क्या गुलामी हमारे जींस में है...खुशदीप

आओ रानी, हम ढोयेंगे पालकी,

यही हुई है राय जवाहरलाल की,

ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ द्वितीय तो कॉमनवेल्थ गेम्स के दौरान अक्टूबर में भारत नहीं आ रही हैं...लेकिन उनके बेटे प्रिंस चार्ल्स उनकी नुमाइंदगी करेंगे...रानी नहीं आ रही तो क्या कॉमनवेल्थ गेम्स के लिए उनकी बेटन तो है...25 जून को वाघा बार्डर से देश में प्रवेश के बाद बेटन को देश के कोने-कोने में ले जाया जा रहा है...ये बेटन 30 सितंबर को दिल्ली पहुंचेगी...आज से करीब 49 साल पहले 1961 में भी यहीं रानी एलिजाबेथ द्वितीय पाकिस्तान के साथ भारत के दौरे पर आई थीं...लेकिन उस वक्त फक्कड़ कवि नागार्जुन ने कविता के माध्यम से रानी के सामने बिछे जाने की भारतीयों की प्रवृत्ति पर जो तंज कसा था, वो आज के हालात में भी पूरी तरह सटीक बैठता है...



नागार्जुन
जन्म: 1911,  निधन: 5 नवम्बर 1998



आओ रानी...

आओ रानी, हम ढोयेंगे पालकी,


यही हुई है राय जवाहरलाल की,


रफ़ू करेंगे फटे-पुराने जाल की,


यही हुई है राय जवाहरलाल की,


आओ रानी, हम ढोयेंगे पालकी !






आओ शाही बैण्ड बजायें,


आओ बन्दनवार सजायें,


खुशियों में डूबे उतरायें,


आओ तुमको सैर करायें--


उटकमंड की, शिमला-नैनीताल की,


आओ रानी, हम ढोयेंगे पालकी !






तुम मुस्कान लुटाती आओ,


तुम वरदान लुटाती जाओ,


आओ जी चांदी के पथ पर,


आओ जी कंचन के रथ पर,


नज़र बिछी है, एक-एक दिक्पाल की,


छ्टा दिखाओ गति की लय की ताल की,


आओ रानी, हम ढोयेंगे पालकी !






सैनिक तुम्हें सलामी देंगे,


लोग-बाग बलि-बलि जायेंगे,


दॄग-दॄग में खुशियां छ्लकेंगी,


ओसों में दूबें झलकेंगी.


प्रणति मिलेगी नये राष्ट्र के भाल की,


आओ रानी, हम ढोयेंगे पालकी !






बेबस-बेसुध, सूखे-रुखडे़,


हम ठहरे तिनकों के टुकडे़,


टहनी हो तुम भारी-भरकम डाल की,


खोज खबर तो लो अपने भक्तों के खास महाल की !


लो कपूर की लपट,


आरती लो सोने की थाल की,


आओ रानी, हम ढोयेंगे पालकी !






भूखी भारत-माता के सूखे हाथों को चूम लो,


प्रेसिडेन्ट की लंच-डिनर में स्वाद बदल लो, झूम लो,


पद्म-भूषणों, भारत-रत्नों से उनके उद्गार लो,


पार्लमेण्ट के प्रतिनिधियों से आदर लो, सत्कार लो,


मिनिस्टरों से शेकहैण्ड लो, जनता से जयकार लो,


दायें-बायें खडे हज़ारी आफ़िसरों से प्यार लो,


धनकुबेर उत्सुक दीखेंगे उनके ज़रा दुलार लो,


होंठों को कम्पित कर लो, रह-रह के कनखी मार लो,


बिजली की यह दीपमालिका फिर-फिर इसे निहार लो,






यह तो नयी नयी दिल्ली है, दिल में इसे उतार लो,


एक बात कह दूं मलका, थोडी-सी लाज उधार लो,


बापू को मत छेडो, अपने पुरखों से उपहार लो,


जय ब्रिटेन की जय हो इस कलिकाल की !


आओ रानी, हम ढोयेंगे पालकी !






रफ़ू करेंगे फटे-पुराने जाल की,


यही हुई है राय जवाहरलाल की,


आओ रानी, हम ढोयेंगे पालकी !


