जी हां जब तक दम में दम है, चिठ्ठे ठेलना जारी रहे... ये कामना हर ब्लॉगर साथी के लिए है...वैसे ब्लॉगर कभी रिटायर होने की सोचे भी क्यों...ये पोस्ट ऑफ प्रोफिट का मामला थोड़े ही है जो कालातीत में सोनिया गांधी और जया बच्चन की तरह संसद की सदस्यता पर ही बन आए...ये तो विशुद्ध पोस्ट ऑफ सेल्फ सेटिस्फेक्शन का मामला है...
अब ये ठहरा छपास रोग...भईया इसे मिटाना भी तो है...ये न्यूजपेपर वाले बिना सेटिंग के घास डालते नहीं...जो अपना लेख छपा देखकर तीनों लोक का आनंद आ जाए...ये जालिम अखबार वाले, हींग लगे न फिटकरी रंग भी आए चोखा, इसी तर्ज पर ब्लॉग सीधे लिफ्ट भी करते हैं तो ये एहसान जताते हुए कि देखा बड़ी मुश्किल से एकोमोडेट किया है...
तो भईया अपना छज्जू का चौबारा ही ठीक...जब मन आया चिठ्ठा ठेल दिया...रवा रवा अपना चिठ्ठा देखा नहीं कि लगता है जैसे पानीपत का मैदान मार लिया...अब कोई पढ़ने या टिपियाने नहीं आता तो क्या गम...अपनी आंखे और उंगलियां तो हैं...जितनी बार चाहे क्लिक करो, जितनी बार चाहे नैन-सुख लो...अपने लेख पर वारि-वारि जाओ, अपनी सोच पर बलिहारी जाओ...कोई रोक सके तो रोक ले...
तो भईया ऐसा परम आनंद चला-चली की बेला तक मिलता रहे और लता ताई का गीत नेपथ्य में बजता रहे...आज फिर जीने की तमन्ना है...आज फिर मरने (अपने लेख पर) का इरादा है...हो गया न धरती मैया पर आना सफल...अब भले ही ब्लॉगिंग के बाज़ार में भाव हल्का चल रहा हो, यही कह कर अपने मन-मयूरा को समझाओ, हमारी सोच क्लासेस के लिए है मासेस के लिए नहीं..अब हम पापुलर सिनेमा थोड़े ही हैं जो बिकता है वही लिखता है का राग अलापने लगेंगे...अब जनाब आर्ट फिल्में भी बनती है न...भले ही हॉल में उल्लू बोले लेकिन अवॉर्ड तो ले ही आती है न...अब ये राज मत खुलवाईए कि ये अवॉर्ड देने वाले कौन होते हैं...
हां तो मै कह रहा था कि ब्लॉगर्स कभी रिटायर नहीं होते...आखिर क्यों हो रिटायर..82 पार के आडवाणी संघ के तमाम घोड़े खोल लेने के बाद भी कुर्सी से चिपके बैठे हैं...फेविकोल के विज्ञापन याद हैं न...इस देश में आम आदमी जिस उम्र में नौकरी से रिटायर होता है, उस उम्र वालों को राजनीति में मुन्ना माना जाता है...मंत्री बनाया भी जाता है तो राज्य या डिप्टी का झुनझुना ही थमाया जाता है... राजनीति में असली बहार तो सत्तर पार करने के बाद ही आती है...नेता ही क्यों नौकरशाह ही ले लो...रिटायरमेंट की उम्र तक शान से नौकरी...उसके बाद जितनी तगड़ी सैटिंग उतनी ही बार एक्सटेंशन...और कुछ नही तो अंबानी जैसे पालनहार तो बैठे ही हैं...पहले सरकार की नौकरी करो फिर सरकार के सारे राज़ अंबानियों को बता दो...और अपनी कई पीढि़यों का उद्धार कर लो...अब सरकार नौकरशाहों पर रोक थोड़े ही लगाने जा रही है कि रिटायरमेंट के बाद प्राइवेट सेक्टर की जय-जयकार नहीं कर सकते...
