भाइयों अब फुर्सत में आया हूं...इस शोले पुराण को जिन्होंने भी हिट बनाया...पहले तो उन सभी का आभार...सवालों के सही जवाबों तक पहुंचने के लिए खास तौर पर अदा जी, उड़न तश्तरी वाले गुरुदेव, अवधिया जी, आशीष श्रीवास्तव, राजीव तनेजा जी, नीरज रोहिल्ला, सतिंद्र जी, यूसुफ अंसारी का शुक्रिया...और हमारे महफूज़ भाई तो इतने मासूम है कि शोले डीवीडी पर देखे भी जा रहे थे, फिर भी एक भी सवाल का सही जवाब नहीं दे पाए...और ताऊ रामपुरिया...पहले तै मुझे लठ्ठ लेकर ढूंढे सा, अब मै तैणे ढूंढ रहा हू...सारे विजेता इनाम के पीछे जो पड़े हैं...
अब 3-4 जानकारियां मेरे पास और है जो सवालों के जवाबों मे नहीं आ सकी, वो आपके साथ बांटना चाहता हूं...
अमजद खान के पिता जयंत भी गजब के एक्टर थे...पठान का रोल तो उन पर ऐसा फबता था कि पूछो मत...अवधिया जी ने सही बताया कि उनका असली नाम ज़कारिया खान ही था...
अमजद खान के भाई इम्तियाज... अमजद से पहले ही फिल्मों में स्थापित हो गए थे...कई फिल्मों में उन्होंने विलेन और चरित्र अभिेनेता के रोल किए...
अमजद खान ने भी अब दिल्ली दूर नहीं में बाल कलाकार की भूमिका निभाई थी...वयस्क के तौर पर उनकी पहली फिल्म थी हिंदुस्तान की कसम
अमजद खान ने दो फिल्मों चोर पुलिस...अमीर आदमी, गरीब आदमी का निर्देशन भी किया था...
अमजद खान के बेटे शादाब खान... रानी मुखर्जी की पहली फिल्म राजा की आएगी बारात के हीरो थे...लेकिन उसके बाद उनकी दाल फिल्मों में गली नहीं...
एक सवाल जिसका जवाब शोले पुराण मे नहीं मिल पाया कि अमजद खान को सबसे ज़्यादा शौक किस चीज़ का था...तो जनाब वो शौक था चाय का...बताते हैं कि सेट पर स्पाट बॉयस को ये ताकीद रहती थी कि जैसे ही चाय का प्याला खाली हो, नया प्याला हाजिर हो जाना चाहिए...और ये शौक ही शायद अमजद खान को हमसे इतनी जल्दी दूर ले गया...आखिरी सालों में वो इतने फूल गए थे कि आसानी से चल भी नहीं पाते थे...मुझे याद है जब उनकी मौत हुई थी तो मैंने एक दोस्त को इस बारे में बताया था...मेरे दोस्त का जवाब था...अमजद मरे नहीं बल्कि फट गए...शुगर जैसी बीमारियों और मोटापे ने ही इतने बेहतरीन अभिनेता का इतनी जल्दी अंत कर दिया...
खैर अमजद खान की बातें तो काफी हो गईं...अब आते हैं जय यानि अमिताभ बच्चन के शोले में किरदार पर...ये सच है कि जय के रोल के लिेए जी पी सिप्पी और रमेश सिप्पी की पहली पसंद शत्रुघ्न सिन्हा ही थे...लेकिन बात बनी नहीं थी...तब अमिताभ को इस रोल के बारे में पता चला तो उन्होंने धर्मेंद्र से संपर्क किया और रमेश सिप्पी से बात करने का आग्रह किया...धर्मेंद्र के कहने पर ही अमिताभ को जय का रोल मिला...जहां तक वीरू के रोल की बात है तो उस वक्त धर्मंद्र की हीमैन के तौर पर बॉलीवुड में तूती बोलती थी...और धर्मेंद्र ही वीरू के लिए एकमात्र पसंद थे....
जहां तक शोले के रिकार्ड का सवाल है तो शोले 15 अगस्त 1975 को रिलीज हुई थी...मुंबई के मिनर्वा सिनेमा में शोले लगातार 265 हफ्ते तक चलती रही थी...2001 में दिल वाले दुल्हनिया ले जाएंगे ने मुंबई के मराठा मंदिर में शोले का रिकॉर्ड तोड़ा...दिल वाले दुल्हिनया ले जाएंगे, इस साल मार्च तक 700 हफ्ते लगातार चलने का रिकॉर्ड कायम कर चुकी थी...ये फिल्म क्या अब भी मराठा मंदिर में चल रही है, मुंबई निवासी कोई ब्लॉगर भाई ही इस पर सही जानकारी दे सकता है...
