ढाका का बंगबंधु नेशनल स्टेडियम...फुटबॉल के लिए मशहूर...लेकिन गुरुवार को यहां क्रिकेट का खुमार छाया था...दसवें विश्व कप क्रिकेट की ओपनिंग सेरेमनी...तीन करोड़ डॉलर का खर्च...आप कहेंगे कि बांग्लादेश जैसा देश चंद घंटे के जश्न पर इतना शाही खर्च बर्दाश्त कर सकता है क्या...तो जनाब दुनिया के लिए बेशक ये विश्व कप क्रिकेट का आगाज़ था लेकिन बांग्लादेश के लिए इसके कुछ और ही मायने थे...
रवींद्र नाथ टैगोर और काज़ी नजरूल इस्लाम की सांस्कृतिक विरासत वाली बंग भूमि के लिए 15 अगस्त 1947 वो दिन था जिस दिन भारत और पाकिस्तान के विभाजन के साथ ही बंगाल के भी दो टुकड़े हुए थे...एक हिस्सा पश्चिम बंगाल के तौर पर भारत को मिला....दूसरा हिस्सा ईस्ट पाकिस्तान के तौर पर पाकिस्तान को मिला...लेकिन बांग्ला संस्कृति से सराबोर ईस्ट पाकिस्तान कभी वेस्ट पाकिस्तान से खुद को नहीं जोड़ पाया...दोनों के बीच 1600 किलोमीटर की दूरी की तरह ही दोनों के दिल कभी नहीं मिल सके...बंगबंधु के नाम से मशहूर शेख मुज़ीबुर्रहमान ने पश्चिमी पाकिस्तान की चौधराहट का हमेशा जमकर विरोध किया...1970 में पाकिस्तान संसद का चुनाव जीतने के बाद भी बंगबंधु को पाकिस्तान की सत्ता नहीं सौंपी गई...उलटे जेल में डाल दिया गया...लेकिन 26 मार्च 1971 को शेख मुजीबुर्रहमान ने ईस्ट पाकिस्तान को बांग्लादेश के तौर पर आज़ाद देश घोषित कर दिया...साथ ही ऐलान कर दिया कि पाकिस्तान का आखिरी सैनिक जब तक बांग्लादेश की ज़मीन नहीं छोड़ देता, मुक्तिवाहिनी का संघर्ष जारी रहेगा...पाकिस्तान के जबरदस्त दमन के बावजूद बांग्लादेश की आज़ादी चाहने वालों ने हौसला नहीं छोड़ा...फिर 16 दिसंबर 1971 का दिन आया जब पाकिस्तान को भारतीय सेना की मदद से मुक्तिवाहिनी ने मात दी...
उस जीत के 39 साल दो महीने बाद बांग्लादेश को विश्व कप की ओपनिंग सेरेमनी के ज़रिए दुनिया को फिर कुछ बताने का मौका मिला...ये ऐलान करने का...बांग्लादेश भी तेज़ी से बदल रहा है...बांग्लादेश को अब इंतज़ार है 19 फरवरी को मीरपुर, ढाका के शेरेबांग्ला स्टेडियम में विश्व कप के पहले मैच में भारत के साथ भिड़ने का...
ढाका समेत पूरे बांग्लादेश में छाया क्रिकेट का क्रेज़ बताता है कि इस देश के लोग क्रिकेट के ग्लैमर के साथ जोश और जुनून के हर लम्हे को शिद्दत के साथ जीना चाहते हैं..डंके की चोट पर दुनिया के सामने ऐलान करना चाहते हैं कि बांग्लादेश को सिर्फ गरीबी, भूख, बाढ़, चक्रवात जैसे देश के तौर पर याद करना बंद कर दिया जाए...बांग्लादेश में आज हर बच्चे, बूढ़े, जवान ने अगर अपने स्टार क्रिकेटरों को सिर-आंखों पर बिठा रखा है तो इसी उम्मीद के साथ कि वो विश्व कप में देश के लिए कमाल कर के दिखाएंगे...यही सपनों सरीखा प्रदर्शन बांग्लादेश आर्थिक मोर्चे पर भी दुनिया को दिखाना चाहता है...नोबेल विजेता मोहम्मद यूनुस ग्रामीण बैंक के साथ मिलकर माइक्रोलोन के ज़रिए दिखा ही चुके हैं कि गांवों के गरीबों की तकदीर कैसे बदली जा सकती है...कभी जूट के निर्यात के लिए जाना जाने वाला बांग्लादेश आज रेडीमेड गारमेंट इंडस्ट्री के लिए पूरी दुनिया में धाक रखता है...हर साल तेरह अरब डॉलर से ज़्यादा कीमत के रेडीमेड का बांग्लादेश से निर्यात होता है...
