बड़े बेआबरू होकर तेरे कूचे से हम निकले...अन्ना हजारे के 'जंतर-मंतर' पर उमा भारती, अजित सिंह, मदन लाल खुराना और ओम प्रकाश चौटाला जैसे नेता छब्बे जी बनने के इरादे से पहुंचे थे...लेकिन जनता ने ऐसा हूट किया कि छब्बे तो दूर चौबे से भी दूबे ही रह गए...इरफ़ान भाई ने अपने कार्टून में नेताओं की इस गत को क्या खूब पकड़ा है...
राजनीति की गंदगी से आज़िज़ देश का हर नागरिक सिस्टम में सफ़ाई चाहता है...अब ये सफ़ाई हो तो हो कैसे...अन्ना का दबाव बिल्कुल सही है कि देश की तकदीर तय करने का काम नेताओं के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता...अब जनता के अपने नुमाइंदों की भी निर्णय की प्रक्रिया में भागीदारी होनी चाहिए...यहां सरकार का तर्क हो सकता है कि उन्हें भी तो देश की जनता ने चुन कर ही दिल्ली भेजा है...लेकिन इस सवाल को ही गौर से देखें तो उसी में जवाब छुपा है...
जंतर-मंतर की मुहिम यही तो चाहती है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ ऐसा कटखन्ना सिस्टम बने कि कहीं भी कोई नेता-नौकरशाह भ्रष्ट आचरण करता दिखे तो उसके कपड़े पूरी तरह फाड़ कर नंगा कर दे...ताकि फिर कोई दूसरा नेता ऐसी ज़ुर्रत न कर सके...बस इस कटखन्ने सिस्टम को बनाने के लिए ही जनता के बीच से ही ईमानदार, बेजोड़ साख वाले अच्छे लोगों की आवश्यकता है....
जो भी इस मुहिम के लिए चुने जाएं, उनसे अन्ना शपथपत्र लें कि वो खुद कभी सत्ता की राजनीति नहीं करेंगे...कभी कोई लाभ का पद नहीं स्वीकारेंगे...न ही अपनी औलाद या भाई-भतीजों को आगे बढ़ाने के लिए अनैतिक रास्ते अपनाएँगे...अगर शपथ-पत्र देकर भी कोई ऐसा आचरण दिखाता है तो जनता को फिर अपने आप ही उससे सुलटने का अधिकार हो...
अन्ना की मुहिम देश में पहली गैर राजनीतिक मुहिम नहीं है जिसे जनता का अपार समर्थन मिला...याद कीजिए अस्सी के दशक के आखिर में भारतीय किसान यूनियन के बैनर तले महेंद्र सिंह टिकैत का मेरठ कमिश्नरी का घेराव...हज़ारों किसान अपने पशु आदि लेकर दिन-रात कमिश्नरी पर आ डटे थे...उस वक्त टाइम मैगजीन ने भी टिकैत को महात्मा टिकैत बताते हुए स्टोरी की थी...टिकैत ने भी नेताओं को अपने मंच पर आने से प्रतिबंधित किया था...अगर कोई नेता टिकैत से मिलने की बहुत ज़्यादा इच्छा जताता भी था तो उसे भी आम लोगों की तरह ही लंबी लाइन में लगकर टिकैत से मिलने के लिए अपनी बारी का इंतज़ार करना पड़ता था...वीपी सिंह और राज बब्बर को तो मैंने खुद अपनी आंखों से ऐसे ही लाइन में लगे हुए देखा था...टिकैत जब तक गैर राजनीतिक रहे, लोगों के दिल में बने रहे...लेकिन बाद में वो भी राजनीति के जाल में उलझने से बचे नहीं रह सके...वहीं से उनका पतन शुरू हो गया...