ये तो रही राजनेताओं और नौकरशाहों की बात...अपने खिलाड़ी भी इस मामले मे कम खिलाड़ी थोड़े ही हैं...अब अपने सचिन बाबा को ही ले लो..तेंदुलकर जी ने सुझाव दिया है कि 50-50 ओवर के वनडे मैच 25-25 ओवर की चार पारियों के फॉर्मेट में खेले जाएं...सचिन का सुझाव दुरूस्त है. सचिन 2011 का वर्ल्ड कप खेलने की बात पहले ही कर चुके है. अगर तीन-तीन मध्यांतर के साथ 25-25 ओवर की दो-दो पारियां होती हैं तो हमारे सचिन बाबा को ज़्यादा थकान भी नहीं होगी और उनका एक और वर्ल्ड कप (शायद ज़्यादा भी) खेलने का सपना भी पूरा हो जाएगा. अब सचिन शेन वार्न, मैक्ग्रा या फ्लिंटॉफ थोड़े ही हैं जो टॉप में रहते ही रिटायरमेंट ले लें...
हमारे देश में क्रिकेटर तब तक रिटायर होते कहां हैं, जब तक लोग ही महेंद्र कपूर का गाना न शुरू कर दे...और नहीं, बस और नहीं...गम के प्याले और नहीं..जब और माई के लाल आसानी से रिटायर होने को तैयार नहीं होते तो ब्लॉगर्स़ क्यों लाए मन में ऐसी बात...आखिर टाइम पास का टाइम पास...जितना बढ़िया टिप्पणी-संपर्क, उतना रहे मन झकास...खैर टाइम की बात आई तो फिर अपना मक्खन याद आ गया...फिर देर किस बात की, आइए स्ल़ॉग ओवर में...
स्लॉग ओवर
मक्खन गली के नुक्कड़ पर बैठा दो घंटे से मक्खियां मार रहा था..तभी ढक्कन आ गया...ढक्कन ने नसीहत के अंदाज़ में कहा कि क्यों टाइम बर्बाद कर रहा है...मक्खन ने तपाक से जवाब दिया..ओए, मुझे ऐसा-वैसा न समझ...मैं बदला ले रहा हूं बदला...ढक्कन ने पूछा...भई वो कैसे...मक्खन बोला...मुझे पहले वक्त ने बर्बाद किया, अब मैं वक्त को बर्बाद कर रहा हूं...
अब ये ठहरा छपास रोग...भईया इसे मिटाना भी तो है...ये न्यूजपेपर वाले बिना सेटिंग के घास डालते नहीं...जो अपना लेख छपा देखकर तीनों लोक का आनंद आ जाए...ये जालिम अखबार वाले, हींग लगे न फिटकरी रंग भी आए चोखा, इसी तर्ज पर ब्लॉग सीधे लिफ्ट भी करते हैं तो ये एहसान जताते हुए कि देखा बड़ी मुश्किल से एकोमोडेट किया है...
तो भईया अपना छज्जू का चौबारा ही ठीक...जब मन आया चिठ्ठा ठेल दिया...रवा रवा अपना चिठ्ठा देखा नहीं कि लगता है जैसे पानीपत का मैदान मार लिया...अब कोई पढ़ने या टिपियाने नहीं आता तो क्या गम...अपनी आंखे और उंगलियां तो हैं...जितनी बार चाहे क्लिक करो, जितनी बार चाहे नैन-सुख लो...अपने लेख पर वारि-वारि जाओ, अपनी सोच पर बलिहारी जाओ...कोई रोक सके तो रोक ले...
तो भईया ऐसा परम आनंद चला-चली की बेला तक मिलता रहे और लता ताई का गीत नेपथ्य में बजता रहे...आज फिर जीने की तमन्ना है...आज फिर मरने (अपने लेख पर) का इरादा है...हो गया न धरती मैया पर आना सफल...अब भले ही ब्लॉगिंग के बाज़ार में भाव हल्का चल रहा हो, यही कह कर अपने मन-मयूरा को समझाओ, हमारी सोच क्लासेस के लिए है मासेस के लिए नहीं..अब हम पापुलर सिनेमा थोड़े ही हैं जो बिकता है वही लिखता है का राग अलापने लगेंगे...अब जनाब आर्ट फिल्में भी बनती है न...भले ही हॉल में उल्लू बोले लेकिन अवॉर्ड तो ले ही आती है न...अब ये राज मत खुलवाईए कि ये अवॉर्ड देने वाले कौन होते हैं...
