ज़िंदगी चाहिए या बेडरूम...खुशदीप

शीर्षक पढ़ कर चौंकिए मत...ये भी मत कहिएगा मुझे हवा लग गई है या लटके-झटके आ गए हैं...मैं बस इतना कहना चाहता हूं कि ये वाली पोस्ट पहले पढ़ लीजिए...अगर फिर कोई आपको इससे अच्छा शीर्षक सूझे तो मुझे बताइएगा ज़रूर...खास तौर पर घर से दूर या विदेश में रहने वाले या विदेश जाने की चाहत रखने वाले इस कहानी को ज़रूर पढ़े...ये कहानी भी अंग्रेज़ी में मुझे ई-मेल से मिली है...मैंने इसका अनुवाद किया है...



जैसा कि हर माता-पिता का सपना होता है, मैंने सॉफ्टवेयर इंजीनियरिंग की डिग्री अच्छे नंबरों से हासिल कर ली...प्लेसमेंट टेस्ट के बाद अमेरिका की एक बड़ी कंपनी में मुझे नौकरी भी मिल गई...अमेरिका...अवसरों की ज़मीन...जैसे ही मैंने अमेरिका की धरती पर पांव रखा, मेरे पंख निकल आए...सबसे बड़ा अरमान जो सच्चा हो गया था...लेकिन साथ ही देश की मिट्टी छूटने की कसक भी थी...लेकिन मैंने सोच लिया था कि बस पांच साल अमेरिका रहूंगा...इतनी देर में अच्छा खासा पैसा जुटा लूंगा और अपने देश में ही सम्मान के साथ ज़िंदगी जीने के लिए लौट जाऊंगा...



मेरे पिता सरकारी कर्मचारी थे...इतने सालों की नौकरी के बाद भी वो बस एक चीज़ ही बना पाए थे, जिसे वो फख्र के साथ अपना कह सकते थे...वो था सुंदर सा वन बेडरूम फ्लेट...मैं अपने पिता के लिए इससे कुछ ज़्यादा करना चाहता था...धीरे धीरे अमेरिका में समय गुज़रता गया...घर की याद रह रह कर सताने लगी...हर हफ्ते मैं माता-पिता से सस्ते इंटरनेशनल कार्ड के ज़रिए भारत बात किया करता था...इसी तरह दो साल बीत गए...दो साल मैक़्डॉनल्ड के पिज्जा और बर्गर के...कभी कभार दोस्तों के साथ डिस्को जाने के...फॉरेन एक्सचेंज रेट देखते रहने के...जब भी रुपया लुढ़कता, खुश हो जाता बगैर कुछ किए मेरी जमा राशि बढ़ गई है...


आखिरकार मैंने शादी का फैसला कर लिया...अपने माता-पिता से कहा कि मुझे सिर्फ दस दिन की छुट्टी मिल रही है...इन्हीं दस दिनों में सब इंतज़ाम करना है...मैंने छांटकर सबसे सस्ती फ्लाईट से भारत का टिकट बुक कराया...भारत पहुंच कर छह दिन लड़कियों के फोटो देखने में ही बीत गए...छुट्टियां खत्म होती जा रही थी...जो फोटो और रिश्ता मौजूद विकल्पों में सबसे बेहतर लगा, उसी को चुन लिया...ससुराल वाले भी मेरा रिश्ता हाथ से जाने नहीं देना चाहते थे, इसलिए एक-दो दिन में ही शादी का सारा इंतज़ाम करा दिया...अपने माता-पिता को कुछ पैसे देकर और पड़ोसियों से उनका ख्याल रखने को कह कर मैं और मेरी पत्नी अमेरिका आ गए...


पत्नी का घर और अपने शहर से बहुत लगाव था...दो महीने तक तो उसे चेंज अच्छा लगा...लेकिन फिर उसे घर और घरवालों की याद सताने लगी...खास तौर पर उस वक्त जब मैं काम पर जाता और वो घर पर अकेली रहती...अब वो हफ्ते में एक बार की जगह दो, कभी-कभार तीन बार भारत बात करने लगी...मेरा पैसा भी पहले के मुकाबले कहीं तेज़ी से खर्च होने लगा...