- नागार्जुन

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19 टिप्पणियाँ
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  1. लानत है लोगो पर जो इसे इतना सम्म्मन देते है,इन्हे तो भारत का वीजा भी नही देना चाहिये जिन्होने हमे सरे आम कुत्ता कहा है, लेकिन हम तो पलके बिछाये रहते है अपने इन आकाओ के लिये लेकिन क्यो??? क्या सच मै हम आज भी इन के ही गुलाम है?? भाषा से तो है ही, क्या हम सच मै??? है जो इन के सम्मन मै दुम हिलाते है??? कुछ तो लोचा जरुर है जी

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  2. क्या करें। कुसंस्कार जाएंगे इतनी जल्दी क्या।

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  3. सामयिक पोस्ट । मैं भी यही सोच रहा था कि बैटन को इतनी अहमियत क्यों दी जा रही है । हम अभी तक अंग्रेजों की तरफ क्यों देखते हैं ? कही तो अपना स्वाभिमान होना चाहिए ।

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  4. शत शत नमन बाबा नागार्जुन को ! आपको बहुत बहुत आभार जो आपने उनकी यह रचना यहाँ पोस्ट की !
    कितने शर्म की बात है आज़ादी की ६३ सालो के बाद भी हमारे राजनेताओ की गुलामी करने की मानसिकता अभी तक ख़त्म नहीं हुयी है !

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  5. सदियों की गुलामी की मानसिकता ने
    अभी तक पीछा नही छोड़ा है।
    जब तक फ़र्शी सलाम नहीं ठोकेगें
    तब तक इनका खाना हजम नहीं होगा।

    अच्छी पोस्ट

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  6. सरकारी गुलामों के आमंत्रण पर इनका आना निश्चित है जागरुक जनों को हर हाल में विरोध करना चाह्हिये ....

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  7. हमारी गुलाम मानसिकता पर एकदम सटीक रचना. बहुत खूब!

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  8. ऐसी रचना बाबा ही लिख सकते थे!
    --
    बाबा नागार्जुन को नमन!

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  9. मौके पर बाबा की जबरदस्त कविता निकाल कर लाये हो..बहुत आनन्द आया.

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  10. hmm लगता तो ऐसा ही है ..कि गुलामी की आदत पढ़ गई है हमें ..और बुरी आदतें जल्दी जाती नहीं खुशदीप जी !

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  11. बाबा नागार्जुन की यह रचना तो हमने कभी पढ़ी ही नहीं थी। बिल्कुल सत्य को शब्दों में पिरो दिया है, क्या एँडरसन और क्या ब्रिटिश कंपनी सबके लिये बाबा की दो लाईनें ही पर्याप्त हैं -

    आओ रानी, हम ढोयेंगे पालकी,

    यही हुई है राय जवाहरलाल की,


    0 तिरुपति बालाजी के दर्शन और यात्रा के रोमांचक अनुभव – १० [श्रीकालाहस्ती शिवजी के दर्शन..] (Hilarious Moment.. इंडिब्लॉगर पर मेरी इस पोस्ट को प्रमोट कीजिये, वोट दीजिये

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  12. ऐसी विद्रोही बानी बाबा नागार्जुन ही बोल सकते थे। लेकिन आज तो अपने यहाँ यही हाल है:
    हाथी घोड़ा पालकी
    जय कन्हैया लाल की

    न हाथी अपना न घोड़ा । पालकी तो कुछ 'लकियों' के हिस्से। हम कन्हैया के जयकारे लगाए जा रहे हैं।

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  13. जय ब्रिटेन की जय हो इस कलिकाल की !

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  14. क्या हमारा राष्ट्रगीत सिद्ध नहीं करता कि हम आज भी मानसिक रूप से आज भी गुलाम ही हैं?

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  15. जब सोच ही गुलाम हो तो कोई कैसे आज़ाद महसूस कर सकता है………………।कल के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट देखियेगा।

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  16. सामयिक और सटीक पोस्ट । इस विषय पर इससे बेहतर कभी कुछ नहीं पढा सुना । आप कह रहे हैं मुक्ति , मुझे तो लगता है कि दोबारा से किसी ईस्ट इंडिया कंपनी का इंतज़ार हो रहा है ..बिकने को पूरा देश तैयार खडा है .

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  17. काफी कुछ मेरे मन की बात कह दी आपने...

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