हां तो मै कह रहा था कि ब्लॉगर्स कभी रिटायर नहीं होते...आखिर क्यों हो रिटायर..82 पार के आडवाणी संघ के तमाम घोड़े खोल लेने के बाद भी कुर्सी से चिपके बैठे हैं...फेविकोल के विज्ञापन याद हैं न...इस देश में आम आदमी जिस उम्र में नौकरी से रिटायर होता है, उस उम्र वालों को राजनीति में मुन्ना माना जाता है...मंत्री बनाया भी जाता है तो राज्य या डिप्टी का झुनझुना ही थमाया जाता है... राजनीति में असली बहार तो सत्तर पार करने के बाद ही आती है...नेता ही क्यों नौकरशाह ही ले लो...रिटायरमेंट की उम्र तक शान से नौकरी...उसके बाद जितनी तगड़ी सैटिंग उतनी ही बार एक्सटेंशन...और कुछ नही तो अंबानी जैसे पालनहार तो बैठे ही हैं...पहले सरकार की नौकरी करो फिर सरकार के सारे राज़ अंबानियों को बता दो...और अपनी कई पीढि़यों का उद्धार कर लो...अब सरकार नौकरशाहों पर रोक थोड़े ही लगाने जा रही है कि रिटायरमेंट के बाद प्राइवेट सेक्टर की जय-जयकार नहीं कर सकते...
ये तो रही राजनेताओं और नौकरशाहों की बात...अपने खिलाड़ी भी इस मामले मे कम खिलाड़ी थोड़े ही हैं...अब अपने सचिन बाबा को ही ले लो..तेंदुलकर जी ने सुझाव दिया है कि 50-50 ओवर के वनडे मैच 25-25 ओवर की चार पारियों के फॉर्मेट में खेले जाएं...सचिन का सुझाव दुरूस्त है. सचिन 2011 का वर्ल्ड कप खेलने की बात पहले ही कर चुके है. अगर तीन-तीन मध्यांतर के साथ 25-25 ओवर की दो-दो पारियां होती हैं तो हमारे सचिन बाबा को ज़्यादा थकान भी नहीं होगी और उनका एक और वर्ल्ड कप (शायद ज़्यादा भी) खेलने का सपना भी पूरा हो जाएगा. अब सचिन शेन वार्न, मैक्ग्रा या फ्लिंटॉफ थोड़े ही हैं जो टॉप में रहते ही रिटायरमेंट ले लें...
हमारे देश में क्रिकेटर तब तक रिटायर होते कहां हैं, जब तक लोग ही महेंद्र कपूर का गाना न शुरू कर दे...और नहीं, बस और नहीं...गम के प्याले और नहीं..जब और माई के लाल आसानी से रिटायर होने को तैयार नहीं होते तो ब्लॉगर्स़ क्यों लाए मन में ऐसी बात...आखिर टाइम पास का टाइम पास...जितना बढ़िया टिप्पणी-संपर्क, उतना रहे मन झकास...खैर टाइम की बात आई तो फिर अपना मक्खन याद आ गया...फिर देर किस बात की, आइए स्ल़ॉग ओवर में...
स्लॉग ओवर
मक्खन गली के नुक्कड़ पर बैठा दो घंटे से मक्खियां मार रहा था..तभी ढक्कन आ गया...ढक्कन ने नसीहत के अंदाज़ में कहा कि क्यों टाइम बर्बाद कर रहा है...मक्खन ने तपाक से जवाब दिया..ओए, मुझे ऐसा-वैसा न समझ...मैं बदला ले रहा हूं बदला...ढक्कन ने पूछा...भई वो कैसे...मक्खन बोला...मुझे पहले वक्त ने बर्बाद किया, अब मैं वक्त को बर्बाद कर रहा हूं...
वाह !
जवाब देंहटाएंsuch hai blogge hala kuyun retire ho wo koee kisee ka tabedar thode hi hai .Apne mrji ka malik hai likha likha na likha na likha. Wakt ko marane ka treeka blogggeron se achca kis ke pas hai, aapke makhkhan ke pas bhee nahee
जवाब देंहटाएंसही है...ब्लॉग पर अब ऐसा प्रोवीज़न आना चाहिये कि हफ्ते में एक पोस्ट ही एलाउड है और बस, दस कमेंट कर सकते हो तो कभी रिटायर ही न होना पड़े. :)
जवाब देंहटाएंमख्खन ने तो सही बदला ले लिया वक्त से. अब हम भी लेंगे.
pl. read blogger bhala
जवाब देंहटाएंबदले की भावना से लेख लिखे जा रहे हैं। तुमने मुझे झिलाया अब हम तुमको झिलायेंगे।
जवाब देंहटाएंअगर रिटायरमेंट की ही सुविधा नहीं है ......तो पेंशन की बात का तो कोई मतलब ही नहीं रह जाता......यानि बुढापे तक भी ..नकदी का कोइ जुगाड नहीं....यार खुशदीप जी..कोइ स्पांसर ही दिलवा दो सारे ब्लोग्गर्स को ..