दो साल और बीत गए...इस बीच ऊपर वाले ने हमें दो सुंदर बच्चों की सौगात भी बख्श दी...बेटा और बिटिया...जब भी मैं अब भारत माता-पिता से बात करता वो एक ही हसरत जताते...जीते जी पोते और पोती के चेहरे देखने की...हर साल मैं भारत जाने की सोचता...कभी काम की मजबूरी और कभी परिवार बड़ा हो जाने की वजह से पैसे की अड़चन...हर साल भारत जाना अगले साल के लिए टल जाता...फिर एक दिन संदेश आया कि मेरे माता-पिता बीमार है...नौकरी जाने के डर से मैं अपनी कंपनी से छुट्टी मांगने की हिम्मत नहीं जुटा पाया...फिर एक हफ्ते में ही दो मनहूस संदेश मिले...पहले पिता और फिर मां, दुनिया छोड़ कर चले गए...कुछ करीबी रिश्तेदारों और पड़ोसियों ने ही माता-पिता का अंतिम संस्कार कराया...मैं दिल पर पहाड़ जैसा महसूस करने लगा कि मेरे माता-पिता पोते-पोती का मुंह देखने की हसरत लिए ही दुनिया से चले गए...


कुछ और साल बीते...मैंने भारत जाकर ही बसने का फैसला किया...लेकिन दोनों बच्चों को ये फैसला कतई पसंद नहीं था...हां पत्नी भारत लौटने की सोचकर बहुत खुश थी...आखिरकार हम संभावनाएं तलाशने के लिए भारत पहुंच गए...लेकिन मैं ये देखकर दंग था कि नोएडा जैसे शहर में भी प्रॉपर्टी की कीमत आसमान छू रही थी...मेरे पास जो पैसा जमा था, वो इतना नहीं था कि कोई अच्छा मकान खरीद लूं और साथ ही भविष्य की ज़रूरतों के लिए रकम बचा कर रख लूं...लेकिन पत्नी ने तो ठान ही लिया था अमेरिका नहीं लौटना...मेरे दोनों बच्चे भारत में रहने को तैयार नहीं...फिर एक रास्ता निकाला, मैं और दोनों बच्चे अमेरिका वापस आ गए...पत्नी से ये वादा करके कि मैं दो साल में भारत हमेशा रहने के लिए आ जाऊंगा...फिर साल बीतते गए...दो साल का वादा पूरा नहीं हो सका...मेरी बिटिया ने एक अमेरिकी के साथ शादी कर ली...मेरा बेटा भी अमेरिका में अपनी ही दुनिया में मस्त था....लेकिन एक दिन मैंने सोच लिया...बस बहुत हो गया...अब और नहीं...मैं पत्नी के पास भारत आ गया...मेरे पास अब इतना पैसा भी था कि नोएडा के किसी अच्छे सेक्टर में दो बेडरूम वाला फ्लैट खरीद सकूं...


अब मैं साठ साल से ऊपर का हूं...नोएडा में अपने फ्लैट में अकेला रह रहा हूं...पत्नी कुछ महीने पहले ही दुनिया को अलविदा कह गई है...घर से बाहर तभी निकलता हूं जब साथ वाले मंदिर में जाना होता है...मंदिर में भी दो-तीन घंटे अकेले बैठे शून्य में ताकता रहता हूं...सोचता हुआ कि मैं जो पूरी जवानी भागता रहा, क्या उसकी कोई सार्थकता थी...मेरे पिता ने मामूली सरकारी नौकरी के बावजूद भारत में रहते हुए ही वन बेडरूम सेट बनाया था...मेरे पास भी अब एक फ्लैट के अलावा और कुछ नहीं है...मैंने अपने माता-पिता, पत्नी को खो दिया...बच्चे खुद ही मुझसे जुदा हो गए...किस लिए सिर्फ एक अतिरिक्त बेडरूम के लिए...

