कल निर्मला कपिला जी की पोस्ट पर कमेंट किया था-
वो जो दावा करते थे खुद के अंगद होने का,
हमने एक घूंट में ही उन्हें लड़खड़ाते देखा है...
इस कमेंट के बाद अचानक ही दिमाग में कुछ कुलबुलाया...जिसे नोटपैड पर उतार दिया...उसी को आपके साथ शेयर करना चाहता हूं...गीत-गज़ल-कविता मेरा डोमेन नहीं है...बस कभी-कभार बैठे-ठाले कुछ तुकबंदी हो जाती है...उसी का है ये एक नमूना...लीजिए पेश है एक नमूने का नमूना...
वो जो दावा करते थे खुद के अंगद होने का,
हमने एक घूंट में ही उन्हें लड़खड़ाते देखा है...
वो जो दावा करते थे देश की तकदीर बदलने का,
हमने गिरगिट की तरह उन्हें रंग बदलते देखा है...
वो जो दावा करते थे बड़े-बड़े फ्लाईओवर बनाने का,
हमने सीमेंट की बोरी पर उन्हें ईमान बेचते देखा है...
वो जो दावा करते थे आज का 'द्रोणाचार्य' होने का,
हमने 'एकलव्य' की अस्मत से उन्हें खेलते देखा है...
वो जो दावा करते थे देश के लिए मर-मिटने का,
हमने हज़ार रुपये पर उन्हें नो-बॉल करते देखा है...
वो जो दावा करते थे कलम से समाज में क्रांति लाने का,
हमने सौ रुपये के गिफ्ट हैंपर पर उन्हें भिड़ते देखा है...
वो जो दावा करते थे डॉक्टरी के नोबल पेशे का,
हमने बिल के लिए लाश पर उन्हें झगड़ते देखा है...
वो जो दावा करते थे श्रवण कुमार होने का,
हमने बूढ़ी मां को घर से उन्हें निकालते देखा है...
वो जो दावा करते थे हमेशा साथ जीने-मरने का,
हमने गैर की बाइक पर नकाब लगाए उन्हें देखा है...
वो जो दावा करते थे बदनाम गली के उद्धार का,
हमने कोठे की खूंटी पर पैंट टांगते उन्हें देखा है...
कोठे की खूंटी पर टंगी पैंट...खुशदीप
20
सोमवार, अक्टूबर 25, 2010
4/10
जवाब देंहटाएंटाईम पास तुकबंदी
लेकिन रचना के अन्दर की बात कचोटती है.
काश कि ये सब झूठ होता
जो दावा करते थे बदनाम गली के उद्धार का,
जवाब देंहटाएंहमने कोठे की खूंटी पर पैंट टांगते उन्हें देखा है...
खूंटी पर पैंट टांगते रहिये ...
सच दिखाती हैं ये पंक्तियां
जवाब देंहटाएंबढिया लगी
प्रणाम
हकीकत उजागर कर दी अब इससे ज्यादा और कहने को क्या बचा ………………आपने तो तुकबंदी भी गज़ब की की है।
जवाब देंहटाएंतो आप डोमेन के बहार इतना गजब ढाते है :)
जवाब देंहटाएंयथार्थ पर करारा कटाक्ष किया है हर पंक्ति में ....
बात सच्ची और सही है |
जवाब देंहटाएंआपकी कविता में भी पत्रकारिता है .हर पंक्ति में एक रिपोर्ट :)
जवाब देंहटाएंमुझे तो बहुत अच्छी लगी कविता.
लिखा तो सही है !!
जवाब देंहटाएंवो जो दावा करते थे बड़े-बड़े फ्लाईओवर बनाने का,
जवाब देंहटाएंहमने सीमेंट की बोरी पर उन्हें ईमान बेचते देखा है...
वो जो दावा करते थे आज का 'द्रोणाचार्य' होने का,
हमने 'एकलव्य' की अस्मत से उन्हें खेलते देखा है...
वाह क्या बात है एक कमेन्ट से इतनी बढिया कविता बन गयी। तो रोज़ आ जाया करो मेरे ब्लाग पर एक कमेन्ट मे हमे फ्री कविता मिल जाया करेगी। कविता भी अच्छी लिखते हो। और लिखो। बहुत बहुत आशीर्वाद।
बहुत साहसिक रचना ।
जवाब देंहटाएंसमाज की पोल खोल कर रख दी ।
बढ़िया शायर बन गए भाई ।
बहुत समसामयिक रचना पेश की है आपने...समाज के नासूर बने जख्मों को कुरेद डाला है...लिखते रहें आप तो बहुत बेहतरीन लिख सकते हैं...
जवाब देंहटाएंनीरज
dil khol diya likhne main .
जवाब देंहटाएंye hai sher dil wali baat.
सुन्दर भाव समेटे हैं।
जवाब देंहटाएंवो जो दावा करते थे सदाक़त का,
जवाब देंहटाएंहमने झोटों का सरदार उन्हें देखा है...
बढ़िया प्रयास.
जवाब देंहटाएंवो जो दावा करते थे बदनाम गली के उद्धार का,
जवाब देंहटाएंहमने कोठे की खूंटी पर पैंट टांगते उन्हें देखा है...
हे राम !! खुशदीप जी आप वहा क्या कर रहे थे जी :)
रचना बहुत सुंदर लगी, आप ने इस झुठे समाज के चहरे से नकाव हटा दिया अपनी इस रचना के जरिये, धन्यवाद
भाव चोट कर रहे हैं तबीयत से..शब्दों का क्या है..हेर फेर से मस्त हो लेंगे.
जवाब देंहटाएंगहरी चोट करती प्रभावी रचना
जवाब देंहटाएंसच्चाई जानते हुए भी स्तब्ध :-(
जवाब देंहटाएंमैं क्या बोलूँ अब....अपने निःशब्द कर दिया है..... बहुत ही सुंदर कविता.
जवाब देंहटाएं