जवाब देंहटाएंमक्खन का आईडिया गज़ब का है,इसे तो कई लोग फ़ालो कर लेंगे।
जवाब देंहटाएंsahi farmaya aapane.
जवाब देंहटाएंअच्छा ध्यान दिलाया आपने ! तो आइए हम प्रण् लें कि हम आमरण ब्लॉगिंग करेंगे !
जवाब देंहटाएंअब तो मक्खन के किस्से सुनने का लालच और जुट गया .. ब्लागिंग छोडना मुश्किल ही लगता है !!
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंयह व्यंग बाण चला कर कर मदमस्त दिया दिया आपने... आपको शंकर दयाल शर्मा याद हैं... कुछ नाम और हैं... पाँव कबर में लटके रहते हैं पर गद्दी से चिपके रहते हैं... इस प्रसंग में शरद द्विवेदी याद आते हैं अपने एक लेख में उन्होंने लिखा है...
जवाब देंहटाएं" कारों में पांव सुन्न कर दिए, कुर्सियों ने लाचार बना दिया, गले में पड़ी फूल-मालाओं नें कंठ अवरुद्ध कर दिया... मैं हूँ, कुर्सी है, कुर्सी नदी हैं... फिर दरया है, समंदर है...."
---- अर्जुन सिंह का अभी यही हाल है... दिखाई देना बंद हो गया है पर जन सेवा में जी जान से जुटे हैं...(या की जनों से अपनी सेवा करवा रहे हैं..!.)
एक बात और बढती उम्र पर लगता है... अगर हमारे यहाँ ऐसे किसी मंत्री पर जूता फैका जाये तो वो पक्का खायेंगे, इसमें कोई शक नहीं... इतनी कुव्वत कहाँ की वो बुश जैसे झट से झुक्क जाएँ... और फिर प्रेम से गाल बजायेंगे---
"जनता का जूता सर-आँखों पर" गोया जनता भी तो वोहीं मारना चाहती थी...
बहुत अच्छा
जवाब देंहटाएंaaj to aanand aa gya ! aapko follow karna hi padega ji:)
जवाब देंहटाएंब्लोगिंग चीज़ ही ऐसी है ---
जवाब देंहटाएंअपने नाम के ही अनुरूप दिल खुश कित्ता ई ओए !!
जवाब देंहटाएं"...तो भईया ऐसा परम आनंद चला-चली की बेला तक मिलता रहे और लता ताई का गीत नेपथ्य में बजता रहे...आज फिर जीने की तमन्ना है...आज फिर मरने (अपने लेख पर) का इरादा है...हो गया न धरती मैया पर आना.."
जवाब देंहटाएंसही है. ब्लॉगर न तो टायर्ड न ही रिटायर्ड..
और जब मरे तो उसे सच में मरा हुआ न माना जाय. सच में मरा या नहीं, यह जानने के लिए उसके कान में कहा जाय कि; "तुम्हारी पोस्ट पर नई टिप्पणी आई है."
अगर तब भी न उठे तभी उसे मृत माना जाना चाहिए.
वाह क्या बात है!
जवाब देंहटाएंक्या हुनर है!.../
यदि ऐसे ही लिखते रहे..........
तो आपका अनुसरण छोडना मुश्किल ही लगता है !!
समीर लाल जी (उड़न तश्तरी)...ऐसा करते हैं कि पर्ची डाल लेते हैं जिसकी पर्ची निकलेगी, वही सबसे पहले रिटायर होगा। खुशदीप सहगल आप रेफरी की भूमिका में रहिएगा।
जवाब देंहटाएंअच्छा लिखा है, बधाई।
अरे! इतनी खूबसूरत पोस्ट पहले पढ़ने से कैसे रह गई?
जवाब देंहटाएं