मुझे तुमसे कुछ भी न चाहिए, मुझे आइकन बनने से रोक लो...
स्व. मुकेश जी के गीत की तर्ज पर ये पंक्तियां किसने मुझे भेजी हैं, उनके बारे में इस पोस्ट में आपको आगे स्पष्ट हो जाएगा...लेकिन जिन्होंने ये पंक्तियां मुझे भेजी हैं, ...उन्ही के गीत की शैली में मैं कहूंगा...मुझे आपसे बहुत कुछ चाहिए, मुझे उससे वंचित ना करो...खैर अब आता हूं अपनी पोस्ट... हिंदी ब्लॉगिंग के टॉप टेन आइकन...को लेकर अगर कुछ गलतफहमी है तो उसे दूर करने के विषय पर...अगर मेरे किसी कृत्य को लेकर उंगली उठी है तो उसका जवाब देकर दूध का दूध और पानी का पानी करना भी मेरा फर्ज है...अन्यथा मर्ज़ को अगर यूहीं छो़ड़ दिया जाए तो ग्रंथि बनी रहती है...मेरी आइकन्स वाली पोस्ट को लेकर हर तरह की प्रतिक्रियाएं आईं...फूल भी मिले, पत्थर भी...सबसे पहले मुझे लगता है कि कुछ बंधुओं ने शायद आइकन्स का मतलब ही गलत लगा लिया है...आइकन्स का मतलब होता है रोल मॉडल, प्रेरणास्रोत...आइकन्स का ये मतलब नहीं होता कि किसी फील्ड विशेष में अच्छा काम करने वाले (मसलन अच्छे ब्लॉग लिखने वाले)...इस बात को ऐसे भी समझा जा सकता है कि राजनीति में सभी दलों में अच्छे नेता हो सकते हैं...लेकिन जब आइकन्स की बात आती हैं तो नेहरू, इंदिरा, जेपी, वाजपेयी और राम मनोहर लोहिया जैसे लीडर्स के नाम सामने आते हैं...कलाम देश के आइकन हैं, किसी को इस पर ऐतराज़ हो सकता है क्या...सचिन क्रिकेटर्स के रोल मॉडल हैं, क्या कोई इस हकीकत को झुठला सकता है...इसी तरह ब्लॉगिंग में मैंने अपने लिए भी आइकन चुने....ये विशुद्ध रूप से मेरी अपनी पसंद है...ऐसे ही हर ब्लॉगर भाई की अपनी-अपनी पसंद हो सकती है...जिस तरह मैं अपनी बात किसी पर थोप नहीं सकता...इसी तरह कोई मेरे ऊपर भी अपनी मनमानी नहीं चला सकता...मुझे अपनी निजी पसंद रखने का उतना ही अधिकार है जितना हर किसी को...मैं यहां ये भी निवेदन करना चाहूंगा कि मैंने अपनी पोस्ट में बिल्कुल साफ शब्दों में लिखा था कि मैंने अपने लीडर उन्हीं पोस्ट से चुने जिन्हें मैं 25 दिन में पढ़ सका...एक बार फिर मैं अपनी उन पक्तियों को यहां अक्षरक्ष दोहरा देता हूं-
मैंने 25 दिन में दूसरों की जितनी भी पोस्ट पढ़ीं, उनमें से मैंने अपने टेन आइकन चुने हैं...यहां मैं साफ कर दूं कि दूसरी सारी पोस्ट न तो मैं पढ़ सका हूं और न ही मेरे में इतना सामर्थ्य है...हां जितना पढ़ा उसी में से मैंने अपने लीडर चुन लिए..ये मुमकिन है कई दूसरे ब्लॉगर भाई भी बहुत अच्छा लिखते हो, जिन्हें पढ़ने का मुझे सौभाग्य ही प्राप्त नहीं हुआ...लेकिन जो भी मैं नाम लेने जा रहा हूं, उन पर शायद ही किसी को ऐतराज हो..ये चुनाव ज़्यादा पढ़ी जाने वाली, ज़्यादा पसंद वाली, ज़्यादा टिप्पणियों वाली पोस्ट के आधार पर नहीं है...ये चुनाव है सिर्फ एक शब्द पढ़ कर ही ये अंदाज लगा लेने का कि लिखने वाले की सोच की कितनी गहराई है...इंसान के नाते उसके कद की कितनी ऊंचाई है...मेरे इस चुनाव को लोकप्रियता के पैमाने से न लिया जाए, बल्कि इस आधार पर लिया जाए कि ब्लॉगर्स परिवार में इन आइकन का कितना सम्मान है...