अन्ना को भी टिकैत से सीख लेते हुए ये ध्यान देने की ज़रूरत है कि उनके आस-पास कौन लोग हैं...कल सत्ता की ज़रा सी चाशनी देखकर उनकी जीभ लपलपाने तो नहीं लगेगी...सत्तर के दशक में जेपी ने भी बड़ी मेहनत से इंदिरा गांधी को सत्ता से उखाड़ा था...लेकिन उस वक्त जेपी की समग्र क्रांति में अपने लिए सत्ता का रास्ता तलाशने वाले नेताओं ने क्या किया...दो साल में ही आपस में ऐसी महाभारत रची कि जनता को फिर इंदिरा गांधी में ही मसीहा नज़र आने लगा...यही कहानी अस्सी के दशक के आखिर में फिर देश में दोहराई गई...राजा नहीं फकीर है, देश की तकदीर है...का नारा देकर और ईमानदारी का राग अलाप-अलाप कर वी पी सिंह ने राजीव गांधी को सत्ता से बाहर कर दिया था...वी पी सत्ता में आए तो फिर नतीज़ा ढाक के तीन पात...बोफोर्स को ढाल बनाकर वीपी का सारा राग बस सत्ता को पाने के लिए ही था...लेकिन लालसा दूसरी पार्टियों के नेताओं की भी कम नहीं थी...नतीजा डेढ़ साल में ही वीपी सरकार ने दम तोड़ दिया...
देश के सामने आज फिर विकल्पहीनता की स्थिति है...मनमोहन सरकार के जाने की स्थिति बनती भी है तो उसके बाद कौन...बीजेपी, लेफ्ट या भारतीय राजनीति का चिरकालिक प्रहसन तीसरा मोर्चा...क्या ये सब दूध के धुले हुए हैं...आज कई देशों में जास्मिन क्रांति (ऐसा आंदोलन जिसका कोई राजनीतिक रंग न हो) के चलते दशकों से जमे शासकों को सत्ता छोड़नी पड़ रही है...लेकिन भारत की स्थिति दूसरी है...यहां बदलाव से ज़्यादा इस वक्त ज़रूरी है, ऐसा सिस्टम अमल में लाना जिसके चलते सत्ता में रहने वाले भ्रष्ट हो ही न सकें...फिर कोई भी पार्टी सत्ता में आए, उससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा...बस जनता का इस तरह का अंकुश तैयार होना चाहिए कि जहां कोई ज़़रा सा भी हेराफेरी करे तत्काल उसकी पीठ पर ऐसा कोड़ा पड़े कि वो दोबारा उठने की ज़ुर्रत ही न कर सके...आज बदलाव से ज़्यादा देश को कटखन्ने लोकपाल की ज़रूरत है, जो सच में ही जनता के हितों का रखवाला हो...अन्ना के साथ अगर ऐसे वालटिंयर्स हैं तो फिर इस देश की तकदीर को बदलने से कोई नहीं रोक सकता...देश के हर कोने से अन्ना के लिए यही सुनाई देगा....आवाज़ दो, आवाज़ दो, हम एक हैं, हम एक हैं...
राजनीति की गंदगी से आज़िज़ देश का हर नागरिक सिस्टम में सफ़ाई चाहता है...अब ये सफ़ाई हो तो हो कैसे...अन्ना का दबाव बिल्कुल सही है कि देश की तकदीर तय करने का काम नेताओं के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता...अब जनता के अपने नुमाइंदों की भी निर्णय की प्रक्रिया में भागीदारी होनी चाहिए...यहां सरकार का तर्क हो सकता है कि उन्हें भी तो देश की जनता ने चुन कर ही दिल्ली भेजा है...लेकिन इस सवाल को ही गौर से देखें तो उसी में जवाब छुपा है...
जंतर-मंतर की मुहिम यही तो चाहती है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ ऐसा कटखन्ना सिस्टम बने कि कहीं भी कोई नेता-नौकरशाह भ्रष्ट आचरण करता दिखे तो उसके कपड़े पूरी तरह फाड़ कर नंगा कर दे...ताकि फिर कोई दूसरा नेता ऐसी ज़ुर्रत न कर सके...बस इस कटखन्ने सिस्टम को बनाने के लिए ही जनता के बीच से ही ईमानदार, बेजोड़ साख वाले अच्छे लोगों की आवश्यकता है....
जो भी इस मुहिम के लिए चुने जाएं, उनसे अन्ना शपथपत्र लें कि वो खुद कभी सत्ता की राजनीति नहीं करेंगे...कभी कोई लाभ का पद नहीं स्वीकारेंगे...न ही अपनी औलाद या भाई-भतीजों को आगे बढ़ाने के लिए अनैतिक रास्ते अपनाएँगे...अगर शपथ-पत्र देकर भी कोई ऐसा आचरण दिखाता है तो जनता को फिर अपने आप ही उससे सुलटने का अधिकार हो...
