं!!!! " क्यों " ???????????
मित्रो हम भारत से "भ्रष्टाचार" मिटाने के लिये इतने ही कटिबद्ध है जितने की एक माँ अपने बच्चे के मुह से गंदगी साफ़ करने के लिए होती है. भ्रष्टाचार देश के ऊपर लगा वो कलंक है जिस से देश के तिरंगे का रंग भी धूमिल हो रहा है. यह भारत माता के दुपट्टे पर वो गन्दा दाग है जिस से भारत माता भी शर्मिंदा है. परन्तु क्या श्री अन्ना हज्जारे जी वास्तव में इस दाग को हटाना चाहते है या सिर्फ चंद लोगो के मोहरे बनकर देश को एक अँधेरी खाई में गर्त करना चाहते है. उनके इस गैर जिम्मेदार रवैये और अदुर्दार्शिता के कारण "मैं" उनके आन्दोलन का समर्थन नहीं करता. परन्तु कांग्रेस सरकार का विरोध करता हूँ इस बात के लिए की देश में विरोध करने का अधिकार वो देश के नागरिको से नहीं छीन सकती है.
मैं अन्ना हज्जारे के आन्दोलन का विरोधी हूँ क्योंकि -
http://parshuram27.blogspot.com/2011/08/blog-post.html
gandhi ji ko kisi se bhi compare nahi kia ja sakta ye baat bilkul sahi hai, anna ji desh se bharashtachaar mitana chahte hai ab sarkar se ladna hai apni baat manwani hai to koi na koi tareeka apna na hi padega , mai is baat se bhi sehmat hu ke itne bade jan lokpal bill mei chnad 10-12 logo ke dwara chalaya jana galat hai, par agar ye bill pass ho jata hai to desh se bharashtachaar jarur dur ho sakega
जवाब देंहटाएंयदि गाँधी जी के जिद्दो ताना शाही की कहानी बताऊ तो बाते ख़त्म ही नहीं होंगी प्रधानमंत्री के रूप में नेहरू उनके तानाशाही के निशानी थे | फिर भी गाँधी जी से अन्ना की तुलना नहीं करुँगी दोनों में काफी फर्क है किन्तु एक आम आदमी की नजर से देखीये तो गाँधी के गहरे चिंतन या विचारो की उसे कोई जानकारी नहीं थी गाँधी का मतलब उनके लिए देश के लिए लड़ना , सादा जीवन ,पद की लालसा ना करना ,अहिंसा के मार्ग पर चलना आम जनता के लिए मोटा मोटी यही गाँधी है आन्ना इस पूरे ढांचे में बहुत कुछ फिट बैठते है इसलिए वो गाँधी जैसे है गाँधी नहीं है |
जवाब देंहटाएंखुशदीप जी अन्ना हजारे की टीम में अब २२ से ज्यादा लोग है ये पुरा बिल उनका ही नहीं है उन्होंने काफी समय पहले ही उसे अपनी वेबसाईट पर डाल दिया था और आम लोगों से कहा था की आप सभी उसे पढ़े और जिसके पास जो भी सुझाव है उसे वहा दे | हजारो सुझाव इस बिल पर उन्हें मिले जिनमे से तीन हजार से ज्यादा आम लोगों द्वारा दिये सुझावों को माना गया और इस बिल को जिसे आज पास करने के लिए कहा जा रहा है उनमे २४ संसोधन किये गये | फिर आप इसे केवल पांच लोगों का बिल कैसे कह सकते है यदि आप के पास इतना क्षमता और जानकारी है तो आप भी अपने सुझाव वहा दे सकते है यदि वो व्यावहारिक और अच्छे हुए तो वो भी उसमे शामिल किया जायेगा फिर आप भी इस बिल का निर्माण करने वालो में एक होंगे |
रही बात साधनों को पवित्रता की तो मै इनमे ज्यादा विश्वास नहीं रखती हूँ मज़बूरी है क्योकि ऐसा किया तो कल ही पति को नौकरी छोड़नी पड़ेगी क्योकि हमें नहीं पता है की उनकी कंपनी में किसने और कैसे पैसे लगाये है पता नहीं कौन कहा से पैसे न्यूज चैनलों में लगा रहा है अपने फायदे के लिए सरकार से सौदे बाजी कर रहा है पर लोग वहा काम तो कर ही रहे है ना नौकरी है , जरुरी ये है की अपना काम ईमानदारी से किया जाये | टीम से पैसे किससे लिए ये जरुरी नहीं है जरुरी ये है की यदि पैसे एक अच्छे काम को करने के लिए लिए है तो वो काम होना चाहिए ईमानदारी से होना चाहिए और उस पैसा का जो देश को सुधारने के लिए लिया गया है उसका प्रयोग उसी के लिए हो ना की कोई अपनी निजी तिजोरी उसे भरे |
सबसे आखरी बात समय बदलने के साथ ही आप को लोगो को जोड़ने के लिए नये तरीके अपनाने ही पड़ते है नहीं बात आप पुराने तरीके से नहीं कर सकते है |
आपकी विवेचना व विचारों से १००% सहमत|
जवाब देंहटाएंसबको सम्मति दे भगवान...
जवाब देंहटाएंहमारी भी यही प्रार्थना है ।
जयहिंद ।
सबको सम्मति दे भगवान।
जवाब देंहटाएंइस सुन्दर पोस्ट पर टिप्पणी में देखिए मेरे चार दोहे-
जवाब देंहटाएंअपना भारतवर्ष है, गाँधी जी का देश।
सत्य-अहिंसा का यहाँ, बना रहे परिवेश।१।
शासन में जब बढ़ गया, ज्यादा भ्रष्टाचार।
तब अन्ना ने ले लिया, गाँधी का अवतार।२।
गांधी टोपी देखकर, सहम गये सरदार।
अन्ना के आगे झुकी, अभिमानी सरकार।३।
साम-दाम औ’ दण्ड की, हुई करारी हार।
सत्याग्रह के सामने, डाल दिये हथियार।४।
rahul bhaiya ki taiyari hai.. anshumala ki tippani sabse sateek hai.. anwer jamal sahab ki tippani padkar aanand aa raha hai.. islami parampara ka loktantra...