फ्लैट वापस आ गया हूं...खिड़की से देख रहा हूं...बाहर पार्क में वेलेन्टाइन्स डे पर कुछ लड़के-लड़कियां फुल वोल्यूम पर गाने लगाकर डांस कर रहे हैं...बिना कोई संकोच या बड़े-बूढ़ों की फिक्र किए...ये सेटेलाइट टीवी की वजह से हमारी युवा पीढ़ी भारतीय मूल्यों और संस्कारों को खोती जा रही है...चलो इस माहौल में भी मेरा बेटा और बिटिया कभी-कभार अमेरिका से कार्ड डालकर या फोन से मेरा हाल-चाल तो पूछ लेते हैं...इतनी भारतीयता तो है उनमें अब भी....किसी दिन मैं भी माता-पिता की तरह मरूंगा तो शायद पड़ोसी ही मेरा अंतिम संस्कार करेंगे...भगवान उनका भला करे...लेकिन सवाल फिर वही क्या मैंने जो इतना सब कुछ खोया वो एक बस एक अतिरिक्त बेडरूम के लिए...


स्लॉग चिंतन

आप भी मनन कीजिए...जीवन एक अतिरिक्त बेडरूम से कहीं बड़ा है...जीवन को ऐसे ही मत गंवाइए, इसे जीना सीखिए..वैसे ही जिएं जैसे कि आपका दिल चाहता है...


स्लॉग गीत


ये गीत मैंने पहली बार छोटे भाई दीपक मशाल की पोस्ट पर सुना था...मेरे कहने पर एक बार इसे सुन ज़रूर लीजिए...

वक्त का ये परिंदा रुका है कहां,
मैं था पागल जो इसको बुलाता रहा...
चार पैसे कमाने मैं आया शहर,
गांव मेरा मुझे याद आता रहा...

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38 टिप्पणियाँ
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  1. कहानी तो अच्छी है लेकिन दौड मे घिरा आदमी सिर्फ़ दौड रहा है .अगर दौडे नही तो जे जे कालोनी मे भी आसरा ना मिलेगा

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  2. बहुत ही मार्मिक इ.मेल आया आपके पास.... कहानी ने अन्दर तक कटोच दिया.... ज़िन्दगी की सच्चाई यही है.... कई बार हम समझ नहीं पाते कि हम चाहते क्या हैं.....? और कई बार हालात् हमें समझने नहीं देते....

    बहुत अच्छी लगी यह पोस्ट .... Pondering over.....


    जय हिंद....

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  3. kya bhaia... kya jaroorat thi ye gana lagane ki? fir rula diya.. jabki main to majak me comment karne wala tha ki 4 di me nai bahu ke US VISA kaise mila?
    Jai Hind...

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  4. प्रेम चतुर्थी की शुभकामनये आपको भी .

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  5. बहुत पहले पढ़ी थी.. आज फिर सोचने लगे..

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  6. बस्स!! मौन की भाषा समझ सको तो समझ लेना मेरे भाई!!

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  7. बहुत ही संदेशवाहक पोस्ट है....अपनी इच्छाओं को पूरा करने के चक्कर में कितना खो देते हैं इसका एहसास बाद में ही होता है....

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  8. वाह आज की भौतिकतावादी सोच को मुंहतोड़ जबाब देती कहानी ..

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  9. खुशदीप भाई जब भी आप अनुवाद करते हैं तो रूला देते हैं।सच मे पता नही ये भागमभाग कब खतम होगी।आपको पढ कर तो श्मशान वैराग्य का अनुभव हो रहा है।मैं भी कुछ दिनों से सोच रहा हूं कंही छोटा-मोटा खेत लेकर आराम से रिटायर लाईफ़ गुज़ार लूं।वैसे फ़िलहाल की लाईफ़ तो आपके स्लाग ओवर के हिसाब से ही जी रहा हूं।

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  10. सभी एन आर आई लोगों के सामने यही सवाल आते हैं।
    और इसी कशमकश में जिंदगी गुज़र जाती है।
    आखिर कुछ पाने के लिए कुछ खोना तो पड़ता ही है।

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  11. जिन्दगी का सच...वो कहानी नहीं मेरे दोस्त। हर उस इंसान का सच.. जो घर से दूर पैसे के लिए भटक रहा है। चाहे कोई मजदूर हो या फिर किसे बड़े पद पर लगा बड़ा अधिकारी।