अन्ना की मुहिम देश में पहली गैर राजनीतिक मुहिम नहीं है जिसे जनता का अपार समर्थन मिला...याद कीजिए अस्सी के दशक के आखिर में भारतीय किसान यूनियन के बैनर तले महेंद्र सिंह टिकैत का मेरठ कमिश्नरी का घेराव...हज़ारों किसान अपने पशु आदि लेकर दिन-रात कमिश्नरी पर आ डटे थे...उस वक्त टाइम मैगजीन ने भी टिकैत को महात्मा टिकैत बताते हुए स्टोरी की थी...टिकैत ने भी नेताओं को अपने मंच पर आने से प्रतिबंधित किया था...अगर कोई नेता टिकैत से मिलने की बहुत ज़्यादा इच्छा जताता भी था तो उसे भी आम लोगों की तरह ही लंबी लाइन में लगकर टिकैत से मिलने के लिए अपनी बारी का इंतज़ार करना पड़ता था...वीपी सिंह और राज बब्बर को तो मैंने खुद अपनी आंखों से ऐसे ही लाइन में लगे हुए देखा था...टिकैत जब तक गैर राजनीतिक रहे, लोगों के दिल में बने रहे...लेकिन बाद में वो भी राजनीति के जाल में उलझने से बचे नहीं रह सके...वहीं से उनका पतन शुरू हो गया...
अन्ना को भी टिकैत से सीख लेते हुए ये ध्यान देने की ज़रूरत है कि उनके आस-पास कौन लोग हैं...कल सत्ता की ज़रा सी चाशनी देखकर उनकी जीभ लपलपाने तो नहीं लगेगी...सत्तर के दशक में जेपी ने भी बड़ी मेहनत से इंदिरा गांधी को सत्ता से उखाड़ा था...लेकिन उस वक्त जेपी की समग्र क्रांति में अपने लिए सत्ता का रास्ता तलाशने वाले नेताओं ने क्या किया...दो साल में ही आपस में ऐसी महाभारत रची कि जनता को फिर इंदिरा गांधी में ही मसीहा नज़र आने लगा...यही कहानी अस्सी के दशक के आखिर में फिर देश में दोहराई गई...राजा नहीं फकीर है, देश की तकदीर है...का नारा देकर और ईमानदारी का राग अलाप-अलाप कर वी पी सिंह ने राजीव गांधी को सत्ता से बाहर कर दिया था...वी पी सत्ता में आए तो फिर नतीज़ा ढाक के तीन पात...बोफोर्स को ढाल बनाकर वीपी का सारा राग बस सत्ता को पाने के लिए ही था...लेकिन लालसा दूसरी पार्टियों के नेताओं की भी कम नहीं थी...नतीजा डेढ़ साल में ही वीपी सरकार ने दम तोड़ दिया...
देश के सामने आज फिर विकल्पहीनता की स्थिति है...मनमोहन सरकार के जाने की स्थिति बनती भी है तो उसके बाद कौन...बीजेपी, लेफ्ट या भारतीय राजनीति का चिरकालिक प्रहसन तीसरा मोर्चा...क्या ये सब दूध के धुले हुए हैं...आज कई देशों में जास्मिन क्रांति (ऐसा आंदोलन जिसका कोई राजनीतिक रंग न हो) के चलते दशकों से जमे शासकों को सत्ता छोड़नी पड़ रही है...लेकिन भारत की स्थिति दूसरी है...यहां बदलाव से ज़्यादा इस वक्त ज़रूरी है, ऐसा सिस्टम अमल में लाना जिसके चलते सत्ता में रहने वाले भ्रष्ट हो ही न सकें...फिर कोई भी पार्टी सत्ता में आए, उससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा...बस जनता का इस तरह का अंकुश तैयार होना चाहिए कि जहां कोई ज़़रा सा भी हेराफेरी करे तत्काल उसकी पीठ पर ऐसा कोड़ा पड़े कि वो दोबारा उठने की ज़ुर्रत ही न कर सके...आज बदलाव से ज़्यादा देश को कटखन्ने लोकपाल की ज़रूरत है, जो सच में ही जनता के हितों का रखवाला हो...अन्ना के साथ अगर ऐसे वालटिंयर्स हैं तो फिर इस देश की तकदीर को बदलने से कोई नहीं रोक सकता...देश के हर कोने से अन्ना के लिए यही सुनाई देगा....आवाज़ दो, आवाज़ दो, हम एक हैं, हम एक हैं...