अब मैं अपनी पोस्ट पर आई कुछ प्रतिक्रियाओं के ज़रिए ही अपनी बात स्पष्ट करने की कोशिश करता हूं...मैं आभारी हूं, दिनेशराय द्विवेदी जी का जिन्होंने बड़ी साफगोई से जो उनके दिल मे था, अपनी प्रतिक्रिया में व्यक्त किया...पहले उनकी बात...आप की आइकॉन सूची आप की अपनी पसंद हो सकती है... लेकिन ब्लागरों को इस तरीके से तौलना मुझे रुचिकर नहीं लगा...बहुत से ब्लागर हैं जो बहुत बहुत अच्छा काम कर रहे हैं और कर गए हैं...बहुत से हैं जिन में बहुत बहुत संभावनाएँ भरी पड़ी हैं और समय आने पर बहुत बड़े-बड़े काम कर जाएंगे... मेरा मानना है कि अधिकांश ब्लागर इस दुनिया और मानव समाज को खूबसूरत प्यार भरी दुनिया और समाज के रूप में देखना चाहते हैं...उन के नजरिए भिन्न भिन्न हैं... लेकिन वे अपने लक्ष्य के प्रति ईमानदार बने रहें तो मंजिल पर पहुँचने के पहले सब एक ही सड़क पर खड़े होंगे... सब अपना अपना काम कर रहे हैं... कोई टायर का तो कोई स्टेयरिंग का तो कोई हॉर्न का .....सफर इन में से किसी भी एक के बिना पूरा नहीं होने का...
द्विवेदी जी जैसी ही सटीक प्रतिक्रिया डॉक्टर अमर कुमार जी ने भी भेजी-भाई मेरे, ( बतर्ज़ स्व। मुकेश जी ) मुझे तुमसे कुछ भी न चाहिये॥ मुझे आइकन बनने से रोक लो.. बस तुम रोक लो ...जहाँ कुछ गलत दिखता है, मैं इंगित अवश्य कर देता हूँ ...यह मेरा व्यक्तिदोष है ...यही मैं अपने लिये भी चाहता हूँ ...यह तो हर कोई मानेगा कि, भले ही एक अपरिचित मनुष्य गड्ढे में पैर डालने जा रहा हो...आप हठात ही उसे रोक लेते हैं, क्यों ? तो.. यह तय रहा कि, " मुझे तुमसे कुछ भी न चाहिये.. मुझे आइकन बनने से रोक लो.. बस तुम रोक लो " पर आप अमल करने जा रहे हैं ...असीम शुभकामनायें !
इन दोनों टिप्पणियों से ही साफ़ है कि मैं क्यों इन्हें अपना आइकन मानता हूं...ये मेरे आइकन हैं और आगे भी रहेंगे...क्षमा कीजिएगा द्विवेदी सर और डॉक्टर साहब, मेरी इस सोच को कोई नहीं बदल सकता...यहां तक कि आप भी नहीं...
रही बात और प्रतिक्रियाओं कि तो ये मैं मानता हूं कि कई बड़े और नाम अजित वडनेरकर जी, रवि रतलामी जी, अनीता जी, प्रमोद कुमार जी, रवीश कुमार जी, डॉ रूपचंद्र शास्त्री मयंक जी, अनिल पुस्दकर जी (मेरी अज्ञानता के कारण और भी कई बड़े नाम छूट रहे होंगे..), वैसी ही गहरी सोच और सम्मान रखते हैं जैसे कि मेरी आइकन्स वाली फेहरिस्त की हस्तियां...ये सब भी मेरे लिए उतने ही सम्मानित हैं जितने कि मेरे आइकन्स...और फिर मैं फोर्ब्स पत्रिका की तरह तो सोच-समझ कर या किसी प्रायोजन के तहत कोई सूची बनाने बैठा नहीं था...बस जो मेरे दिल में था वो सबके साथ शेयर कर दिया...अब कोई माने या न माने ये हर ब्लॉगर भाई का अपना अधिकार है...भला मैं कौन होता हूं उन पर अपनी बात थोपने वाला....