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  12. जिन्दगी की दौड़ में जिन्दगी से दूर।
    मैं मजबूर मैं मजबूर
    एक हाथ ले एक हाथ दे

    आज के जीवन का दस्तूर

    सच कहा कहानी के जरिए खुशदीप

    नहीं कोई फातूर।

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  13. खुश दीप भाई यह इ मेल तो सच मै हम सब के दिल की बात कह रहा है, एक एक शव्द सच मै डुबा है, आज विदेश मै रहने वाला हर भारतीया वापिस अपनी जडो को आना चाहता है, लेकिन जब वापिस आ कर देखता है तो.... हेरान परेशांन हो जाता है, क्योकि अपने ही पराये बन गये, कोई उन्हे प्यार नही देता बस जेब को देखते है... मां बाप भी आंखो मे बेटे की वापसी की राह देखते कब आंखे बन्द कर लेते है पता ही नही चलाता...... पता नही चलता अब तो क्या सही है क्या गलत... बस जिन्दगी को उसी के हवाले छोड देते है
    आप का लेख सच मै एक जिन्दा सच है
    धन्यवाद

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  14. आपाधापी भरी इस जिंदगी में हम आगे की ओर दौड़ते-दौड़ते बहुत कुछ पीछे छोड आते हैं ...सन्देश देती मार्मिक कहानी

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  15. very touchy.
    pahle aap anil bhaiya se ye puchhiye ki unhone grihasth aashram ka aanad kab le liya jo ab unhe shamshan vairagya ka anubhav hone lagaa. spcly ye bat jarur puchhiye unse, apan bhi jan na chahenge unse

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  16. बेहतरीन और सामयिक पोस्ट
    कमलाकर को यह ज्ञान सदियों पहले हो गया था ।
    एक वर्ष पहले ऎसा ई-मेल मुझे भी मेरी बेटी ने अग्रसारित { फ़ॉरवर्ड :) } किया था,
    ऎसे मेल का सदुपयोग प्रेरणास्पद पोस्ट बनाने में भी किया जा सकता है, यह ज्ञान आज प्राप्त हुआ ।

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  17. अभी मुम्बई मे देख कर आया हूँ सर छुपाने के लिये आसरा ढूँढ लेना कितनी बड़ी बात है । बाथरूम जितनी जगह मे पूरा परिवार रहता है ..और कईयों को तो यह भी नसीब नहीं ।

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  18. खुशदीप जी, झकझोर कर रख दिया, पर हम भी पक्के हैं, सुबह तक फ़िर भूलकर फ़िर उसी रैटरेस में शामिल हो जायेंगे जिसमें कोई जीत जाये तो भी चूहा ही रह जाता है। मैंने भी ऐसी ही एक बात सुनी थी कि किसी साईकिल वाले सज्जन को स्कूटर की लालसा हुई, स्कूटर के लायक पैसे इकठे हुये तो फ़िर कार का मन बन गया, जब कुछ साल तक ओवरटाईम करके कार खरीद ली तब डाक्टर नें साईक्लिंग की सलाह दे डाली।

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  19. accha to ye hamari 'KAL AAJ AUR KAL' ki kahani hai...
    ham jaante hain ki hamara bhavishy andhkaarmay hai..lekin ab kya karein ...yahi jeewan apnaayein hain..

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  20. खुशदीप जी .....ये पढ़कर लगता है कि हम ही अच्छे....आखिर आपाधापी की इस ज़िदंगी में जबरदस्ती टाइम निकालता रहता हुं....कुछ परेशानियों के अलावा ज्यादातर सुकुन ही है....बस एक ही परेशानी की अपने मां-बाप को खुशियां नहीं दे पाते . जितना चाहतें हैं......

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  21. यही जीवन है!