आज सारा देश अन्ना के साथ है.....
जवाब देंहटाएं१००% सहमत
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर विश्लेषण.
जवाब देंहटाएंआवाज दो हम एक हैं,बहुत पसंद आया.
सही विकल्प की आवश्यकता है.
राजनीति का मुकाबला तो राजनीति से ही किया जा सकता है।
जवाब देंहटाएंसंघर्ष लम्बे समय तक चला तो यह नई जनतांत्रिक राजनैतिक शक्ति को जन्म दे सकता है जिस पर जनता का नियंत्रण हो, धन का नहीं।
बड़ा मुश्किल है कल राजनीति से दूर रह पाना इनके चेलों का भी. इनमें से कौन है जो लाइमलाइट में नहीं रहना चाहता.
जवाब देंहटाएंसमाज के ईमानदार लोग संगठित हों, आज इसकी ज़रुरत है .
जवाब देंहटाएंआप अच्छी जानकारी देते हैं .
आपके ब्लॉग का लिंक यहाँ लगाया जा रहा है .
कृपया देखें -
http://blogkikhabren.blogspot.com/
बढ़िया कदम .....
जवाब देंहटाएंआभार !
हम अन्ना के साथ हैं, आखिर हमें भ्रष्टाचार मुक्त व्यवस्था चाहिये।
जवाब देंहटाएंआजादी के बाद यदि हमने अंग्रेजों के कानून को जस का तस नहीं अपनाया होता तो राजनेता आज राजा नहीं बने होते। राजा और प्रजा के लिए एक कानून बनाना ही होगा। जब कानून में नौकरशाह और राजनेता सीधी कार्यवाही से बचे हुए हैं तो कौन इन्हें भ्रष्टाचार से रोकेगा। इसलिए सशक्त लोकपाल विधेयक आज की आवश्यकता है। लेकिन जब सारे ही नौकरशाह और राजनेता इतने शातिर हो चले हैं तब इन्हें किसी नियम और कानून में बांधना बड़ी टेडी खीर साबित होगी। इसलिए समाज के एक वर्ग को आगे आना होगा और ईमानदारी की शपथ लेकर इन पर सीधी कार्यवाही का वातावरण बनाना होगा।
जवाब देंहटाएंहम अन्ना के साथ हैं.....
जवाब देंहटाएंjai baba banaras
हम अन्ना के साथ हैं, आखिर हमें भ्रष्टाचार मुक्त व्यवस्था चाहिये।
जवाब देंहटाएंsolid hai bhai.....'katkhhanna'....isiki jaroorat hai....
जवाब देंहटाएंpranam.
भेड़िय़ॉं के झुंड़ में
जवाब देंहटाएंदो दिनों से बहुत खलबली है।
एक गाय नें अपने सींग में
शमशान की राख मली है।
हम सबके साथ और सब अन्ना के साथ.
जवाब देंहटाएंजय हिन्द...
आज हर वो इंसान जो खुद को भारतीय मानता है अन्ना के साथ है। इतिहास जरूर बदलेगा।
जवाब देंहटाएंसटीक विश्लेषण किया है ...राजनीति से दूर तो नहीं रहा जायेगा इस लड़ाई में हाँ लिप्त होने से बचाया जा सकता है ..
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंजनता का अन्ना हज़ारे के साथ यूँ उठ खड़े हो जाना महत्वपूर्ण है ।
फिर भी हमें राजनैनिक दल के भेदियों और भितरघातियों से सावधान रहना होगा !
सच है, अन्ना का प्रयास सराहनीय है और हम सब उनके साथ हैं!