मेरी इस पोस्ट पर एक बंधु ने यहां तक कहा कि मैंने प्रतिकूल टिप्पणी को हटाया क्यों नहीं...देखिए भाई...यही तो लोकतंत्र की खूबी है...हर एक को अपनी बात ऱखने का पूरा अधिकार है...अगर कोई आपकी आलोचना करता है तो उसे भी संयम के साथ सुनना चाहिए...अगर मीठा-मीठा गप गप और कड़वा-कड़वा थू-थू करेंगे तो ये अपने आपको ही धोखा देना होगा...ये हो सकता है कि मैं ही कहीं अपनी बात को ठीक तरह से रखने में चूक गया हूं...इसीलिए तो मैं कहता हूं कि दिनेशराय द्विवेदी जैसी हस्तियां मेरे लिए आइकन हैं...ऐसे सद्जन ठीक वैसी डाल के समान होते हैं जिनके जितने फल लगते है वो उतना ही झुकती हैं...वो अगर आपको कोई नसीहत देते हैं तो उसमें आपके लिए ही कोई भलाई छिपी होगी...ठीक वैसे ही जैसे घर के बड़े-बुज़ुर्ग हक के साथ आपसे कोई बात कहते हैं...रही बात टिप्पणी हटाने की तो मैं तब तक सेंसर के पक्ष में नहीं हूं जब तक कोई मर्यादा की सीमा न लांघे...बाकी फूलों के साथ आपके पत्थर भी मुझे बर्दाश्त हैं...
चलिए बहुत सफाई दे दी, अब स्लॉग ओवर हो जाए...
स्लॉग ओवर
टीचर...बच्चों क्या तुम जानते हो कयामत किस दिन आएगी...
एक स्टूडेंट...यस मैम, जब वेलेन्टाइन्स डे और रक्षा बंधन एक ही दिन होंगे...
Slog over kamala ka hai.
जवाब देंहटाएंसहगल भाई! अब क्या कहें?
जवाब देंहटाएंपर स्लॉग ओवर तो वाकई कमाल है।
बढिया ढंग से आपने अपना पक्ष रखा...बधाई...
जवाब देंहटाएंहाँ!...आपका स्लॉग ओवर मज़ेदार रहा...रहेगा...जब तक कोई बाउँसर ना पड़े :-)
आपको अपने मन का लिखने का अधिकार है. आप निश्चिंत हो कर लिखें. मित्र और हितैषि अपनी राय शामिल करते हैं, यह खुशी की बात है.
जवाब देंहटाएंअनन्त शुभकामनाऐं.
हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ.
कृप्या अपने किसी मित्र या परिवार के सदस्य का एक नया हिन्दी चिट्ठा शुरू करवा कर इस दिवस विशेष पर हिन्दी के प्रचार एवं प्रसार का संकल्प लिजिये.
अरे, स्लॉग ओवर, मेरा प्रिय, आज भी मजेदार रहा.
जवाब देंहटाएंआपका हिन्दी में लिखने का प्रयास आने वाली पीढ़ी के लिए अनुकरणीय उदाहरण है. आपके इस प्रयास के लिए आप साधुवाद के हकदार हैं.
जवाब देंहटाएंआपको हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनायें.
शुक्रिया... और क्षमा भी....
जवाब देंहटाएंअमा सागर, किस बात की क्षमा यार...तू मेरा छोटा भाई है...छोटे भाई कभी-कभी बड़ो के आगे नखरे नहीं दिखाते क्या...खुश रह...वैसे आजकल बीबीसी ब्लॉग वगैरा पर शब्दों के अच्छे पंच मार रहा है...बस ऐसे ही खुद को मांझते रह, मंज़िल एक दिन खुद तुझसे पूछेगी कि बता तेरी रजा क्या है..एक बात और जैसे मैं अपने छोटे भाई से बात करता हूं, वैसे ही तुझसे की है, इसे भी कहीं अन्यथा न ले लेना...
जवाब देंहटाएंदेखिए इस पोस्ट को लिखते समय फिर अपना भुलक्कड़पन दिखा दिया...उसी शख्सीयत को भूल गया जिसने मेरे ब्लॉगिंग के पहले दिन से ही आकर मेरा हौसला बढ़ाया...वो नाम है डॉ टी एस दराल का...दराल सर, क्षमा कीजिएगा...लेकिन वो कहते हैं न भूल में भी कोई न कोई अच्छी बात छिपी होती है...तो आपसे मैं आइकन का नहीं, कुछ अलग ही रिश्ता मानता हूं...ये रिश्ता है मेंटर, फिलॉस्फर, गाइड और इन सबसे बढ़कर दोस्त (उम्र में छोटा होने के बावजूद) का, जिनसे मैं दिल खोलकर अपने राज़ बांट सकता हूं...जो मैं अपने आइकन्स के साथ नहीं कर सकता...आशा है दराल सर, आप मेरा प्वाइंट ऑफ व्यू समझ गए होंगे...