इति शोले पुराण...
स्लॉग ओवर
मक्खन का पुत्र गुल्ली मैथ्स में फेल हो गया...मक्खन घर आया तो मक्खनी ने शिकायत की...मक्खन के लिए तो खुद मैथ्स बचपन में जान का सबसे बड़ा दुश्मन था...फिर भी मक्खनी के सामने उसने पिता धर्म निभाते हुए पूछा...गुल्ली पुतर...मैथ्स में नंबर क्यों नहीं आए...गुल्ली भी ठहरा मक्खन का पुतर...बोला...पापाजी...ये हमारी मैथ्स की मैडम भी न कुछ नहीं जानती...कभी मुझे कहती है 6 और 2...8 होते हैं...कभी कहती है 4 और 4...8 होते हैं...कभी कहती है 5 और 3...8 होते हैं...अब बताओ मैं कौन सी बात मानूं...
भाई खुशदीप जी आपने शोले की चर्चा के साथ कुछ ऐसी पहलू पर ज़िक्र किया जिससे हम भी अनभिज्ञ थे,,जानकारी के लिए आभार....और स्लॉग ओवर भी मजेदार....धन्यवाद
जवाब देंहटाएं"गुल्ली भी ठहरा मक्खन का पुतर...बोला...पापाजी...ये हमारी मैथ्स की मैडम भी न कुछ नहीं जानती..."
जवाब देंहटाएंगुदगुदाते रहने के लिये ध्न्यवाद :)
जय हिंद !!
शोले पुराण मस्त रही..बहुत मजा आया.
जवाब देंहटाएंआज तो मुल्ली की कोई गल्ति नहीं लगती..कित्ता कन्फ्यूज है बेचारा.
शोले शोध और जानकारी के लिये धन्यवाद. गुल्ली का संशय गलत तो नही है.
जवाब देंहटाएंअच्छी लगी आपकी पोस्ट .. गुल्ली का संशय वाजिब है भई !!
जवाब देंहटाएंसब गुल्ली की तरफ ले रहे हैं..कैसी दुनिया हो गई है...धरती काहे नहीं फट जाती..काश, ये सब उसमें समा जायें. :)
जवाब देंहटाएंलगभग पैंतीस साल पुरानी फिल्म शोले पर इतना अच्छा पुराण की रचना के लिए आप धन्यवाद के पात्र हैं!
जवाब देंहटाएंइस शोले पुराण ने फिल्मी जानकारी रखने वाले बड़े बड़े दिग्गजों से भी परिचय कराया।
एक फिल्म अवार्ड समारोह में मैँने भी अमिताभ बच्चन जी को यही कहते सुना था कि शोले के लिए धर्मेन्द्र जी ने उनकी सिफारिश की थी...उस समय धर्मेन्द्र जी भी वहाँ पर मौजूद थे।उन्होंने विनम्रतापूर्वक ये कहा था कि... "मुझे याद नहीं पड़ता कि कब मैने आपकी सिफारिश की"...
जवाब देंहटाएंउसके बाद अभी कुछ दिन पहले मैँने कहीं सलीम खान जी(सलीम-जावेद वाले जो शोले फिल्म के लेखक भी थे) का साक्षातकार पढा था...उसमें उन्होंने दावा किया था कि अमिताभ की सिफारिश धर्मेन्द्र ने नहीं बल्कि उन्होंने की थी।इस बात का उन्हें शिक्वा भी था कि अमिताभ बच्चन ने उनके बजाए धर्मेन्द्र को इसका श्रेय दिया।..
बाकी शोले पुराण बहुत ही बढिया रहा...और हाँ एक ज़रूरी बात जिस किसी ने भी शोले देखी है..उनमें से क्या कोई बता सकता है कि फिल्म के अंत में गब्बर सिंह ज़िन्दा बचता है या फिर मुर्दा?...
मुझे उम्मीद है कि ज़्यादतर के जवाब गलत होंगे :-)
देख भई भतिजे, ताऊ एक तो हरयाणा के चुनावों व्यस्त था और किम्मै तबियत सी भी ठीक ना सै. इस करकै तेरे ब्लाग पै क्या.. किसी के भी बिलाग पै जाणा नी हुया पिछले कुछ समय से.