जवाब देंहटाएंमन साफ हो तभी वहाँ जायें यह लोग।
जवाब देंहटाएंBahut salon ke bad desh me ek achchee bat ko lekar khlbalee hai. Hum sab Anna ke sath hain. ek sawal hia ki agar ye lokpal ill ka draft ban bhee gay to pas karne wale to ye brasht rajneta hee honge aur aage badhane wale baboo use filon me hee daba na denge. Hum sabkee hriday se shubh kamnaen is naye lokpal bill ke liye.
जवाब देंहटाएंNamskar
जवाब देंहटाएंAapki awaz ko vistar diya ja raha hai.
http://www.kranti4people.com/article.php?aid=621
अन्ना जी! भले ही आपके इरादे नेक हैं पर जब आम हिंदुस्तानी ही चोर और भ्रष्ट है तो फिर भ्र्ष्टाचार तो भारत से जाने वाला नहीं । देश में २२% लोग दुकानदारी से होने वाली आय पर जीते हैं। पर ५००दुकानदार भी टैक्स नहीं देते। ६% लोग बड़े किसान हैं,टैक्स मुक्त आय! जाति के नाम पर वोट देने वाली जनता केवल अन्ना हजारे के आंदोलनों पर ताली बजाती है,और फिर खुद भ्र्ष्टाचार में डूब जाती है। चोरों के इस देश में लोकपाल भी भ्रष्ट ही आयेगा........
जवाब देंहटाएंदोस्तों मुझे पता है कि मेरी बात आपको अच्छी नहीं लगेगी,पर अपने गिरेबान में देखें, कब आपने बिजली की चोरी की,कब ट्रेन में टी.टी. को रिश्वत दी,कब अपने बच्चों के एडमिशन के लिये रिश्वत दी,आप अपनी सुविधा के लिये रिश्वत देते हैं। याद रखिये,जबतकआप भ्रष्ट हैं,भारत से भ्र्ष्टाचार नहीं जाने वाला! केवल एक और भ्रष्ट लोक्पाल टैक्स देने वालों के पैसे से तनख्वाह लेने लगेगा।
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
अगर हम अन्ना हजारे बन नहीं सकते तो कम से कम उसका साथ तो दे ही सकते हैं...
जवाब देंहटाएंनीरज
शुक्र है किसी ने तो आवाज़ उठाई । अन्ना के ज़ज़्बे को सलाम ।
जवाब देंहटाएंखुसदीप भाई मैं तो यहाँ रोज 17-18 घंटे गुजार रहा हूँ...लोगों में सभी पार्टी के नेताओं के प्रति घृणा को देखकर मुझे लग रहा है की मैं तो इन कुकर्मियों से बहुत कम घृणा करता हूँ....? सचमुच बेशर्मी की सारी हदें तोर दी है इन संवेधानिक पदों पर बैठे लोगों ने...
जवाब देंहटाएंखुशदीप..विचारणीय पोस्ट. मैने भी वहां का आंखो देखा हाल लिखा है। वहां जाकर बाजूएं फड़कने लगती हैं। जो जा सकते हैं वहां एक बार जरुर जाएं। इस आंदोलन को हमारे समर्थन की जरुरत है। ये हमारे लिए है..वक्त आ गया है। चुप बैठना अपराध है। देश को सही मायने में आजादी दिलाना होगा..हम सब अपने तरीके से अपनी भूमिका निभा रहे हैं। लिखते रहिए..
जवाब देंहटाएंनेता-अफसरों के साथ लालाओं को भी इसके शिकंजे में लाना पड़ेगा..
जवाब देंहटाएंहोश में आओ, सत्ता के शैतानों , अन्ना का कहना मानो
जवाब देंहटाएंअन्ना को लेकर पूरे देश में तूफान उठ खड़ा हुआ है । यह इस बात का द्योतक है कि आम आदमी कितना दुखी, निराश और बेबस हो गया है । अब अन्ना को देखकर मरती आशा में पुन: रक्त संचार होने लगा है । विडंबना ही है कि हमारे देश मे ईश्वर को विभिन्न रूप लेकर धरती पर आना पड़ा है । हम लोगों ने ईश्वर को कभी चैन से बैठने ही नहीं दिया । प्रभु क्षमा करना हमारे लिए आपको जंतर मंतर आना पड़ा है ।
जवाब देंहटाएं