    काश सॉफ्टवेयर इंजीनियरिंग के साथ ही साथ गीता सार का भी अध्ययन कर लिया होता तो जीवन की इस निरर्थकता का ज्ञान पहले से ही हो गया होता।

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  22. कहानी बहुतों का सच और बहुतों का दर्द बयान कर गई , हां इससे बेहतर शीर्षक होता भी नहीं ।
    अजय कुमार झा

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  23. बेहद मार्मिक

    गीत भी सुन लिया आपके कहने पर एक बार
    दुबारा सुनने की हिम्मत नहीं :-(

    बी एस पाबला

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  24. खुशदीप जी, मैंने अमेरिका प्रवास और अपने परिवार और आसपास के अनुभवों के आधार पर एक पुस्‍तक लिखी है - सोने का पिंजर ..अमेरिका और मैं। उसमें मैंने बहुत कुछ ऐसे ही भाव कहने का प्रयास किया है। आपने एकदम सत्‍य लिखा है कि वहाँ रहने के बाद भी इतना पैसा नहीं होता कि हम बड़ा घर खरीद सक‍ें। और कहा यह जाता है कि अमेरिका में पैसे कमाने जा रहे हैं। आपको बधाई।

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  25. बहुत खूब..................... इस दौड़ भाग में अंतत: अकेलापन रह जाता है साथ और कुछ नही.......!

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  26. khushdeep ji
    hai to ye ek katu sachchayi magar ye sab america jane par hi nhi ho raha ab to hamare desh mein bhi ho raha hai .......bas samajhna hamein hi hoga kuch der thahar kar ki hum kya chahte hain.......hamari zindgi mein kiski ahmiyat sabse jyada hai...........paise ki ya rishton ki .

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  27. sir aapki ye baat jindagi ki kishten kam kar sakti hai,jinhe har koi ghar ke liye bhar raha hai.. :)

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  28. सच से परिचित कराता हुआ सन्देश .....पर जो लोग इस भाग दौड़ में लगे हुए हैं...उनके पास है वक़्त,यह सन्देश पढने का.??...सीधा डिलीट बटन दबाते हैं,ऐसे मेल पाने पर...और किसी दिन माता-पिता की याद आने पर अपने ब्लॉग में एक पोस्ट लिख डालते हैं,उनकी याद में....पर फोन करने का वक़्त नहीं होता..क्यूंकि पोस्ट लिखते वक़्त वे साथ में लैपटॉप पर कई और काम भी निबटा सकते हैं (यह सत्य घटना बता रही हूँ...मैंने आग्रह किया कि इतनी याद आ रही है तो फोन कर लो...तो बोला,वो तो शुक्रवार को ही करता हूँ....अभी कई काम और कर रहा हूँ)

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  29. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  30. खुशदीप जी, यह तो ज्यादातर लोगों की असलियत है। गांव देहात छोड हम शहरों में आ तो जाते हैं लेकिन पाते क्या हैं, वही भागादौडी, वही आपाधापी। इस बीच न जाने कितनी मुश्किले झेलते रहते हैं और जीये चले जाते हैं।

    मुझे तो अब भी लगता है कि दुनिया की सबसे अच्छी नौकरी अगर है तो वह है गाँव के सरकारी स्कूल में मास्टरी की। इसके मुकाबले सारी नौकरीयां धरी की धरी रह जांय :)

    गांव का खाना, रहना, जीना और कूल बने रहना..... जिंदगी को यही लोग एन्जॉय कर पाते हैं। घर परिवार, माता पिता सभी के साथ रह पाते हैं। शाम को बाजार में दो चार पान, एकाध चाय सुडुक्की और दर्जन भर बातें गांजते रहना लेकिन इतना सब समय व्यतीत करने पर भी असंतुष्ट रहना :)

    हां ये अलग बात है कि कई निजी स्कूलों में उनका जमकर शोषण भी होता है :(

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  31. जिन्दगी जब तक है तब तक ये सारे फ़साने है
    कुछ सिर्फ़ हमें देखने है कुछ सबको दिखाने है

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  32. are aapne to dara dia ....nishabd hoon main..ekdam sach likha hai 1000%

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  33. उम्रे दराज मांग के लाए थे से चार दिन
    दो कट गए आरजू में दो इंतजार में

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  34. बहुत मार्मिक कहानी है। कहानी ही नही किसी हद तक बहुत लोगों की कहानी है ये। चाह कर भी शायदफम कुछ नही कर पा रहे। बस भागम भाग लगी है।लगता है हमे भी पडोसी ही उठायेंगे। शुभकामनायें

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  35. i was planning to work somewhere outside india but now i wont.....aanke khol di khusdeep bhaiya aapne

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