जवाब देंहटाएंदेख भाई अमजद खान साहब से अपणा डायरेक्ट कनेक्शन था..और नीचे आले लिंक पर म्हारी पोस्ट का खूंटा पढ लिये...और सारी बात यहां कह नही सकता...क्योंकि मर्यादा वादियों का घणा डर सतावै सै मन्नै..सो तेरे फ़ोन नंबर मेरे कमेंट बाक्स म्ह छोड दिये..मैं फ़ोन कर ल्युंगा...और कमेंट माडरेशन है सो वो कमेंट पब्लिश नही करुगा.
इब रामराम भाई!
http://taau.taau.in/2008/09/blog-post_14.html ये लिंक है उस पोस्ट का!
अरे भईया अब बस भी करो। हमको तो लगता है कि ये हमारे खुशदीप भईया इ फिल्मवा देखा ही नहीं घोल के पी डालें है । अब एक बात तो साफ करने पड़ेगी खुशदीप भईया के घर से कि वे पढ़ते भी थे की नहीं बस फिल्मवा देखते थे।
जवाब देंहटाएंराजीव तनेजा भाई,
जवाब देंहटाएंआपकी स्टेशन पहुंचने से पहले हमेशा ट्रेन क्यों छूट जाती है...लगता है भाभी जी को कहना पड़ेगा कि आपकी घड़ी रोज एक घंटा फास्ट कर दिया करें...ब्लॉगर्स मीट में योगेन्द्र मोदगिल भाई को स्टेशन छोड़ने गए ट्रेन छूट गई...शोले के सवाल पूछने का वक्त आया, सही जवाब होते हुए भी सबसे आखिरी हाजरी लगाई...आज शोले पुराण के इति हो जाने पर आप पूछ रहे हो गब्बर कौन था...सॉरी...सॉरी गब्बर मर गया था या ज़िंदा रहा था...राजीव जी रमेश सिप्पी इतनी कच्ची गोलियां नहीं खेले थे...उन्होंने गब्बर पर संशय रख कर आगे शोले का सीक्वल बनाने की गुंजाइश रख छोड़ी थी...
खैर ब्लॉगर्स हाउस का आपका सीक्वल कब आ रहा है...या यहां भी लेटलतीफी...
जय हिंद
शोले पुराण मज़ेदार रहा।शोले के गब्बर से पहले डाकूओ पर एक फ़िल्म आई थी मेरा गांव मेरा देश।इसमे सिर्फ़ वीरु था और गब्बर की जगह जब्बर। और बिना हाथ वाले ठाकुर की जगह एक हाथ वाला फ़ौजी था,जयंत यानी अवधिया जी ज़कारिया खान्।उस फ़िल्म को देखो तो ऐसा लगता है कि शोले का पार्ट वन है।
जवाब देंहटाएंमिथिलेश भैये...
जवाब देंहटाएंजब मक्खन अपना यार, गुल्ली उसका पुतर, खुद ही समझ लेना चाहिए था कि हमने पढ़ाई में क्या क्या गुल खिलाए होंगे...इस मामले में तो अपन पक्के अनिल पुसदकर जी के चेले रहे हैं...और यार क्यों सबके सामने हमारी बेइज्जती का फलूदा कर रहा है...अपने केटरिंग के धंधे की फिक्र कर न...
जय हिंद...
सर जी शोले के दो अलग अलग अन्त है !एक मे अन्त मे गब्बर जिन्दा बचता है, पुलीस पकड के ले जाती है| ये अन्त ज्यादा प्रचलित है| दूसरे अन्त(डायरेक्टर्स कट वर्शन) मे ठाकुर उसे जुते की ठोकरो से उपर पहुचा देता है| दूसरा वाला अन्त कम ही लोगो को पता है| यह इस फिल्म का असली अँत था लेकिन इसे सेँसर बोर्ड के कारण बदला गया था| और गब्बर को पुलीस के हवाले करने वाला हिस्सा फिल्माया गया|
जवाब देंहटाएंताऊ रामपुरिया,
जवाब देंहटाएंराम राम... ये तैणे बड़ा अच्छा काम करिया कि खुद ही शोले की अदालत में सरेंडर कर दिया...नहीं तो मैं तो तैणे के वांटेड पोस्टर बनवा कर हर ब्लॉगर भाई के ब्लॉग पर चिपकाण चलया था...खैर अभी तो थोड़ी जल्दी में रात को आराम से तैणे जो लिंक दिया से, ओणे देखूंगा...फिर तैणे के ब्लॉग पर अपना फोन नंबर और जी मेल अड्रैस छोडूंगा...वैसे तै यो काम बढ़िया कियो सो आगे से भतीजे को ताऊ के नुस्खे लेण का रास्ता बता दिये से...
जय हिंद...
