इस वक्त अंजन की सीटी पर ममता दी से ज़्यादा किसका मन डोल रहा होगा...पश्चिम बंगाल में चुनाव के लिए एक मार्च के बाद चुनाव आयोग कभी भी तारीखों का ऐलान कर सकता है...यानि राज्य के लिए चुनाव आचार संहिता लागू हो जाएगी...ऐसे में रेल बजट आखिरी मौका रहा ममता दी के लिए बंगाल से दोनों हाथों से अपनी ममता लुटाने का...वैसे भी ममता दी यूपीए में जब से रेल मंत्री बनी हैं उनकी कोशिश यही रही है कि अपनी राजनीति की पटरी को राइटर्स बिल्डिंग तक ले जाएं और पश्चिम बंगाल के लिए सत्ता का सिगनल अपने हाथ में ले लें...लेकिन ममता दी ऐसा करते वक्त ये भूल गईं कि रेल मंत्री तो पूरे देश का होता है...
चुनाव को ध्यान में रखकर ममता बनर्जी का ज़्यादा वक्त बंगाल में ही बीतता है...ऐसे में रेल मंत्रालय का दिल्ली में बाजा तो बजना ही था...पिछले बजट में ममता दी ने जिन योजनाओं का बढ़-चढ़ कर ऐलान किया था, उनमें से ज्यादातर हवा में ही लटकी रह गईं...हां, बंगाल से जुड़ी योजनाओं पर ज़रूर तेज़ी से काम हुआ...अब देखना है कि उनके इस साल के वादों का क्या हश्र होता है...और अगर ममता दी बीच में ही चुनाव जीतकर बंगाल की मुख्यमंत्री बन गईं तो फिर तो वैसे ही सारी ज़िम्मेदारी नए रेल मंत्री के कंधे पर आ जाएगी...वैसे यहां गिनाता हूं कि ममता दी के पिछले साल के कुछ वादे जो वादे ही रह गए-
1000 किलोमीटर नई पटरी बिछाने का वादा किया था, बिछ पाई सिर्फ 230 किलोमीटर...
माल ढुलाई के लिए समर्पित कारिडोर अब भी सपना बना हुआ है...
50 वर्ल्ड क्लास स्टेशन बनाने का प्रस्ताव कागज़ों से आगे नहीं बढ़ा...
मोबाइल टिकटिंग सिस्टम नहीं शुरू हो पाया...
तेज़ रफ्तार गाड़ियों (200 किलोमीटर प्रति घंटा) के लिए कारिडोर अभी सलाह मशविरे के दौर से आगे नहीं बढ़ पाया...
बेहतर खान-पान, साफ पानी, टायलेट-ट्रेन-स्टेशनों की साफ़-सफ़ाई में कोई सुधार नहीं हो सका...
इसके अलावा ममता दी के बंगाल से बाहर न निकलने से जिन अन्य योजनाओं पर असर पड़ा है वो हैं-
कश्मीर रेल लाइन पर कछुआ गति से काम चल रहा है...
सेफ्टी के लिए सबसे ज़रूरी एंटी कोलिज़न डिवाइस के लिए सरकार के पास पर्याप्त पैसा नहीं है...
जहां से रेलवे को सबसे ज़्यादा कमाई हो है डेडिकेटेड फ्रेट कारिडोर,प्रस्ताव से आगे नहीं बढ़ पा रहा है...
लेकिन ममता दी का दिल तो बंगाल की मुख्यमंत्री बनने की सोच-सोच कर ही अगर ये गाना गाने लगे तो कोई बड़ी बात नहीं आप भी सुनिए...
अंजन की सीटी पर म्हारा मन डोले...
चुनाव को ध्यान में रखकर ममता बनर्जी का ज़्यादा वक्त बंगाल में ही बीतता है...ऐसे में रेल मंत्रालय का दिल्ली में बाजा तो बजना ही था...पिछले बजट में ममता दी ने जिन योजनाओं का बढ़-चढ़ कर ऐलान किया था, उनमें से ज्यादातर हवा में ही लटकी रह गईं...हां, बंगाल से जुड़ी योजनाओं पर ज़रूर तेज़ी से काम हुआ...अब देखना है कि उनके इस साल के वादों का क्या हश्र होता है...और अगर ममता दी बीच में ही चुनाव जीतकर बंगाल की मुख्यमंत्री बन गईं तो फिर तो वैसे ही सारी ज़िम्मेदारी नए रेल मंत्री के कंधे पर आ जाएगी...वैसे यहां गिनाता हूं कि ममता दी के पिछले साल के कुछ वादे जो वादे ही रह गए-
1000 किलोमीटर नई पटरी बिछाने का वादा किया था, बिछ पाई सिर्फ 230 किलोमीटर...