जिस भारत ने बांग्लादेश के जन्म में हाथ बंटाया आज बांग्लादेश उसी भारत के साथ विश्व कप की मेज़बानी में हाथ बंटा रहा है...जिस शेख मुजीबुरर्हमान के सपने को भारत ने हक़ीक़त में बदला, उसी शेख मुजीबुर्रहमान की बेटी शेख हसीना ने प्रधानमंत्री के नाते विश्व कप का आगाज़ किया...अब बांग्लादेश क्रिकेट की चकाचौंध के ज़रिेए यही पैगाम देना चाहता है कि वो अंगड़ाई ले चुका है...इक्कीसवीं सदी में विकास की रफ्तार के साथ कदमताल करने के लिए...
रवींद्र नाथ टैगोर और काज़ी नजरूल इस्लाम की सांस्कृतिक विरासत वाली बंग भूमि के लिए 15 अगस्त 1947 वो दिन था जिस दिन भारत और पाकिस्तान के विभाजन के साथ ही बंगाल के भी दो टुकड़े हुए थे...एक हिस्सा पश्चिम बंगाल के तौर पर भारत को मिला....दूसरा हिस्सा ईस्ट पाकिस्तान के तौर पर पाकिस्तान को मिला...लेकिन बांग्ला संस्कृति से सराबोर ईस्ट पाकिस्तान कभी वेस्ट पाकिस्तान से खुद को नहीं जोड़ पाया...दोनों के बीच 1600 किलोमीटर की दूरी की तरह ही दोनों के दिल कभी नहीं मिल सके...बंगबंधु के नाम से मशहूर शेख मुज़ीबुर्रहमान ने पश्चिमी पाकिस्तान की चौधराहट का हमेशा जमकर विरोध किया...1970 में पाकिस्तान संसद का चुनाव जीतने के बाद भी बंगबंधु को पाकिस्तान की सत्ता नहीं सौंपी गई...उलटे जेल में डाल दिया गया...लेकिन 26 मार्च 1971 को शेख मुजीबुर्रहमान ने ईस्ट पाकिस्तान को बांग्लादेश के तौर पर आज़ाद देश घोषित कर दिया...साथ ही ऐलान कर दिया कि पाकिस्तान का आखिरी सैनिक जब तक बांग्लादेश की ज़मीन नहीं छोड़ देता, मुक्तिवाहिनी का संघर्ष जारी रहेगा...पाकिस्तान के जबरदस्त दमन के बावजूद बांग्लादेश की आज़ादी चाहने वालों ने हौसला नहीं छोड़ा...फिर 16 दिसंबर 1971 का दिन आया जब पाकिस्तान को भारतीय सेना की मदद से मुक्तिवाहिनी ने मात दी...
उस जीत के 39 साल दो महीने बाद बांग्लादेश को विश्व कप की ओपनिंग सेरेमनी के ज़रिए दुनिया को फिर कुछ बताने का मौका मिला...ये ऐलान करने का...बांग्लादेश भी तेज़ी से बदल रहा है...बांग्लादेश को अब इंतज़ार है 19 फरवरी को मीरपुर, ढाका के शेरेबांग्ला स्टेडियम में विश्व कप के पहले मैच में भारत के साथ भिड़ने का...