जवाब देंहटाएंसरकार के सारे दांव उलटे पड़ रहे है .
जवाब देंहटाएंबेहतरीन लेख।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी पोस्ट .. आपके इस पोस्ट की चर्चा अन्ना हजारे स्पेशल इस वार्ता में भी हुई है .. असीम शुभकामनाएं !!
जवाब देंहटाएंI support the thoughts of anshumala.Anna ek admi ka nam nahi hai bulki mahtma gandhi ke us antim vyakti tak pahunchne ka rasta hai jo apni garibi aur sadhanheenta ke karan apne uper hone wale julmo ke khilaf bol bhi nahi sakta. Khushdeep bhai kis loktantra ki bat kah rahe hai jo udyogpatiyon aur sharmyedaro ke dwara samanya janta ka shoshan karta hai.
जवाब देंहटाएंमैं आपकी बात से सहमत नहीं हूँ। कांग्रेस के प्रवक्ता की तरह जिरह कर रहे हैं। इसलिए क्या प्रतिक्रियां दूं?
जवाब देंहटाएंभगवान्... बेचारे अन्ना को भी सम्मति दे... बड़ा मज़ा आता है लोगों को भेडचाल में चलते हुए देखते हुए... यह समझ में आ गया कि हम भारतीयों को लोकतंत्र का मतलब नहीं पता है... जो जैसे हांकेगा हंक जायेंगे... सबको अधिकारियों और नेताओं के भ्रष्टाचार नज़र आ रहे हैं... लेकिन मल्टीनेशनल्स, बिजनेसमैन, और खुदरा व्यापारियों के भ्रष्टाचार किसी को नज़र नहीं आ रहे.... इंटरनेट पर ही देख लीजिये एक ही सेम प्रोडक्ट के अलग अलग वेबसाइट पर अलग अलग दाम हैं... अन्ना भी अमरीकन पैसों से ही सब कुछ कर रहे हैं... और इसीलिए एन.जी.ओज़. को लोकपाल से अलग करने की जिरह कर रहे हैं... लोग सिक्के का एक ही पहलू दिख रहे हैं ... और मिडिया भी वही दिखा रही है जो रुपर्ट मर्डोक कह रहा है... चूंकि मिडिया में वही लोग हैं जो लोग स्कूल कॉलेज में नालायक थे... कहीं कुछ मिला नहीं तो यहाँ चले आये... तो हर नासमझी की चीज़ बता देते हैं और दिखा देते हैं... मैं भ्रष्टाचार के खिलाफ हूँ.... लेकिन अन्ना जैसों के साथ नहीं... और क्यूंकि मेरे पास सोचने समझने की ताक़त भी है तो मैं ... वो सोच समझ भी सकता हूँ... और बेवकूफ लोग फौलोवर्स होते हैं.... आपका लेख बहुत अच्छा लगा... कमेन्ट करने के स्टैण्डर्ड लायक....
जवाब देंहटाएंसबसे पहली बात तो ये है की जनलोकपाल बिल सिर्फ एक सिविल सोसाईटी की मांग नहीं है , भ्रष्टाचार से त्रस्त आम आदमी की मांग है , यह मध्यमवर्गीय जन की पीड़ा है क्योंकि सबसे ज्यादा भुगतना उसे ही पड़ रहा है ...
जवाब देंहटाएंसिविल सर्विसेज और पुलिस सेवा में चुने जाते समय जो भावना युवाओं में होती है , धीरे -धीरे क्यों कुंद हो जाती है , हम समझते नहीं या समझना नहीं चाहते हैं ...
लोग कहते हैं जनता चुनती है सरकार ,मगर ये नहीं देखते की जिसे भी चुना जाता है , सत्ता के शीर्ष पर पहुचते ही उसकी भाषा बदल जाती है , इसलिए इस लोकपाल बिल में नापसंदगी का प्रावधान रखा गया है जो आम जनता की मदद ही करेगा !
यह तर्क भी असंगत है कि यदि आम आदमी रिश्वत ना देने या लेने की ठान ले तो इस पर अंकुश लग सकता है , नीचे पायदान पर कितने लोग कितनी रिश्वत लेते या देते हैं , उससे इतना फर्क नहीं पड़ता जितना कि शीर्ष पर बैठे लोगों के लाखों , करोड़ों लेने से होता है ...उच्च स्तर पर रिश्वत शौक पूरा करने के लिए ली जाती है , जबकि आम आदमी अपनी जरूरतें पूरा करने के लिए इस दलदल में पड़ता है!
इसे निश्चित ही सकारात्मक लेखन कहा जाएगा।
जवाब देंहटाएंहम हिंदी ब्लॉगिंग गाइड लिख रहे हैं, यह बात आपके संज्ञान में है ही।
क्या आप इस विषय में तकनीकी जानकारी देता हुआ कोई लेख हिंदी ब्लॉगर्स के लिए लिखना पसंद फ़रमाएंगे ?
अब तक हमारी गाइड के 26 लेख पूरे हो चुके हैं। देखिए
डिज़ायनर ब्लॉगिंग के ज़रिये अपने ब्लॉग को सुपर हिट बनाईये Hindi Blogging Guide (26)
यह एक यादगार लेख है जिसे भुलाना आसान नहीं है।
jai hind !
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