माल ढुलाई के लिए समर्पित कारिडोर अब भी सपना बना हुआ है...
50 वर्ल्ड क्लास स्टेशन बनाने का प्रस्ताव कागज़ों से आगे नहीं बढ़ा...
मोबाइल टिकटिंग सिस्टम नहीं शुरू हो पाया...
तेज़ रफ्तार गाड़ियों (200 किलोमीटर प्रति घंटा) के लिए कारिडोर अभी सलाह मशविरे के दौर से आगे नहीं बढ़ पाया...
बेहतर खान-पान, साफ पानी, टायलेट-ट्रेन-स्टेशनों की साफ़-सफ़ाई में कोई सुधार नहीं हो सका...
इसके अलावा ममता दी के बंगाल से बाहर न निकलने से जिन अन्य योजनाओं पर असर पड़ा है वो हैं-
कश्मीर रेल लाइन पर कछुआ गति से काम चल रहा है...
सेफ्टी के लिए सबसे ज़रूरी एंटी कोलिज़न डिवाइस के लिए सरकार के पास पर्याप्त पैसा नहीं है...
जहां से रेलवे को सबसे ज़्यादा कमाई हो है डेडिकेटेड फ्रेट कारिडोर,प्रस्ताव से आगे नहीं बढ़ पा रहा है...
लेकिन ममता दी का दिल तो बंगाल की मुख्यमंत्री बनने की सोच-सोच कर ही अगर ये गाना गाने लगे तो कोई बड़ी बात नहीं आप भी सुनिए...
अंजन की सीटी पर म्हारा मन डोले...
अच्छा पूर्वावलोकन!
जवाब देंहटाएंहम तो केवल इतना चाहते हैं कि नई ट्रेनें चलाने और किराया 1 रुपया कम करने का लॉलीपाप देने के बजाये जो ट्रेनें हैं उनमें ही 1-2 बोगी बढा दें, समयानुसार चलाने की कोशिश करें और साफ-सफाई की तरफ ध्यान दे दें।
जवाब देंहटाएंइतना भी कर दें तो मैं ममता जी को जरुर प्रणाम करूंगा।
वो सुबह कभी तो आयेगी.....
जवाब देंहटाएंवादे हैं वादों का क्या...
जवाब देंहटाएंक्या भूसा कभी शिकायत कर सकता है मुझे ठूस ठूस कर मत भरो ..तो भारतीय रेल के यात्री क्यों करें
जवाब देंहटाएंबढ़िया और अच्छी जानकारी दी खुशदीप भाई ! ममता दी का फोटो अच्छा लगा :-)
जवाब देंहटाएंबढ़िया पोस्ट है
जवाब देंहटाएंहो सकता है मैं गलत हूँ... लेकिन दीदी के पुराने वादों में मुझे लगता है खान-पान थोडा बेहतर हुआ है ... बाकी वादों पर निगाह है
भारतीय रेल आपकी सुखद यात्रा की कामना करती है।
जवाब देंहटाएंहर रेलमंत्री अपने राज्य का ही भला करता है, मध्यप्रदेश का दुर्भाग्य है कि हमें अभी तक सिर्फ़ एक बार माधवराव सिंधिया ही मिले, बाकी तो हमेशा ही मध्यप्रदेश उपेक्षा का शिकार रहा है… वह भी तब, जबकि दस साल लगातार दिग्विजय की कांग्रेसी सरकार भी रही…
जवाब देंहटाएंइसलिये अब मध्यप्रदेश वालों ने यह मान लिया है कि जो मिल जाये ले लो… अधिकतर समय, रेल मंत्रालय पर तो बिहार और बंगाल का ही कब्जा रहा है…।
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वैसे यदि ममता यह सब वामपंथियों को बंगाल से खदेड़ने के लिये, कर रही हैं तो कीमत कुछ ज्यादा नहीं है… :) :)
अब तो तस्वीर साफ ही हो गयी..
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