ढाका समेत पूरे बांग्लादेश में छाया क्रिकेट का क्रेज़ बताता है कि इस देश के लोग क्रिकेट के ग्लैमर के साथ जोश और जुनून के हर लम्हे को शिद्दत के साथ जीना चाहते हैं..डंके की चोट पर दुनिया के सामने ऐलान करना चाहते हैं कि बांग्लादेश को सिर्फ गरीबी, भूख, बाढ़, चक्रवात जैसे देश के तौर पर याद करना बंद कर दिया जाए...बांग्लादेश में आज हर बच्चे, बूढ़े, जवान ने अगर अपने स्टार क्रिकेटरों को सिर-आंखों पर बिठा रखा है तो इसी उम्मीद के साथ कि वो विश्व कप में देश के लिए कमाल कर के दिखाएंगे...यही सपनों सरीखा प्रदर्शन बांग्लादेश आर्थिक मोर्चे पर भी दुनिया को दिखाना चाहता है...नोबेल विजेता मोहम्मद यूनुस ग्रामीण बैंक के साथ मिलकर माइक्रोलोन के ज़रिए दिखा ही चुके हैं कि गांवों के गरीबों की तकदीर कैसे बदली जा सकती है...कभी जूट के निर्यात के लिए जाना जाने वाला बांग्लादेश आज रेडीमेड गारमेंट इंडस्ट्री के लिए पूरी दुनिया में धाक रखता है...हर साल तेरह अरब डॉलर से ज़्यादा कीमत के रेडीमेड का बांग्लादेश से निर्यात होता है...
जिस भारत ने बांग्लादेश के जन्म में हाथ बंटाया आज बांग्लादेश उसी भारत के साथ विश्व कप की मेज़बानी में हाथ बंटा रहा है...जिस शेख मुजीबुरर्हमान के सपने को भारत ने हक़ीक़त में बदला, उसी शेख मुजीबुर्रहमान की बेटी शेख हसीना ने प्रधानमंत्री के नाते विश्व कप का आगाज़ किया...अब बांग्लादेश क्रिकेट की चकाचौंध के ज़रिेए यही पैगाम देना चाहता है कि वो अंगड़ाई ले चुका है...इक्कीसवीं सदी में विकास की रफ्तार के साथ कदमताल करने के लिए...
एक उम्दा विश्लेषण ... आभार !
जवाब देंहटाएंअच्छा विश्लेषात्मक आलेख.आभार.
जवाब देंहटाएंachhi gyanvardhak post, aabhar.
जवाब देंहटाएंअच्छा आलेख आभार
जवाब देंहटाएंक्रिकेट के विश्वयुद्ध का बहुत बेहतरीन शुभारम्भ हुआ है ढाका में...
जवाब देंहटाएंएक सामयिक एवं आवश्यक पोस्ट के लिए बधाई !
जवाब देंहटाएंबांग्लादेश को इस आयोजन में सहभागिता के लिए बहुत बहुत बधाइयाँ!
जवाब देंहटाएंसामयिक एवं सुन्दर विश्लेषण प्रस्तुति हेतु बधाई !
जवाब देंहटाएंअच्छा विश्लेषात्मक आलेख.आभार.
जवाब देंहटाएंबंगलादेश को शुभकामनाये
जवाब देंहटाएंjai baba banaras-----------------
जवाब देंहटाएंभारत को भी ३६ साल लगे थे , आज़ादी के बाद वर्ल्ड कप जीतने में ।
जवाब देंहटाएंबंगला देश को ७२ लग सकते हैं ।
bisleshan achchha hai:)
जवाब देंहटाएंpar jeetega india..mere blog pe wish karen..bhaiya..!
अति सुंदर विश्लेषात्मक आलेख
जवाब देंहटाएंलेकिन अल्पसंख्यकों की स्थिति खराब होती जा रही है बांग्लादेश में..
जवाब देंहटाएंखुशदीप भाई बांगला देश के बारे में दी गयी जानकारी ज्ञान वर्धक है.टिपण्णी देने तक भारत ने पहला मैच जीत लिया है ,लेकिन बांगला देश ने भी डट कर मुकाबला किया.आगे देखते हैं क्या गुल खिलाता है बांगला देश.
जवाब देंहटाएं