खुशदीप जी जब शोले शूट की गई थी तब उसके अंत में गब्बर को ठाकुर द्वारा मार दिया जाता है लेकिन फिर बाद में उस समय के हिसाब से सोचा गया कि क्या एक पुलिस वाले के कानून हाथ में लेने से पब्लिक पर गलत सन्देशा नहीं जाएगा?..इसलिए इसका अंत फिर से शूट कर के गब्बर को पुलिस के हवाले किया गया। लेकिन अब जब कि ज़माना बदल चुका है..इसका नया अंत फिर से रिलीज़ किया गया है जिसमें गब्बर की मौत हो जाती है। आप चाहें तो नई वाली डीवीडी मँगवा कर देख सकते हैँ...वैसे ये वाला क्लाईमैक्स यू-ट्यूब पर भी उपलब्ध है
जवाब देंहटाएंखुशदीप जी जहाँ तक योगेन्द्र जी को छोड़ते समय ट्रेन छूटने की बात है तो मैँने पानीपत जा कर ..उनसे मिल कर उसकी भरपायी कर ली है...और रही बिग ब्लॉगर हाउस की बात तो मैँने उसके लिए आप सभी से सुझाव माँगे हैँ...लेकिन सभी ने ये लिख दिया कि आईडिया ज़ोरदार है...दो-चार ने शामिल होने की सहमति भी जताई...बस इतना ही...आपके सुझाव का इंतज़ार रहेगा...
जवाब देंहटाएंवैसे आज उससे सम्बन्धित कुछ ना कुछ ज़रूर लिखूँगा
राजीव तनेजा जी,
जवाब देंहटाएंअरे आप ने तो मेरी बात को शायद सीरियसली ले लिया लगता है...ये तो निर्मल हास्य था, जिसके आप भी उस्ताद हैं...फिर भी अब अगर मुझसे गुस्ताखी हुई है तो क्षमा चाहता हूं...
जहां तक सुझाव की बात है पहला सुझाव मैंने ही दिया था डॉ अमर कुमार को बिग बॉस बनाने का...जहां तक ब्लॉगर्स हाउस के अंदर जाने की बात है तो वालियंटरली मैं तैयार हूं...मैं बस अपनी ही बता सकता हूं, दूसरों के बारे में कैसे कह सकता हूं...और शायद यही दुविधा दूसरे ब्लॉगरों की होगी...वैसे आप जिसे चाहें भेज दें, कोई बुरा नहीं मानेगा...
जय हिंद...
खुशदीप जी मैँने आपकी बात का कतई बुरा नहीं माना है...ये तो मैँ आपके ब्लॉग के जरिए सभी पाठकों को बताना चाहता था कि मैँ योगेन्द्र मौदगिल जी से मिल कर आया हूँ...आजकल ऐड का ज़माना है भय्यी :-)
जवाब देंहटाएंक्या बात है यार.... ये मिलना भी कोई मिलना था... मगर चिंता नहीं फिर मिलेंगें और ढंग से मिलेंगें.... खूब जमेगी.. जब मिल बैठेंगें दीवाने दो.... एक मैं और नम्बर वन.... बहरहाल शोलेपुराण की सभी कड़ियां पर कर टिप्पणी करूंगा अभी तो टिप्पणी पर टिप्पणी हो गयी...
जवाब देंहटाएंखुशदीप भाई यह शोले पुराण भी अच्छा रहा इसे एक बार और प्रस्तुत कीजियेगा । अभी ब्लॉगजगत से बाहर भी बहुत से लोग जिन्होने इस पर रिसर्च की है । शोले के "कितने आदमी थे" वाले सिक्वेंस को देश की अनेक भाषाओं मे अनुवाद किया गया । इस पर कोमिक भी तैयार किये गये । मैने खुद बैंक की तबादला नीति पर एक कॉमिक तैयार किय था जिसे मैं मंच पर प्रस्तुत करता था । अभी साहित्यिक पत्रिका वसुधा के फिल्म विशेषांक मे भी शोले पर बहुत जानकारी है
जवाब देंहटाएंऔर एक रहस्य की बात बता रहा हूँ.. आपने मेरे लिये शोले शिरोमणी की सिफारिश की बात की है लेकिन मै यह उपाधि अपनी श्रीमति जी को पहले ही दे चुका हूँ इसलिये कि विवाह से पूर्व उन्होने कोई फिल्म नही देखी थी ( जबलपुर जैसे शहर मे रहते हुए भी यह आश्चर्य किंतु सत्य है ) लेकिन उन्हे शोले के पूरे डॉयलोग याद थे इसलिये कि उन्होने बचपन मे इस फिल्म के रिकार्ड को घर और मोहल्ले मे लगातार बजते सुना था ।