जवाब देंहटाएंमैं तो इतना ही कहूँगी इसी तरह आगे बढो और हंसते हुये अपनी मंज़िल की तरफ बढते रहो। सब का आशीर्वाद आपके साथ है । फिर दिवेदी जी तो मेरे भी प्रेरणा स्त्रोत हैं उनकी कर्मनिष्ठा प्रभावित करती है। ये ओतने अच्छे स्लागओवर कहाँ से लाते हो? शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंखुशदीप भाई, जिंदगी के सभी खट्टे मीठे अनुभवों से कुछ न कुछ सीखने को मिलता है. आप बहुत अच्छा लिख रहे है और दिल से लिख रहे है, ऐसा मेरा विश्वास है. आपका मुद्दों पर आधारित लेखन ही आपकी सबसे बड़ी खूबी है, जो मुझे पसंद है. रोजमर्रा के मुद्दों को यदि मनोरंजक तरीके से पेश किया जाये तो पाठकों की संख्या किस तरह तेजी से बढती है, ये आपको पढ़कर अच्छी तरह ज़ाहिर होता है. इस नश्वर संसार में सब एक दूसरे से सीखते हैं.
जवाब देंहटाएंटीचर्स वाली बात को कभी साथ बैठकर डिस्कस करेंगे, जैसे हमने समीर भाई के साथ की थी.
खुशदीप के इन दीपों का आलोक देखकर
जवाब देंहटाएंअच्छा लग रहा है,
आलोक खुद खुश होने को मचल रहा है
बोलो आइकन बतलाने के लिए कौन
कौन चल रहा है
कौन कौन बनना चाहता है
यह किस्सा भी सबके मन के अंदर
पल रहा है
पल पल हर पल ब्लॉग
हिन्दी का हित हिट कर रहा है।
"अगर कुछ गलतफहमी है तो उसे दूर करने के विषय पर...अगर मेरे किसी कृत्य को लेकर उंगली उठी है तो उसका जवाब देकर दूध का दूध और पानी का पानी करना भी मेरा फर्ज है...अन्यथा मर्ज़ को अगर यूहीं छो़ड़ दिया जाए तो ग्रंथि बनी रहती है...मेरी आइकन्स वाली पोस्ट को लेकर हर तरह की प्रतिक्रियाएं आईं...फूल भी मिले, पत्थर भी...सबसे पहले मुझे लगता है कि कुछ बंधुओं ने शायद आइकन्स का मतलब ही गलत लगा लिया है..."
जवाब देंहटाएंबिलकुल सही कहा आपने और उम्मीद करता हूं सबकी शंका निवारण हो गई होगी|जिज्ञासा शांत हो गई होगी|
शुभकामनायें!
आइकन्स का मतलब ....हां जी, समझ गए...आई क्न्स की बारी:)
जवाब देंहटाएंवैसे तो सफ़ाई की कोई आवश्यकता नहीं थी। लेकिन लिखा तो वो भी अच्छा किया। कुछ साथी ब्लागर अच्छे लगते हैं कुछ बहुत अच्छे। अपनी पसंद बताना कोई गलत बात नहीं! स्मय के साथ नये लोग भी आयेंगे वे भी आपकी पसंद में शामिल होते जायेंगे। फ़ूल और पत्थर में जिसके पास जो होगा वो देगा। मस्त रहिये, खूब लिखिये।
जवाब देंहटाएंआपके स्लाग ओवर ने तो आपको हमारा आईकान बना दिया।आज से आप मेरे आईकन्।
जवाब देंहटाएंआपका ब्लॉग ठंडी हवा के पहले झोंके सा ताजगी का एहसास देता है और आपकी लेखनी सदा प्रभावित करती है! लिखते रहिये!
जवाब देंहटाएंडॉ टी एस दराल के इस कथन से अक्षरशः सहमत.....
"जिंदगी के सभी खट्टे मीठे अनुभवों से कुछ न कुछ सीखने को मिलता है. आप बहुत अच्छा लिख रहे है और दिल से लिख रहे है, ऐसा मेरा विश्वास है. आपका मुद्दों पर आधारित लेखन ही आपकी सबसे बड़ी खूबी है!"
शुभकामनायें.......................
जवाब देंहटाएंआपने आइकन बनाया तो बुरा मान गये
सोच क्या है ये बताया तो बुरा मान गये
गोया..
खुद ही इशारा भी किया औ’ खुद ही सहारा भी दिया
जो कदम एक नया किसी ने बढ़ाया तो बुरा मान गये
लेकिन.. भाई मेरे, आख़िर मैं शर्म से लाल क्यों होता जा रहा हूँ ?